भाई नवीन चंद्र चतुर्वेदी जी ने हमें जनाब तुफ़ैल चतुर्वेदी जी की शायरी पढ़वाई और हमने उनकी शायरी को ‘मुशायरे‘ में पेश भी किया। इसी सिलसिले में उनकी तरफ़ से एक ईमेल मिली जिसमें कुछ अच्छे शेर लिखे हुए थे। जिस ईमेल में काम की बातें होती हैं, उन्हें मैं डिलीट नहीं करता। सो इसे भी डिलीट नहीं किया और उनके भेजे अशआर को मैं आपके साथ शेयर कर रहा हूं।
अनवर भाई, तीन शेर , आप से मित्रवत शेयर कर रहा हूँ:-
ये माना, ज़िन्दगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी
:- रघुपति सहाय फिराक़
न सताइश (प्रशंसा) की तमन्ना, न सिले की परवाह
गर नहीं है मेरे अशआर में मानी (अर्थ) न सही
:- मिर्ज़ा ग़ालिब
एक ज़माना यह भी था देहात में सुख का
लोग खुले रखते थे घर के सब दरवाज़े
:- सुरेश चंद्र शौक़
1 टिप्पणी:
शुक्रिया अनवर भाई, अच्छी बातें शेयर करने में आप को भी मजा आता है, जान कर अच्छा लगा
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