25.8.11

सिरफिरा-आजाद पंछी: माफ़ी मांग लेने के बाद क्या मामला खत्म समझ लेना चा...

सिरफिरा-आजाद पंछी: माफ़ी मांग लेने के बाद क्या मामला खत्म समझ लेना चा...: श्री मनीष तिवारी के माफ़ी मांग लेने के बाद क्या यह मामला खत्म समझ लेना चाहिए? एक शर्त पर उसे रामलीला मैदान में जाकर श्री अन्ना हजारे जी के...

23.8.11

अब जोश जवानी का देखो, कैसी करवट ले डाली है !

अब जोश जवानी का देखो, कैसी करवट ले डाली है !
दिल में इनके चिंगारी है, वो और भडकने वाली है !!
खुद को वह हिंदू न मुस्लिम, सिक्ख ईसाई कहता है!
पूरा भारत एक सूत्र मैं, बंधा दिखाई देता है,
तुम अब या तो खुद को बदलो, या बदलेगा तुम्हे वख्त
तनी हुई है इनकी मुठ्ठी, और इरादे बिलकुल सख्त
वंदे मातरम होठों पर है, देश प्रेम की आंधी है
और साथ मैं इनके देखो, अन्ना जैसा गाँधी है

21.8.11

क्या कहते हैं पाठक ‘ब्लॉगर्स मीट वीकली‘ के बारे में ? (Shikha Kaushik Opinion)




Saleem Khan & Anwer Jamal Khan
प्रेरणा अर्गल जी और डॉ.अनवर जमाल जी की ये संयुक्त प्रस्तुति बहुत ही सार्थक पहल है और जिस शालीन ढंग से यहाँ ब्लोग्स की पोस्ट की चर्चा की जाती है वह सारे ब्लॉग जगत में सराहनीय है.सही कहा कि जब त्यौहार साथ साथ हो सकते हैं तो हम उन्हें साथ साथ मनाने से गुरेज़ क्यों करें.हम तो अपने बचपन से ही सारे त्यौहार साथ साथ मनाते रहे हैं और यदि ईश्वर की और इस धरती पर बसे सत्पुरुषों की कृपा दृष्टि यूँ ही बनी रही तो सारी जिंदगी हम मिल जुल कर ही अपने जीवन को हंसी ख़ुशी बिताना चाहेंगे.

ब्लॉगर्स मीट वीकली (5) Happy Janmashtami & Happy Ramazan

20.8.11

तुम मै और वह

तुम मै और वह

पुरुष होना कित्ता आसान है न प्रीतिश!!! तुम जब पहली बार मिले थे, धडके तो हम दोनों ही थे पर तुम्हारी हिप्पोक्रेसी ने छीन लिया मेरा वह प्यार जो अब भी कायम है (प्यार मरता नहीं है, कही गुम हो जाता है, किन्तु तुम्हारा तो गुम ही नहीं हो रहा है ) जब तुमसे पहली बार मिली थी तब ही से मन में तुमने जगह बना ली थी , क्किन्तु जैसे ही जाना, रुचिका और तुम्हारे प्रेम के घरौंदे पर मेरा पाँव अनजाने ही पड़ रहा है, मैंने अपने क़दम खींच लिए, मै जानती हूँ तुम उसका पहला प्यार हो, शायद वह भी तुम्हारी!! न प्रीतिश! मुझे गलत मत समझना, मै तुम्हारे और उसके बीच नहीं आयी थी, बस!!! एक दोस्त के नाते आयी थी, जिस दम उसने बताया कि तुम और वो बहुत आगे निकल .....,!!! (आज भी अपने गर्दन पर तुम्हारे स्पर्श को महसूस करके पागल हो जाती है वो ) बस!!! उसी लम्हे तुम पर गुस्सा आया था मुझे!!! जब ज़िंदगी में , वह स्थान खाली है ही नहीं तो मेरे साथ क्यों खेल रहे हो तुम!!!! और अब तुम ऐसे पागल पन भी करोगे कि मेरे उदगार जानने के लिए स्पीकर ओन करके, उससे मेरी बात करवाओगे, फिर जब मै चाह कर भी तुम्हारे फेवर में कुछ न कह पाउंगी तो तुम उस "कुछ -नहीं " को हकीकत मान लोगे? जब कि तुम जानते हो कि मै भी जानती हूँ कि "सुन रहे हो तुम सब कुछ."
रुचिका भी खेल सकती है मुझे पता है, वह खेल रही है मिझे यह भी पता है बस शर्म आती है तो इस बात पर कि यह बिलकुल एकता कपूर के नाटक जैसा हो रहा है, प्रीतिश!!! कई बार शब्द सच नहीं होते! (मैंने तो आँखों पर भरोसा किया था, तब भी हारी हूँ ) मै हर बार तुम्हारे लिए बेहतर कहते कहते रह जाती हूँ क्योंकि जानती हूँ, "रुचिका बर्दाश्त नहीं कर पाएगी " और अगर इसे तुम मेरी कमजोरी या उदगार समझ कर रुचिका के ज़रिये, स्पीकर ओन कर के सुन रहे हो तो , मै मानती हूँ कि यह तुम्हारी कमजोरी है! हाँ रुचिका से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध है तो उसे निभालो, "वक्त खुद अपने परिभाषाएं, और ज़रूरतें तय कर लेता है!
ज़िन्दगी भागती गाडी की खिड़की से धुन्द्लाये मंज़रों जैसी होती है, कुछ भी ज़हन के पल्लों पर ज्यादा देर नहीं टिकता! इसलिए मेरे दिल की परवाह किये बिना एक सही फैसला जल्दी ले लो, पर रब के लिए किसी से खेलो मत!!! क्योंकि खेलने वाले से ज़िन्दगी खेल जाती है, मै जहां रहूँगी, तुम्हारे लिए दुआगो हूँगी, क्योंकि प्यार तो मैंने तुमसे किया है, चाहे अनजाने ही!!! बस जहां रहो खुश रहो!!! रब तुम्हे दोस्तों और दुश्मनों के बीच का फर्क जानने की तहजीब अता करे!

14.8.11

आपको मुबारक हो: स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जनहित में एक बहुमूल्य स...

आपको मुबारक हो: स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जनहित में एक बहुमूल्य स...: " आप सभी देशवाशियों और आपके परिवार को 65वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. जनहित में एक बहुमूल्य संदेश:- आप सभी यहाँ पर पोस्ट डालने ..."

13.8.11

चाहे जहाँ पे थूको, खुलकर बहाओ धारा, सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा,
हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलगुला हमारा।

बुड्ढे कुंवारियों से नैना लड़ा रहे हैं,
मकबूल माधुरी की पेंटिंग बना रहे हैं,
ऊपर उगी सफेदी भीतर दबा अंगारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

सत्ता के सिंह बकरी की घास खा रहे हैं,
गांधी की लंगोटी का बैनर बना रहे हैं,
चर-चर के खा रहे हैं चरखे का हर किनारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

नारी निकेतन उसके ही बल पे चल रहे हैं,
हर इक गली में छै छै बच्चे उछल रहे हैं,
जिसको समझ रहा है सारा शहर कुंवारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

दंगा कराने वाले गंगा नहा रहे हैं,
चप्पल चुराने वाले मंदिर में जा रहे हैं,
थाने में बंट रहा है चोरी का माल सारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

साहब के संग सेक्रेटरी पिकनिक मना रही हैं,
बीवी जी ड्राइवर संग डिस्को में जा रही हैं,
हसबैण्ड से भी ज्यादा मैडम को टॉमी प्यारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

जो मर्द हैं वो घर में करते हैं मौज देखो,
लालू के घर लगी है बच्चों की फौज देखो,
परिवार नियोजन का किन्नर लगाएं नारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

है छूट लूटने की ए देश लूट खाओ,
लेने में पकड़ जाओ तो देकर के छूट जाओ,
चाहे जहाँ पे थूको, खुलकर बहाओ धारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

कोठे में जो पड़े थे, कोठी में रह रहे हैं,
खुद को शिखंडी सिंह की औलाद कह रहे हैं,
जनता के वास्ते तो मुश्किल है ईंट गारा,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

