हालांकि ख़बर तो कुछ यूं बननी चाहिए थी कि खुशदीप जी ने छोड़ दी है हिंदी ब्लॉगिंग। लेकिन यह एक झूठी बात होती। आदमी आवेश में आकर ग़लत फ़ैसले ले ही लेता है और फिर जब उसे अहसास होता है कि वह गुस्से में आकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार बैठा है तो वह अपने फ़ैसले से पलट जाता है और कहता है कि उसने अमुक आदमी के समझाने पर या अमुक कारण से अपना विचार बदल दिया है। तब भी वह स्वीकार नहीं करता कि उसका फ़ैसला ग़लत था। जल्दी ही आप खुशदीप जी के बारे में भी ऐसा ही होता देखेंगे।
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