लोकतंत्र का अर्थ नहीं वह,
जो सब हमको बतलाते हैं |
लोकतंत्र का सही अर्थ अब,
हम सब को ही बतलाते हैं ||
सबको सब ही अधिकार भला,
इस दुनिया में कब होते हैं ?
पिता,पिता ही होता है . औ-
पुत्र , पुत्र ही तो होते हैं ||
सैनिक राजा जज अपराधी ,
सबके अधिकार सामान कहाँ ?
क्यों मेले, ठेले, रेलों में --
अलग अलग दर्जे होते हैं ||
अलग अलग क्यों वृत्ति भला,
सेवा योजित की होती है |
अलग अलग सुविधाएं भी क्यों ,
मंत्री सन्त्री की होती हैं ||
इसका अर्थ यही है, सबके-
अधिकार सामान नहीं होते |
यथा-योग्य अधिकार ही सदा,
हर व्यक्ति -व्यक्ति के होते हैं ||
जिसके जैसे गुण व कर्म हैं ,
मन में जो जनहित भाव खिला |
उसके ही अनुरूप सभी को,
सम्मान व समता भाव मिला ||
सबको अपनी अपनी क्षमता,
और योग्यता के अनुरूप |
कार्य और सम्मान मिले, यह-
लोकतंत्र का सच्चा रूप ||
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