11.8.11

>फतवा, फतवा, फतवा, फतवा

>बलात्कार की शिकार लड़की को 200 कोड़े मारने की सजा
जेद्दाह में एक सऊदी अदालत ने पिछले साल सामूहिक बलात्कार की शिकार लड़की को 90 कोड़े मारने की सजा दी थी। उसके वकील ने इस सजा के खिलाफ अपील की तो अदालत ने सजा बढ़ा दी और हुक्म दिया: ’200 कोड़े मारे जाएं।’ लड़की को 6 महीने कैद की सजा भी सुना दी। अदालत का कहना है कि उसने अपनी बात मीडिया तक पहुंचाकर न्याय की प्रक्रिया पर असर डालने की कोशिश की। कोर्ट ने अभियुक्तों की सजा भी दुगनी कर दी। इस फैसले से वकील भी हैरान हैं। बहस छिड़ गई है कि 21वीं सदी में सऊदी अरब में औरतों का दर्जा क्या है? उस पर जुल्म तो करता है मर्द, लेकिन सबसे ज्यादा सजा भी औरत को ही दी जाती है।

बेटी से निकाह कर उसे गर्भवती किया
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में एक व्यक्ति ने सारी मर्यादाओं को तोड़ते हुए अपनी सगी बेटी से ही शादी कर ली और उसे गर्भवती भी कर दिया है। यही नहीं , वह इसे सही ठहराने के लिए कहा रहा है कि इस रिश्ते को खुदा की मंजूरी है। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि इस निकाह का गवाह कोई और नहीं खुद लड़की की मां और उस शख्स की बीवी थी। जलपाईगुड़ी के कसाईझोरा गांव के रहने वाले अफज़ुद्दीन अली ने गांव वालों से छिपाकर अपनी बेटी से निकाह किया था इसलिए उस समय किसी को इस बारे में पता नहीं चला। अब छह महीने बाद लड़की गर्भवती हो गई है ।

मस्जिद में नमाज अदा करने पर महिलाओं को मिला फतवा
असम के हाउली टाउन में कुछ महिलाओं के खिलाफ फतवा जारी किया गया क्योंकि उन्होंने एक मस्जिद के भीतर जाकर नमाज अदा की थी। असम के इस मुस्लिम बाहुल्य इलाके की शांति उस समय भंग हो गई , जब 29 जून शुक्रवार को यहां की एक मस्जिद में औरतों के एक समूह ने अलग से बनी एक जगह पर बैठकर जुमे की नमाज अदा की। राज्य भर से आई इन महिलाओं ने मॉडरेट्स के नेतृत्व में मस्जिद में प्रवेश किया। इस मामले में जमाते इस्लामी ने कहा कि कुरान में महिलाओं के मस्जिद में नमाज पढ़ने की मनाही नहीं है। जिले के दीनी तालीम बोर्ड ऑफ द कम्युनिटी ने इस कदम का विरोध करते हुए कहा कि इस तरीके की हरकत गैरइस्लामी है। बोर्ड ने मस्जिद में महिलाओं द्वारा नमाज करने को रोकने के लिए फतवा भी जारी किया।

कम कपड़े वाली महिलाएं लावारिस गोश्त की तरह
एक मौलवी के महिलाओं के लिबास पर दिए गए बयान से ऑस्ट्रेलिया में अच्छा खासा विवाद उठ खड़ा हुआ है। मौलवी ने कहा है कि कम कपड़े पहनने वाली महिलाएं लावारिस गोश्त की तरह होती हैं , जो ‘ भूखे जानवरों ‘ को अपनी ओर खींचता है। रमजान के महीने में सिडनी के शेख ताजदीन अल-हिलाली की तकरीर ने ऑस्ट्रेलिया में महिला लीडर्स का पारा चढ़ा दिया। शेख ने अपनी तकरीर में कहा कि सिडनी में होने वाले गैंग रेप की वारदातों के लिए के लिए पूरी तरह से रेप करने वालों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। 500 लोगों की धार्मिक सभा को संबोधित करते हुए शेख हिलाली ने कहा , ‘ अगर आप खुला हुआ गोश्त गली या पार्क या किसी और खुले हुए स्थान पर रख देते हैं और बिल्लियां आकर उसे खा जाएं तो गलती किसकी है , बिल्लियों की या खुले हुए गोश्त की ?’

कामकाजी महिलाएं पुरुषों को दूध पिलाएं
काहिरा : मिस्र में पिछले दिनों आए दो अजीबोगरीब फतवों ने अजीब सी स्थिति पैदा कर दी है। ये फतवे किसी ऐरे-गैरे की ओर से नहीं बल्कि देश के टॉप मौलवियों की ओर से जारी किए जा रहे हैं।
देश के बड़े मुफ्तियों में से एक इज्ज़ात आतियाह ने कुछ ही दिन पहले नौकरीपेशा महिलाओं द्वारा अपने कुंआरे पुरुष को-वर्करों को कम से कम 5 बार अपनी छाती का दूध पिलाने का फतवा जारी किया। तर्क यह दिया गया कि इससे उनमें मां-बेटों की रिलेशनशिप बनेगी और अकेलेपन के दौरान वे किसी भी इस्लामिक मान्यता को तोड़ने से बचेंगे।

गले लगाना बना फतवे का कारण
इस्लामाबाद की लाल मस्जिद के धर्मगुरुओं ने पर्यटन मंत्री नीलोफर बख्तियार के खिलाफ तालिबानी शैली में एक फतवा जारी किया है और उन्हें तुरंत हटाने की मांग की है। बख्तियार पर आरोप है कि उन्होंने फ्रांस में पैराग्लाइडिंग के दौरान अपने इंस्ट्रक्टर को गले लगाया। इसकी वजह से इस्लाम बदनाम हुआ है।

ससुर को पति पति को बेटा
एक फतवा की शिकार मुजफरनगर की ईमराना भी हुई। जो अपने ससुर के हवश का शिकार होने के बाद उसे आपने ससुर को पति ओर पति को बेटा मानने को कहा ओर ऐसा ना करने पे उसे भी फतवा जारी करने की धमकी मिली।

फतवा क्या है
जो लोग फतवों के बारे में नहीं जानते, उन्‍हें लगेगा कि यह कैसा समुदाय है, जो ऐसे फतवों पर जीता है। फतवा अरबी का लफ्ज़ है। इसका मायने होता है- किसी मामले में आलिम ए दीन की शरीअत के मुताबिक दी गयी राय। ये राय जिंदगी से जुड़े किसी भी मामले पर दी जा सकती है। फतवा यूँ ही नहीं दे दिया जाता है। फतवा कोई मांगता है तो दिया जाता है, फतवा जारी नहीं होता है। हर उलमा जो भी कहता है, वह भी फतवा नहीं हो सकता है। फतवे के साथ एक और बात ध्‍यान देने वाली है कि हिन्‍दुस्‍तान में फतवा मानने की कोई बाध्‍यता नहीं है। फतवा महज़ एक राय है। मानना न मानना, मांगने वाले की नीयत पर निर्भर करता है।


>अंग्रेजी मानसिकता का तिरस्कार ही सही मायने में आजादी के पर्व को मनाना है

15 अगस्त 1947 का हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्त्व है, क्योंकि इस दिन हमारा देश आज़ाद हुआ था। इस दिन हमें अंग्रेजों से तो आज़ादी मिल गई लेकिन हम आज भी उनके मानसिक और भाषाई गुलाम हैं, उनकी भाषा और उनकी सोच आज तक हमारे ह्रदय में रची-बसी हुई है। उन्होंने जब तक हम पर राज किया “फूट डालो और शासन करो” को नीति को अपनाया और जाते-जाते भी दुश्मनी का बीज बोकर गए। एक तरफ हिन्दुस्तान आज़ाद हो रहा था और दूसरी तरफ हमारे देश का ही एक टुकड़ा हमसे जुदा हो रहा था, या यह कहा जाए कि जुदा किया जा रहा था। यह एक सोच-समझी साजिश के तहत हुआ था, ताकि कभी हमारा देश अंग्रेजों के मुकाबले खड़ा नहीं हो सके। कितनी अजीब बात है कि जिस देश को आज़ाद करवाने के लिए हर मज़हब और कौम के लोगों ने कंधे से कंधा मिलाकर जंग लड़ी और अपनी जान कुर्बान की, जब वह देश आज़ाद हो रहा था हमारे देश के लोग खुशियाँ मानाने की जगह एक-दुसरे की नफरत में लिप्त थे। अंग्रेज़ जाते-जाते भी हमें तबाह और बर्बाद करने की इरादे से नफरत के बीज हमारे अन्दर बो गए थे। इसी नीति पर अमल करते हुए हमें आज तक लडवाया जा रहा है. पाकिस्तान को उसकी उलटी-सीढ़ी हरकतों के बावजूद अमेरिका, इंग्लैण्ड जैसे देशों के द्वारा मदद उसकी मदद करना इसका जीता-जागता सबूत है। स्वयं हमारे देश में भी इनके एजेंटों के द्वारा हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाईयों को आपस में लड़वाने की कोशिशें जारी हैं।

इस विषय पर हिन्दुस्तान लाइव पर छपा यह लेख बहुत ही महत्त्व रखता है.

जब गांधीजी ने नहीं मनाया आजादी का जश्न…

पूरा देश 15 अगस्त 1947 को जब आजादी का जश्न मना रहा था उस समय एक शख्स ऐसा भी था, जो ब्रिटिश शासन की गुलामी से मुक्ति के इस महोत्सव में शामिल नहीं था। वह बड़ी खामोशी के साथ राजधानी दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर कलकत्ता (अब कोलकाता) में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच शांति और सौहार्द कायम करने के काम में प्राणपण से लगा हुआ था।

वह शख्स कोई और नहीं बल्कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी थे, जिन्होंने आजादी के दिन को अनशन करके मनाने का फैसला किया। आजादी से कुछ सप्ताह पहले की बात है। पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल ने कलकत्ता में गांधी जी के पास अपना दूत भेजा, जो आधी रात को वहां पहुंचा। उसने गांधी जी से कहा कि वह पंडित नेहरू और सरदार पटेल का एक महत्वपूर्ण पत्र उनके लिए लाया है। गांधी जी ने उससे पूछा कि क्या उसने भोजन किया है। उसके नहीं कहने पर उन्होंने पहले उसे भोजन कराया और फिर पत्र खोलकर देखा। उसमें लिखा था- बापू, आप राष्ट्रपिता हैं। 15 अगस्त 1947 पहला स्वाधीनता दिवस होगा। हम चाहते हैं कि आप दिल्ली आकर हमें अपना आशीर्वाद दें।

पत्र पढने के बाद महात्मा गांधी ने कहा- कितनी मूर्खतापूर्ण बात है। जब बंगाल जल रहा है। हिन्दू और मुस्लिम एक-दूसरे की हत्याएं कर रहे हैं और मैं कलकत्ता के अंधकार में उनकी मर्मान्तक चीखें सुन रहा हूं तब मैं कैसे दिल में रोशनी लेकर दिल्ली जा सकता हूं। बंगाल में शांति कायम करने के लिए मुझे यहीं रहना होगा और यदि जरूरत पड़े तो सौहार्द और शांति सुनिश्चित करने के लिए अपनी जान भी देनी होगी।

गांधी जी उस दूत को विदा करने के लिए बाहर निकले। वह एक पेड़ के नीचे खडे थे तभी एक सूखा पत्ता शाख से टूटकर गिरा। गांधी जी ने उसे उठाया और अपनी हथेली पर रखकर कहा- मेरे मित्र, तुम दिल्ली लौट रहे हो। पंडित नेहरू और पटेल को गांधी क्या उपहार दे सकता है। मेरे पास न सत्ता है और न सम्पत्ति है। पहले स्वतंत्रता दिवस के मेरे उपहार के रूप में यह सूखा पत्ता नेहरू और पटेल को दे देना। जब वह यह बात कह रहे थे तब दूत की आंखें सजल हो गईं।

गांधी जी परिहास के साथ बोले- भगवान कितना दयालु है। वह नहीं चाहता कि गांधी सूखा पत्ता भेजे। इसलिए उसने इसे गीला कर दिया। यह खुशी से दमक रहा है। अपने आंसुओं से भीगे इस पत्ते को उपहार के रूप में ले जाओ।

आजादी के दिन गांधी जी का आशीर्वाद लेने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार के मंत्री भी उनसे मिलने गए थे। गांधी जी ने उनसे कहा- विनम्र बनो, सत्ता से सावधान रहो। सत्ता भ्रष्ट करती है। याद रखिए, आप भारत के गरीब गांवों की सेवा करने के लिए पदासीन हैं।

नोआखाली में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच सौहार्द कायम करने के लिए गांधी जी गांव-गांव घूमे। उनके पास धार्मिक पुस्तकें ही थीं। उन्होंने सभी हिन्दुओं और मुसलमानों से शांति बनाए रखने की अपील की और उन्हें शपथ दिलाई कि वे एक-दूसरे की हत्याएं नहीं करेंगे। वह हर गांव में यह देखने के लिए कुछ दिन रुकते थे कि जो वचन उन्होंने दिलाया है, उसका पालन हो रहा है या नहीं।

उसी दौरान एक गांव में दिल को छू लेने वाली घटना हुई। गांधी जी ने उस गांव के हिन्दुओं और मुसलमानों से कहा कि वह सामूहिक प्रार्थना के लिए अपनी झोपड़ियों से बाहर निकल आएं और शांति के लिए सामूहिक शपथ लें लेकिन कोई भी बड़ा-बूढ़ा बाहर नहीं निकला। गांधी जी ने आंधे घंटे तक इंतजार किया लेकिन उसके बाद भी जब कोई हिन्दू या मुसलमान बाहर नहीं आया तो उन्होंने अपने साथ लाई गेंद दिखाकर गांव के बच्चों से कहा- बच्चों, आपके माता-पिता एक-दूसरे से डरते हैं लेकिन तुम्हें क्या डर है। हिन्दू और मुसलमान भले एक-दूसरे से डरते हों लेकिन बच्चे निर्दोष हैं। तुम भगवान के बच्चे हो। मैं तुम्हें गेंद खेलने के लिए बुला रहा हूं।

यह सुनकर बच्चे उस मंच की तरफ बढ़ने लगे जहां गांधी जी बैठे थे। गांधी जी ने गेंद उनकी तरफ फेंकी तो लड़के और लड़कियां भी उनकी तरफ गेंद वापस फेंकने लगे। आधे घंटे तक गेंद खेलने के बाद उन्होंने ग्रामीणों से कहा- तुममें साहस नहीं है। यदि तुम ऐसा साहस चाहते हो तो अपने बच्चों से प्रेरणा लो। मुस्लिम समुदाय से जुड़ा बच्चा हिन्दू समुदाय से जुड़े बच्चे से भयभीत नहीं है। इसी तरह हिन्दू बच्चा मुस्लिम बच्चे से नहीं डरता है। सब एक साथ आए और मेरे साथ आधे घंटे तक खेले। मेहरबानी करके उनसे कुछ सीखो। यदि तुममे आंतरिक साहस नहीं तो अपने बच्चों से कुछ सीखो।

गांधी जी के यह कहने पर हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के बड़े-बूढे धीरे-धीरे अपने घरों से निकलने लगे और देखते-देखते वहां बड़ी भीड़ इकट्ठा हो गई और उन्होंने उन्हें शपथ दिलाई कि वे एक-दूसरे की हत्या नहीं करेंगे।

नोआखाली में गांधी जी के साथ घटी एक घटना से उनकी निर्भयता, धैर्य, सहनशीलता और क्षमाभाव का पता चलता है। एक गांव में गांधी जी की प्रार्थना सभा चल रही थी उसी दौरान एक मुस्लिम व्यक्ति अचानक उन पर झपटा और उनका गला पकड़ लिया। इस हमले से वह नीचे गिर पड़े लेकिन गिरने से पहले उन्होंने कुरान की एक सुंदर उक्ति कही, जिसे सुनकर वह उनके पैरों पर गिर पड़ा और अपराध बोध से कहने लगा- मुझे खेद है। मैं गुनाह कर रहा था। मैं आपकी रक्षा करने के लिए आपके साथ रहने के लिए तैयार हूं। मुझे कोई भी काम दीजिए। बताइए कि मैं कौन सा काम करूं।

गांधी जी ने उससे कहा कि तुम सिर्फ एक काम करो। जब तुम घर वापस जाओ तो किसी से भी नहीं कहना कि तुमने मेरे साथ क्या किया। नहीं तो हिन्दू-मुस्लिम दंगा हो जाएगा। मुझे और खुद को भूल जाओ। यह सुनकर वह आदमी पश्चाताप करता हुआ चला गया।

महात्मा गांधी के भगीरथ प्रयासों से नोआखाली में शांति स्थापित हो गई। उनके शांति मिशन की कामयाबी पर लॉर्ड माउंटबेटन ने 26 अगस्त 1947 को उन्हें एक पत्र लिखा जिसमें उनकी सराहना करते हुए कहा गया – पंजाब में हमारे पास पचपन हजार सैनिक हैं लेकिन वहां बड़े पैमाने पर हिंसा हो रही है। बंगाल में हमारी फौज में केवल एक आदमी था और वहां कोई हिंसा नहीं हुई। एक सेवा अधिकारी और प्रशासक के रूप में मैं इस एक व्यक्ति की सेना को सलाम करना चाहूंगा।


नफरत की दीवारों को तोड़े बिना देश की वास्तविक आजादी असंभव है। अंग्रेजी मानसिकता का तिरस्कार ही सही मायने में आजादी के पर्व को मनाना

मेरी ओर से सभी देशवासियों को स्वंतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

9.8.11

हमें क्यों चाहिए जन लोकपाल?

हमें क्यों चाहिए जन लोकपाल?

सामान्य सवाल

1. हमें क्यों चाहिए लोकपाल?
2. क्या कहता है जन लोकपाल कानून?
3. लोकपाल और लोकायुक्त का काम

हमें क्यों चाहिए लोकपाल?


मोटे तौर पर, लोकपाल कानून बनवाने के दो मकसद हैं -
पहला मकसद है कि भ्रष्ट लोगों को सज़ा और जेल सुनिश्चित हो। भ्रष्टाचार, चाहे प्रधानमंत्री का हो या न्यायधीश का, सांसद का हो या अफसर का, सबकी जांच निष्पक्ष तरीके से एक साल के अन्दर पूरी हो। और अगर निष्पक्ष जांच में कोई दोषी पाया जाता है तो उस पर मुकदमा चलाकर अधिक से अधिक एक साल में उसे जेल भेजा जाए।


दूसरा मकसद है आम आदमी को रोज़मर्रा के सरकारी कामकाज में रिश्वतखोरी से निजात दिलवाना। क्योंकि यह एक ऐसा भ्रष्टाचार है जिसने गांव में वोटरकार्ड बनवाने से लेकर पासपोर्ट बनवाने तक में लोगों का जीना हराम कर दिया है। इसके चलते ही एक सरकारी कर्मचारी किसी आम आदमी के साथ गुलामों जैसा व्यवहार करता है।

प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में इन दोनों उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए सख्त प्रावधान रखे गए हैं। आज किसी भी गली मोहल्ले में आम आदमी से पूछ लीजिए कि उन्हें इन दोनों तरह के भ्रष्टाचार से समाधान चाहिए या नहीं। देश के साथ ज़रा भी संवेदना रखने वाला कोई आदमी मना करेगा? सिवाय उन लोगों के जो व्यवस्था में खामी का फायदा उठा-उठाकर देश को दीमक की तरह खोखला बना रहे हैं।

जन्तर-मन्तर पर अन्ना हज़ारे के साथ लाखों की संख्या में खड़ी हुई जनता यही मांग बार-बार उठा रही थी। देश के कोने कोने से लोगों ने इस आन्दोलन को समर्थन इसलिए नहीं दिया था कि केन्द्र और राज्यों में लालबत्ती की गाड़ियों में सरकारी पैसा फूंकने के लिए कुछ और लोग लाएं जाएं। बल्कि इस सबसे आजिज़ जनता चाहती है कि भ्रष्टाचार का कोई समाधान निकले, रिश्वतखोरी का कोई समाधान निकले। भ्रष्टाचारियों में डर पैदा हो। सबको स्पष्ट हो कि भ्रष्टाचार किया तो अब जेल जाना तय है। रिश्वत मांगी तो नौकरी जाना तय है।

एक अच्छा और सख्त लोकपाल कानून आज देश की ज़रूरत है। लोकपाल कानून शायद देश का पहला ऐसा कानून होगा जो इतने बड़े स्तर पर जन-चर्चा और जन-समर्थन से बन रहा है। जन्तर-मन्तर पर अन्ना हज़ारे के उपवास और उससे खड़े हुए अभियान के चलते लोकपाल कानून बनने से पहले ही लोकप्रिय हो गया है। ऐसा नहीं है कि एक कानून के बनने मात्र से देश में भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा या इसके बाद रामराज आ जाएगा। जिस तरह भ्रष्टाचार के मूल में बहुत से तथ्य काम कर रहे हैं उसी तरह इसके निदान के लिए भी बहुत से कदम उठाने की ज़रूरत होगी और लोकपाल कानून उनमें से एक कदम है।

क्या कहता है जन लोकपाल कानून?


अन्ना हज़ारे साहब ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त कानून जन लोकपाल बिल पारित कराने के लिए देशभर में एक देशव्यापी आन्दोलन छेड़ा। ये जन लोकपाल कानून आखिर है क्या? आईए इसके बारें में हम थोड़ा और जानें :-

लोकपाल और लोकायुक्त का गठन
केन्द्र के अन्दर एक स्वतन्त्र संस्था का गठन किया जाएगा, जिसका नाम होगा जन लोकपाल। हर राज्य के अन्दर एक स्वतन्त्र संस्था का गठन किया जाएगा, जिसका नाम होगा जन लोकायुक्त। ये संस्थाएं सरकार से बिल्कुल पूरी तरह से स्वतन्त्र होगी। आज जितनी भी भ्रष्टाचार निरोधक संस्थाएं हैं जैसे सीबीआई, सीवीसी, डिपार्टमेण्ट विजिलेंस, स्टेट विजिलेंस डिपार्टमेण्ट, एण्टी करप्शन ब्रांच यह सारी की सारी संस्थाएं पूरी तरह सरकारी शिकंजे के अन्दर हैं। यानि कि उन्हीं लोगों के अन्दर हैं जिन लोगों ने भ्रष्टाचार किया है। यानि की चोर जो है वो ही पुलिस का मालिक बन बैठा है। हमने यह लिखा है कि इस कानून के तहत जन लोकपाल और जन लोकायुक्त यह पूरी तरह से सरकारी शिकंजे से बाहर होगी।

जन लोकपाल का स्वरूप
जन लोकपाल में दस सदस्य होंगे। एक चैयरमेन होगा उसी तरह से हर राज्य के जन लोकायुक्त में दस सदस्य होंगे एक चैयरमेन होगा।

लोकपाल और लोकायुक्त का काम


आम आदमी की शिकायत पर सुनवाई करेगा
जन लोकपाल केन्द्र सरकार के विभागों में हो रहे भ्रष्टाचार के बारे में शिकायतें प्राप्त करेगा और उन पर एक्शन लेगा। जन लोकायुक्त उस राज्य के सरकारी विभागों के बारे भ्रष्टाचार की शिकायतें लेगा और उन पर कार्यवाही करेगा।

तय समय सीमा में जांच पूरी कर दोषी के खिलाफ मुकदमा चलाना
देशभर में पंचायत से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक हर जगह हम भ्रष्टाचार देखते हैं। मिड डे मील में भ्रष्टाचार है, नरेगा में भ्रष्टाचार है, राशन में भ्रष्टाचार है, सड़क के बनने में भ्रष्टाचार है, उधर 2जी स्पेक्ट्रम का भ्रष्टाचार, कॉमनवेल्थ खेलों में भ्रष्टाचार है। आदर्श स्केम है, मंत्रियों का भ्रष्टाचार है और गांव में सरपंच का भ्रष्टाचार है।
इस कानून के तहत यह कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अगर लोकपाल में या लोकायुक्त में जाकर शिकायत करता है तो उस शिकायत के ऊपर जांच 6 महीने से 1 साल तक के अन्दर पूरी करनी पड़ेगी। अगर शिकायत की जांच करने के लिये लोकपाल के पास कर्मचारियों की कमी है तो लोकपाल को यह छूट दी गई है कि वह ज्यादा कर्मचारियों को लगा सकता है, लेकिन जांच को उसे एक साल के अन्दर पूरा करना पड़ेगा।

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की सुरक्षा
अगर आज भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करते हैं तो आपकी जान को खतरा होता है। लोगों को मार डाला जाता है, उनको तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है। लोकपाल के पास यह पावर होगी और उसकी यह जिम्मेदारी होगी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को संरक्षण देने का काम लोकपाल का होगा।

भ्रष्ट निजी कम्पनियों के खिलाफ कार्रवाई
अगर कोई कम्पनी या कोई बिजनेसमैन सरकार में रिश्वत दे कर कोई नाजायज काम करवाता है, तो आज भ्रष्टाचार निरोधक कानून में ये लिखा है कि जांच ऐजेंसी को ये सबूत इकट्ठा करना पड़ता है, वो ये दिखा सके कि रिश्वत दी गई और रिश्वत ली गई। ये साबित करना बड़ा मुश्किल होता है क्योंकि वहां कोई गवाह मौजूद नहीं होता। इसमें हमने कानून में यह लिखा है अगर कोई बिजनेसमैन या कोई कम्पनी सरकार से कोई भी ऐसा काम करवाती है जो की कानून के खिलाफ है, जो कि गलत है तो ये मान लिया जायेगा कि ये काम रिश्वत दे कर और रिश्वत लेकर किया गया है। इसमें जांच ऐजेंसी को ये साबित करने की जरूरत नहीं होगी कि रिश्वत ली गई या दी गई।

भ्रष्टाचारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई करेगा जन लोकपाल?


जांच होने के बाद लोकपाल दो कार्यवाही करेगा -
(01) एक तो ये कि जो भ्रष्ट अपफसर है उसको नौकरी से निकालने की पावर लोकपाल के पास होगी। उनको एक सुनवाई (हियरिंग) देकर, जांच के दौरान जो सबूत और गवाह मिले उनकी सुनवाई करके, लोकपाल दोषी अधिकारी को नौकरी से निकालने का दण्ड देगा या उनके खिलाफ विभागी कार्रवाई का आदेश देगा या कोई और भी पेनल्टी लगा सकता है। जैसे उनकी तरक्की रोकना, उनकी इन्क्रीमेण्ट रोकना आदि। इस तरह की भी पेनल्टी उन पर लगा सकता है।

(02) दूसरी चीज़ जो लोकपाल करेगा वो ये कि जांच के तहत जो सबूत मिले उन सबके आधार पर वह ट्रायल कोर्ट के अन्दर मुकदमा दायर करेगा और इन लोगों को जेल भिजवाने की कार्यवाही शुरू करेगा।

तो कुल मिलाकर दो चीज़े हो गई। एक तो उनको नौकरी से निकालने की कार्यवाही शुरू हो जाएगी। इसका अधिकार लोकपाल को होगा। वह सीधे-सीधे आदेश देगा उन्हें नौकरी से निकालने के लिए और दूसरा ये कि उन्हें जेल भेजने के लिये अदालत में मुकदमा दायर किया जाएगा।

जन लोकपाल कानून बनने के बाद भ्रष्टाचारियों को क्या सजा हो सकती है?


भ्रष्टाचार साबित होने पर एक साल से लेकर उम्र भर के लिए जेल
आज हमारे भ्रष्टाचार निरोधक कानून में भ्रष्टाचार के लिए कम से कम 6 महीने की सज़ा का प्रावधान है और ज्यादा से ज्यादा सात साल की सज़ा का प्रावधान है। जनलोकपाल कानून में यह कहना है कि इसे बढ़ाकर कम से कम एक साल और ज्यादा से उम्र कैद यानि कि पूरी जिन्दगी के कारावास का प्रावधान किया जाना चाहिए।

भ्रष्टाचार से देश को हुए नुकसान की वसूली
आज हमारी पूरी भ्रष्टाचार निरोधक सिस्टम के अन्दर अगर किसी को सज़ा भी होती है, तो ऐसा कहीं भी नहीं लिखा कि उसने जितना पैसा रिश्वत में कमाया या जितना पैसा जितना उसने सरकार को चूना लगाया वो उससे वापस लिया जाएगा। तो जैसे केन्द्र सरकार मे मंत्री रहते हुए ए.राजा ने, ऐसा कहा जा रहा है कि उसने तीन हजार करोड़ रूपयों की रिश्वत ली, दो लाख करोड़ का उसने चूना लगाया। अब अगर ए.राजा को सज़ा भी होती है तो हमारे कानून के तहत उसको अधिकतम सात साल की सज़ा हो सकती है और सात साल बाद वापस आकर वो तीन हजार करोड़ रूपये उसके। हमने इस कानून में ये प्रावधान किया है कि सज़ा सुनाते वक्त ये जज की ज़िम्मेदारी होगी कि जितना उसने सरकारी खज़ाने को चूना लगाया है, यानि उस भ्रष्ट अफसर और भ्रष्ट नेता ने सरकार को जितना चूना लगाया है ये जज की जिम्मेदारी होगी कि वो सारा का सारा पैसा उससे रिकवर करने के लिए, उससे वापस लेने के लिए आदेश किए जाए और उससे रिकवर किए जाए।

जांच के दौरान आरोपी की सम्पत्ति के हस्तान्तरण पर रोक
जांच के दौरान अगर लोकपाल को ये लगता है कि किसी अधिकारी या नेता के खिलाफ सबूत सख्त हैं, तो लोकपाल उनकी सारी सम्पत्ति, उनकी जायदाद की पूरी लिस्ट बनाएगा और उसका नोटिफिकेशन जारी करेगा। नोटिफिकेशन जारी होने के बाद भ्रष्ट व्यक्ति उस सम्पत्ति को ट्रांसफर नहीं कर सकता। यानि न किसी के नाम कर सकता है और न ही बेच सकता है।
नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि जैसे ही उसे पता चले तो वह अपनी सारी की सारी सम्पत्ति ट्रांसफर करदे और उसने सरकार को जितना चूना लगाया, उसकी सारी रिकवरी हो न पाए।

नेताओं, अधिकारीयों और जजों की सम्पत्ति की घोषणा
कानून में ये प्रावधान दिया गया है कि हर अफसर को और हर नेता को हर साल के शुरूआत में अपनी अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा वेबसाइट पर डालना पड़ेगा और अगर बाद में ऐसी कोई सम्पत्ति मिलती है, जिसका ब्यौरा उन्होंने वेबसाइट पर नहीं डाला, तो यह मान लिया जाएगा कि वो सम्पत्ति उन्होंने भ्रष्टाचार के जरिए हासिल की है और उस सम्पत्ति को जब्त करके उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा दायर किया जाएगा।

आम आदमी की शिकायतों का समाधान


हर विभाग में सिटीज़न चार्टर:
एक आम आदमी जब किसी सरकारी दफ्तर में जाता है, उसे राशन कार्ड बनवाना है, उसे पासपोर्ट बनवाना है, उसे विधवा पेंशन लेनी है, उससे रिश्वत मांगी जाती है और अगर वो रिश्वत नहीं देता तो उसका काम नहीं किया जाता। जन लोकपाल बिल के अन्दर ऐसे लोगों को भी सहायता प्रदान करने की बात कही गई है। इस कानून के मुताबिक हर विभाग को एक सिटीज़न्स चार्टर बनाना पडे़गा। उस सिटीज़न्स चार्टर में ये लिखना पड़ेगा कि वो विभाग कौन सा काम कितने दिन में करेगा, कौन ऑफिसर करेगा, जैसे ड्राईविंग लाईसेंस कौन अपफसर बनाएगा, कितने दिन में बनाएगा, राशन कार्ड कौन ऑफिसर बनाएगा, कितने दिन में बनाएगा, विधवा पेंशन कौन ऑफिसर बनाएगा कितने दिनों में बनाएगा...। इसकी लिस्ट हर विभाग को जारी करनी पड़ेगी।

सिटीज़न चार्टर का पालन विभाग के मुखिया की ज़िम्मेदारी
कोई भी नागरिक अगर उसको कोई काम करवाना है तो वो नागरिक उस विभाग में उस अफसर के पास जाएगा अपना काम करवाने के लिए, अगर वो अधिकारी उतने दिनों में काम नहीं करता तो फिर ये नागरिक हैड ऑफ द डिपार्टमेण्ट को शिकायत करेगा हैड ऑफ डिपार्टमेण्ट को जन शिकायत अधिकारी नोटिफाई किया जायेगा। हैड ऑफ डिपार्टमेण्ट का यह काम होगा कि अगले 30 दिन के अन्दर उस काम को कराए।

विभाग का मुखिया काम न करे तो लोकपाल के विजिलेंस अफसर को शिकायत:
विभाग का मुखिया भी अगर काम नहीं कराता तो, नागरिक लोकपाल या लोकायुक्त में जाकर शिकायत कर सकता है। लोकपाल का हर ज़िले के अन्दर एक न एक विजिलेंस अफसर जरूर नियुक्त होगा, लोकायुक्त का हर ब्लॉक के अन्दर एक न एक विजिलेंस अफसर जरूर नियुक्त होगा। नागरिक अपने इलाके के विजिलेंस अफसर के पास जा कर शिकायत करेगा, विजिलेंस अफसर के पास जब शिकायत जायेगी तो यह मान लिया जायेगा कि यह हैड ऑफ डिपार्टमेण्ट ने और उस ऑफिसर ने भ्रष्टाचार की उम्मीद में, रिश्वतखोरी की उम्मीद में यह काम नहीं किया। ये मान लिया जाएगा।

लोकपाल के विजिलेंस ऑफिसर की ज़िम्मेदारी
जन-लोकपाल या लोकायुक्त के विजिलेंस अफसर को तीन काम करने पड़ेंगे-
  1. नागरिक का काम 30 दिन में करना होगा,
  2. हैड ऑफ डिपार्टमेण्ट और उस अफसर के ऊपर पैनल्टी लगाएगा, जो उनकी तनख्वाह से काटकर नागरिक को मुआवज़े के रूप में दी जायेगी।
  3. विभाग के अधिकारी और हैड ऑफ डिपार्टमेण्ट के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला शुरू किया जायेगा, तहकीकात शुरू की जायेगी और भ्रष्टाचार की कार्यवाही इन दोनों के खिलाफ की जायेगी. ये काम विजिलेंस अफसर को करना होगा।

इससे हमें यह उम्मीद है कि अगर हैड ऑफ डिपार्टमेण्ट के खिलाफ 3-4 पैनल्टी भी लग गई या 3-4 केस भी भ्रष्टाचार के लग गये तो वो अपने पूरे डिपार्टमेण्ट को बुलाकर कहेगा कि आगे से एक भी ऐसी शिकायत नहीं आनी चाहिए। इससे हमें ये लगता है कि आम आदमी के लेवल पर भी लोगों को तेज़ी से राहत मिलनी चालू हो जाएगी।

क्या जनलोकपाल भ्रष्ट नहीं होगा?


कुछ लोगों का यह कहना है कि लोकपाल के अन्दर अगर भ्रष्टाचार हो गया तो उसे कैसे रोका जायेगा? यह बहुत जायज बात है। इसके लिए कई सारी चीज़े इस कानून में डाली गई है। सबसे पहले तो ये कि लोकपाल के मैम्बर्स का और चैयरमेन का चयन जो किया जाएगा वो कैसे किया जाता है। वो बहुत ही पारदर्शी तरीके से किया जायेगा।

लोकपाल की नियुक्ति पारदर्शी और जनता की भागीदारी से
जन लोकपाल और जन लोकायुक्त में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इस काम के लिए सही लोगों का चयन हो। लोकपाल के चयन की प्रकिया को पारदर्शी और व्यापक आधार वाला बनाया जाएगा। जिसमें लोगों की पूरी भागीदारी होगी। इसके लिए एक चयन समिति बनाई जाएगी। समिति में निम्नलिखित लोग होंगे -
(01) प्रधानमंत्री,
(02) लोकसभा में विपक्ष के नेता,
(03) दो सबसे कम उम्र के सुप्रीम कोर्ट के जज,
(04) दो सबसे कम उम्र के हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश,
(05) भारत के नियन्त्रक महालेखा परीक्षक, और
(06) मुख्य निर्वाचन आयुक्त होंगे।

चयन समिति भी सही लोगों का चयन करे
चयन समिति में जितने लोग शामिल हैं वे बहुत बड़े पद वाले लोग हैं, और भ्रष्टाचार के प्रभाव से मुक्त नहीं हैं। यह सभी लोग बहुत व्यस्त भी रहते हैं। अत: यह भी सम्भव है कि ये अपने मातहत अफसरों के माध्यम से अथवा किसी राजनीतिक दवाब में गलत लोगों को जनलोकपाल बना दें। इसलिए चयन समिति को जनलोकपाल के सदस्यों और अध्यक्ष पद के सम्भावित उम्मीदवारों के नाम देने का काम एक सर्च कमेटी करेगी।

लोकपाल के लिए योग्य व्यक्तियों की खोज के लिए सर्च कमेटी
चयन समिति योग्य लोगों का चयन उस सूची में करेगी जो उसे सर्च कमेटी द्वारा मुहैया करवाई जाएगी। सर्च कमेटी का काम होगा योग्य और निष्ठावान उम्मीदवारों के नाम चयन समिति को देना। सर्च कमेटी में सबसे पहले पूर्व सीईसी और पूर्व सीएजी में पांच सदस्य चुने जाएंगे। इसमें वो पूर्व सीईसी और पूर्व सीएजी शामिल नहीं होंगे जो दाग़ी हो या किसी राजनैतिक पार्टी से जुड़े हों या अब भी किसी सरकारी सेवा में काम कर रहे हों। यह पांच सदस्य बाकी के पांच सदस्य का चयन देश के सम्मानित लोगों में से करेंगे। और इस तरह दस लोगों की सर्च कमेटी बनाई जाएगी।

सर्च कमेटी का काम और जनता की राय
सर्च कमेटी विभिन्न सम्मानित लोगों जैसे- सम्पादकों, बार एसोसिएशनों, वाइज़ चांसलरों से या जिनको वो ठीक समझे उनसे सुझाव मांगेगी। इनसे मिले नाम और सुझाव वेबसाईट पर डाले जाएंगे। जिस पर जनता की राय ली जाएगी। इसके बाद सर्च कमेटी की मीटिंग होगी जिसमें आम राय से रिक्त पदों से तिगुनी संख्या में उम्मीदवारों को चुना जाएगा। ये सूची चयन समिति को भेजी जाएगी। जो लोकपाल के लिए सदस्यों का चयन करेगी। सर्च कमेटी और चयन समिति की सभी बैठकों की वीडियों रिकॉर्डिंग होगी। जिसे सार्वजनिक किया जाएगा। इसके बाद जन लोकपाल और जन लोकायुक्त अपने कार्यालय के अधिकारीयों का चयन करेगें। उनकी नियुक्ति करेंगे।

भ्रष्ट लोकपाल को हटाने की प्रक्रिया
लोकपाल के चयन को पूरी तरह से पारदर्शी और जनता के भागीदारी से किया जा रहा है। अगर लोकपाल भ्रष्ट हो जाता है तो उसको निकालने की कार्यवाही भी बहुत सिम्पल है। कोई भी नागरिक सुप्रीम कोर्ट में शिकायत करेगा, सुप्रीम कोर्ट को हर शिकायत को सुनना पड़ेगा। पहली सुनवाई में अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि पहली नज़र में मामला बनता है तो सुप्रीम कोर्ट एक जांच बैठाएगी, तीन महीने में जांच पूरी होनी होगी और अगर जांच में कोई सबूत मिलता हैं तो सुप्रीम कोर्ट उस मेम्बर को निकालने के लिए राष्ट्रपति को लिखेगा और राष्ट्रपति को उस मैम्बर या चैयरमेन को निकालना पड़ेगा।

क्या जन लोकपाल दफ्तर में भ्रष्टाचार नहीं होगा?


दो महीने में सख्त कार्रवाई
अगर लोकपाल या लोकायुक्त के किसी स्टाफ के खिलाफ कोई भ्रष्टाचार की शिकायत आती है तो उस शिकायत को लोकपाल में किया जायेगा और उसके ऊपर एक महीने में जांच पूरी होगी और अगर जांच के दौरान उस स्टाफ मैम्बर के खिलाफ अगर कोई सबूत मिलता है तो उस स्टाफ को अगले एक महीने में नौकरी से सीधे निकाल दिया जायेगा ताकि वो जांच को बेईमानी से न करे।

कामकाज पारदर्शी होगा
लोकपाल के अन्दर की काम-काज की प्रक्रिया को पूरी तरह से पारदर्शी बनाने के लिये इसमें लिखा गया है- जब जांच चल रही होगी तब जांच से सम्बंधित सारे दस्तावेज़ भी पारदर्शी होने चाहिए। लेकिन ऐसे दस्तावेज़ जिनका सार्वजनिक होना जांच में बाधा पहुंचा सकता है, उन्हें तब तक सार्वजनिक नहीं किया जाएगा जब तक कि लोकपाल ऐसा समझता है। लेकिन जांच पूरी होने के बाद किसी भी केस में सारे दस्तावेज़ उस जांच से सम्बंधित वेबसाइट में डालने जरूरी होंगे। ताकि जनता ये देख सकें कि इस जांच में हेरा फेरी तो नहीं हुई।
दूसरी चीज, हर महीने लोकपाल / लोकायुक्त को अपनी वेबसाइट पर लिखना पड़ेगा कि किस-किस की शिकायतें आईं, शिकायतें किस-किस के खिलाफ आई, मोटे-मोटे तौर पर शिकायत क्या थी, उस पर क्या कार्यवाई की गई, कितनी पेण्डिंग है, कितनी बन्द कर दी गई, कितने में मुकदमें दायर किये गये, कितनों को नौकरी से निकाल दिया गया या क्या सज़ा दी गई ये सारी बातें लोकपाल / लोकायुक्त को अपनी वेबसाइट पर रखनी होंगी।

शिकायतों की सुनवाई जरूरी
कई बार देखने में आया कि जांच ऐजेंसी के अधिकारी शिकायतों पर कार्यवाही नहीं करते और सेटिंग करके जांच को बन्द कर देते है। और जो शिकायतकर्ता है उसको कुछ भी नहीं बताया जाता कि जांच का क्या हुआ। इसीलिए यहां के कानून में यह प्रावधान डाला गया है कि किसी भी जांच को बिना शिकायतकर्ता को बताए बन्द नहीं किया जायेगा। हर जांच को बन्द करने के पहले शिकायतकर्ता की सुनवाई की जायेगी और अगर जांच बन्द की जाती है तो उस जांच से सम्बंधित सारे कागज़ात खुले पब्लिक में वेबसाईट पर डाल दिये जायेंगे ताकि सब लोग देख सकें कि जांच ठीक हुई है या नहीं।
आप भाई लोगो से निवेदन है | की आप सब इस पे अपने विचार जरुर रखे

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5.8.11

इन इज्जतदारों का क्या करें


इज्जत के नाम पर बहनों और बेटियों को मौत के घाट उतार रहे इज्जतदार लोगों का क्या किया जाए, यह आज के हिंदुस्तान का सबसे बड़ा सोशल इशू बन गया है।

क्या इसका जवाब हमारे नुमाइंदों के पास है, जो कोई भी कानून बना सकते हैं? क्या अदालतों के पास ऐसी पावर है कि हथौडे़ की एक चोट से समाज का दिमाग ठीक कर दें? क्या आपके या हमारे पास कोई जवाब है, जो इस दर्दनाक सिलसिले को यहीं रोक दे?

दिलचस्प बात यह है कि इशू जितना बड़ा होता है, उतने उत्साह और उतनी आसानी से उसके जवाब पेश किए जाने लगते हैं। लिहाजा ऑनर किलिंग पर भी सबके पास जवाब तैयार हैं। हमारे लॉ मिनिस्टर वादा कर रहे हैं कि जल्द ही एक बेहद सख्त कानून बनाया जाएगा, जो हत्यारों के होश उड़ा देगा।

अदालतों ने कानून के रखवालों को फटकारने में लफ्जों की कोई कमी नहीं होने दी है। उनका रुख अल्टिमेटम जैसा है, जिसे माने जाते ही हालात सुधर जाएंगे। आप-हम कह रहे हैं कि गुनाहगारों को सरेआम फांसी दे दी जानी चाहिए। या फिर बहुत से लोग यह भी कह रहे होंगे कि लड़कियां अपना चाल-चलन सुधार लें तो ऐसी नौबत ही नहीं आएगी।

क्या हम उम्मीद करें कि इनमें से कोई बात असर कर जाएगी और इक्कीसवीं सदी के भारत को इस नई महामारी से उबारा जा सकेगा? यही उम्मीद वे तमाम जोड़े कर रहे हैं, जिनकी फरियादों से देश भर की अदालतों या पुलिस थानों की फाइलें मोटी होती जा रही हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। इस देश में इतने जोड़ों ने अपनों से हिफाजत की इतनी गुजारिश पहले कभी नहीं की।

तो हमारी स्ट्रैटिजी क्या है? एक कानून जल्द ही आप बनता देखेंगे, जिसमें ऑनर किलिंग को एक अलग जुर्म का दर्जा मिल जाएगा, ऐसा जुर्म जिसके साथ कोई मुरव्वत नहीं होगी, जिससे दहेज हत्या की तरह आरोपी को खुद बचना होगा। यह कानून जब तक अपना काम करे, अदालतें पूरी मशीनरी को अलर्ट कर चुकी होंगी। खतरे में पड़े हर जोड़े के सिर पर कानून का हाथ होगा, बुरी नजरें उस तक पहुंच भी नहीं पाएंगी।

अगर आपका सामना ऑनर किलिंग से हुआ हो, या फिर एलएसडी में काटे जाते प्रेमियों की चीखें आपको अब भी तकलीफ दे रही हों, तो ये बातें राहत देने वाली पॉजिटिव न्यूज का काम कर सकती हैं। लेकिन क्या ऑनर किलिंग का वायरस ऐसी वैक्सीन से ठंडा हो जाएगा? कानून भी उसी पर काम करता है, जो कानून को मानता हो। जो लोग यह कहते सुनाई दें कि उन्हें अपनी बहन-बेटियों के कत्ल का कोई अफसोस नहीं है, क्योंकि समाज की मर्यादा सबसे बड़ी चीज है और कोई उन्हें नीची निगाह से देखे, यह मंजूर नहीं किया जा सकता, तो आपका कानून क्या कर लेगा? कुछ लोग कानून तोड़ बैठते हैं और कुछ का पेशा ही कानून तोड़ना हो जाता है। कानून सिर्फ पहली कतार पर लागू होता है।

अब अगर कानून से लोगों की सोच नहीं बदली जा सकती, तो कैसे बदली जा सकती है? सामाजिक संस्कारों से, तालीम से, मजहब से और बड़े लोगों की मिसालों से। दरअसल समाज के कायदे इन्हीं से बनते हैं और कानून बाद में इन्हें ठोस शक्ल देता है या कुछ सुधार लाता है। ऑनर किलिंग वाले समाज में यह साफ है कि सामाजिक मान्यताएं किसी पुराने वक्त पर अटकी रह गई हैं।

उनमें सुधार नहीं हुआ है। यानी बदलाव की सामाजिक ताकतों ने वहां उपना करना बंद कर दिया है। इस रुकी हुई घड़ी को कौन ठीक करेगा? क्या वे संत और गुरु, जो इधर काफी पॉपुलर होते जा रहे हैं? क्या वे सुधार की कोई मुहिम चलाने की तकलीफ करेंगे? क्या उसी समाज के कुछ समझदार लोग बदलाव की जिम्मेदारी लेना चाहेंगे? क्या ऐसी शख्सियतें मिलेंगी, जिन्हें लोग सुनना पसंद करेंगे? आज के जमाने में, जब कोई कुछ सीखने-समझने को तैयार नहीं होता, क्या सुधार का ट्रडिशनल प्रोसेस अपना काम करेगा?

सच तो यह है कि यह सब पढ़कर आप भी बोर ही हो रहे होंगे। धीमे सुस्त तरीके अब बेकार हो चुके हैं। यही ऑनर किलिंग का पेच है। दिमाग कहीं अटक गए हैं, क्योंकि उन्हें खुलने की कोई जरूरत नहीं है। तरक्की का सबसे बड़ा पैमाना पैसा तो बिना खुद को बदले हासिल किया जा सकता है। हम अपनी दुनिया में मस्त रह सकते हैं और वह भी अपनी शर्तों पर। मॉडर्न लगने के लिए मॉडर्न सोच जरूरी है, यह तो कहीं लिखा नहीं है, बल्कि यह हो सकता है कि मॉडर्न-शॉडर्न के नाम पर हो रही कांय-कांय ही हमें अपनी ट्रडिशन का पहले से ज्यादा मुरीद बना दे।

एक कशमकश, एक जंग हिंदुस्तान के दिल पर कब्जे के लिए चल रही है। जब भी नया और पुराना भारत करीब आते हैं, रगड़ खाते हैं। मॉडर्निटी पुराने भारत को डराती है, बदले में उसे परंपरा का हमला झेलना पड़ता है। यह हमला अब खून बनकर शहरों की गलियों में भी बहने लगा है। हम चाह सकते हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए, लेकिन ऐसा होना ही था। यह जंग कभी न कभी होनी थी।

मैं मानता हूं, इस जंग में किसी भी कानून, किसी अदालत या मुहिम को फैसला करने का मौका नहीं मिलेगा। फैसला वही करेंगे, जो निशाने पर हैं। और उनकी तादाद बढ़ने वाली है, क्योंकि वे हार मानने के मूड में नहीं हैं। वे क्यों मानेंगे, जब दुनिया की सबसे बड़ी ताकत उनके साथ है - मॉडर्निटी। नए को पुराने से हार माननी पड़ी है, ऐसा आज तक तो कभी नहीं हुआ।

4.8.11

ये रिश्ता क्या कहलाता है....?

ये रिश्ता क्या कहलाता है....?

काश! मै तुम से कह पाती, मुझे तुम से कितनी मोहब्बत है. इतनी की जब, तुम्हारे माथे पर झिलमिलाती पसीने की कोई बूँद दिखती है तो जी में आता है, उसे अपने लबों से खुद में जज़्ब कर लूं, इतनी की जब, तुम्हारी उदास आँखों की खल्वतों में झांकती हूँ तो लगता है की इसे अपनी हंसी के झाड़ -फानूस से रोशन कर दूं; इतनी की जब, तुम्हारे माथे पर जमी सफ़र की गर्द देखती हूँ तो जी में ख्याल आता है कि, उसे अपने दुपट्टे से पोंछ डालूँ!; इतनी की जब, खुद को देखूं तो बस तुम ही तुम नज़र आते हो. तुम्हे पता है, जब तुम साथ होते हो तो धड़कने बेकाबू नहीं होती, मगर एहसास होता है जैसे मै ज़िन्दाहूँ!
खुद को कई बार तुम्हारे पंखों से परवाज़ करते देखा है, मैंने नील-गगन में!
मगर क्या तुम जानते हो, "हम क्या हैं?" पति-पत्नी हम हो नहीं सकते, क्योंकि तुम्हारी निगाह में यह रिश्ता बोसीदा और पुराना है, "लिव-इन" तुम हम रह नहीं सकते क्योंकि तुम इतने आज़ाद ख्याल हुए नहीं हो और मेरे संस्कार मुझे इजाज़त नहीं देते; रहा सवाल मोहब्बत का, "झुटलाया नहीं जा सकता कि वह हम में नहीं है, अब.....??? दोस्त तुम होना नहीं चाहते क्योंकि जानते हो तुम "मै अपने दोस्तों को खुद को छूने तो दूर बेकार बातें पूछने की भी इजाज़त नहीं देती!!!!"
तुम ही बताओ! क्या नाम दे दें इसे? एक दिन मैंने तुम से पूछा था, तुमने कहा था "सिर्फ एहसास है ये, रूह से महसूस करो/हाथ से छू के इसे रिश्तों का इलज़ाम न दो!" मै भी मुतम'इन हो कर खुद को उड़ा उड़ा महसूस करने लगी थी ; लगता था, कितनी खुश-किस्मत हूँ मै! मुझे अपने प्रेमी में, बैरन, पुश्किन या बर्नोर्ड शा, से कम कुछ नज़र ही नहीं आता था, पर उस दिन, जब जीत सर ने कहा था, "आओ पृथा एक एक कप काफी हो जाए" और सर झुका कर मैंने बगैर तुम्हे इजाज़त मांगने वाली नज़रों से देखे, उनके पीछे अपने क़दम बढ़ा दिए थे, वापसी में कितनी जोर से चीखे थे तुम, "तुम तो धंधा कर लो पृथा!" खून के आंसू, आँखों में ही रोक पलट आई थी मै! दादी के अलफ़ाज़ बेसाख्ता कानो में गूँज रहे थे, " औरत की शान तो बस चादर में ही है बेटी! रब ने उसे सिर्फ जिस्म ही तो बनाया है, वह कितनी ही ऊंची उठ जाए, कितनी ही पढ़ लिख जाए, मर्द को बस वह अपनी पेशानी से थोड़े नीचे ही अच्छी लगती है. मालिक ने औरत को समर्पण की फितरत दी है, और मर्द को हाकिम बनाया है." अगर तुमने उससे खुद के समर्पित हो जाने का हक नहीं लिया तो तुम फितरतन जिस दीवार पर टिकी हो उसी का सहारा ले लोगी, और वह (फितरी तौर पर, जल कुढ़ कर ) तुम्हारा इस्तेमाल कर तुम्हें फेंक एक नई औरत तलाशेगा, और फिर उसको अपने शरीक-इ-ज़िंदगी बना धीरे से फुसफुसाएगा,"जानती हो! गंदी औरत है वह!" बहुत कम मर्दों में औरत को ऐसे मोहब्बत करने की ताक़त होती है, जिसे जिस्मानी मोहब्बत नहीं कहते, सही मानो में ऐसे मर्द ही, खलील जिब्रान हो जातें हैं! मर्द कम फ़रिश्ते!!! .......दस् औरतों से टिका मर्द, मर्द ही कहलाता है, और दो मर्द ही ज़िंदगी में आ जाएं न! तो, हम खुद को ही नापसंद करने लग जातीं है !"
आज महसूस हुआ दादी सही थी, वाकई जीत सर से नोट्स हासिल करने के लिए तुम्ही ने तो मुझे उनसे मिलवाया था, और जब मेरी ज़हानत की तारीफ़ करते करते उन्होंने तुम्हे नोट्स दिए थे, तब तो तुम्हे कुछ नहीं लगा था, शुक्र है रब का, बोट क्लब में साथ साथ खड़े होकर कोफी पीते वक्त जब तुम मुझे हाथ लगाने की मिन्नत कर रहे थे, मैंने तुम्हे छूने नहीं दिया! हालांकि पिंकी ने मुझे कहा था,"क्या पृथा! तुम अपने नाम की तरह ही पुरानी हो! हाथ नहीं लगाने दोगी तो, तुमसे शादी कैसे करेगा वह!" (तब पता नहीं था, कि शादी तुम्हारी नज़र में आउट आफ फैशन है, पर तुम्हारी मर्जी के बगैर कहीं चले जाने पर तुम आसमान सर पर उठा लेते हो ) समीकरण बहुत तेज़ी से बदल गए हैं दोस्त! आज जाना कि चादर में सुकून है, बहुत सुकून! मै कोई धर्मात्मा नहीं हूँ ,जो अपना शरीर ,मन, आत्मा और प्यार तुम्हे दान दे दूं !अगर कोई सामाजिक सम्बन्ध कायम करने की हिम्मत है तो ही मुझसे कुछ भी चाहने की इच्छा करना, वरना दादी ने कहा है, "बेटी! मर्द वही होते हैं जो ख़म फटकार के औरत को इज्ज़त, घर और मोहब्बत दे सकते हैं, वरना औरत का साथ तो भ....ड....(जाने दो!) को भी मिल जाता है,
और हां! एक बात सुन लो! मुन्नू हलवाई तुम्हारी तरह इंजिनीअर नहीं, मगर उसे मेरे रहन सहन, तौर तरीकों से कोई गुरेज़ नहीं , वह मुझे परदे में भी रखेगा और पढने भी देगा! मैंने खूब सोंच समझ कर फैसला लिया है कि जब दादी के अनुसार मेरी फितरत ही मोहब्बत है, तो क्यों न ये किसी सही आदमी को दी जाए, वह मुझसे शादी करने को तैयार है, हम अगले माह की दो को शायद तुम्हारा मूह भी मीठा करवा दे, "क्योंकि दादी ने कहा है, आदमी डिग्री या काम से बड़ा नहीं बनता, बल्कि ज़हानत या आदमियत से बड़ा बनता है,"
सुनो! तुम दुआ करना उप्पर लिखा सारा प्यार मैं मुन्नू से कर सकूं, शायद आगे की ज़िंदगी जीने में आसानी हो जाएगी! और हाँ! कभी कभी दादी के पास आ जाया करना, मेरे जाने के बाद वह बहुत अकेली हो जाएँगी! शायद तुमसे खुश होकर वह तुम्हे भी बता दें कि "सही मर्द" क्या होता है, भई! मेरी ज़िंदगी तो उन्ही की सलाहों से सुधरी है, "शुक्रिया दादी" कहे बगैर मत आना ,उन्हें अच्छा नहीं लगता,, हाँ! दोस्त तो तुमने मुझे कभी कहा नहीं, पर अगर दुशमन नहीं मानते तो मेरी सलाह मान कर देखना! एक बार दादी के पास ज़रूर जाना, ज़िन्दगी ठीक ठाक जीने का हुनर आ जाएगा! अच्छा अब ख़त्म करती हूँ
कहा सुना माफ़ कर देना.
तुम्हारी
मैं .


क्या इन टोटको से भर्ष्टाचार खत्म हो सकता है ? आप देखिए कि अन्ना कैसे-कैसे बयान दे रहे हैं? शरद पवार भ्रष्ट हैं। भ्रष्टाचार पर बनी जीओएम (मंत्रिसमूह) में फला-फलां और फलां मंत्री हैं। इसलिए इस समिति का कोई भविष्य नहीं है। पवार को तो मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देना चाहिए। पवार का बचाव करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर पवार के मंत्रिमंडल से बाहर हो जाने से भ्रष्टाचार