15.5.11

पीढ़ियां तबाह करता है बाल विवाह

पीढ़ियां तबाह करता है बाल विवाह

1. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बाल विवाह और इससे महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़नेवाले व्यापक दुष्प्रभावों की बहुत कम चर्चा होती है
2. बाल विवाह पूरी दुनिया में होते हैं लेकिन खासतौर पर इनका प्रचलन दक्षिणी ऐशयासब-सहारन अफ्रीका के कुछ हिस्सों में है.
3. बाल विवाह की इतनी भयावहता के बावजूद इसे हल करने के लिए होनेवाले प्रयासों की गंभीरता में कमी नजर आती है.
सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों की समीक्षा के लिए  न्यूयॉर्क में चल रहे संयुक्त राष्ट्र के शिखर सम्मेलन में उन क्षेत्रों पर बहस की जरूरत है. जहां से हमें सर्वाधिक निराशाजनक परिणाम मिले हैं. इनमें से सबसे ऊपर है सबसे गरीब देशों में मातृ स्वास्थ्य के सुधार में असफ़लता. ऐसी चर्चायें होती रही हैं कि जिन विकासशील देशों में संसाधनों का उचित इस्तेमाल हुआ है,उनके लिए धनी देश सहायता राशि बढ़ायें.

पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बाल विवाह और इससे महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की बहुत कम चर्चा हुई है.हमारे सामने ऐसे प्रमाण मौजूद हैं कि बाल विवाह
आठ सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों में से छ: की ओर आगे बढ़ने में बहुत बड़ी रुकावट है. शिशु और मातृ मृत्यु दर को कम करनेएचआइवी/एड्स से लड़ने और सार्वभौम बुनियादी शिक्षा को हासिल करने के वैश्विक लक्ष्यों को सबसे बड़ा झटका इसी बात से लगता है कि विकासशील देशों में हर में से लड़की का विवाह 15 वर्ष की उम्र तक पहुंचने के पहले ही कर दिया जाता है.

बाल विवाह भयानक गरीबी को समाप्त करने और जेंडर बराबरी के प्रयासों को भी धक्का पहुंचाता है.आंकड़े बहुत साफ़ हैं. गरीब देशों में 
18 साल से कम उम्र की मांओं से पैदा हुए बच्चों की पहले ही साल में मृत्यु की संभावना प्रौढ़ मांओं के बच्चे की अपेक्षा 60 प्रतिशत अधिक होती है. गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के समय 15 साल से कम उम्र की मांओं की मृत्यु की संभावना 20 वर्ष की उम्र से ऊपर की मांओं की अपेक्षा गुना अधिक होती है.

सूचनाओं का अभाव
अधिक उम्र के पुरुष से विवाह और सुरक्षित यौन संबंधों का अभाव बाल विवाहिताओं में एचआइवी संक्रमण के खतरे को उन्हीं उम्र की अविवाहित लड़कियों की अपेक्षा काफ़ी बढ़ा देता है.इतना ही नहींबाल विवाहिताओं को पढ़ाई छोड़ देनी पड़ती है ताकि वे घर के काम पर ध्यान दे सकें और बच्चों को पाल सकें. लेकिन पढ़ाई कर रही लड़कियों के खिलाफ़ यह दुराग्रह और भी पहले शुरू हो जाता है.

जिन समाजों में लड़कियों का बहुत जल्दी विवाह कर दिया जाता है उनमें उनकी शिक्षा पर कुछ भी खर्च करने को व्यर्थ समझा जाता है.गरीबी
बाल विवाह के सबसे बड़े कारणों में से एक है. बहुत से गरीब देशों और समुदायों में लड़की का विवाह करने का मलतब एक अतिरिक्त पेट भरने की जिम्मेदारी से मुक्त होना होता है. दुल्हन की कीमत या दहेज हताश परिवारों के लिए अप्रत्याशित लाभ की तरह होते हैं.

इससबका कई पीढ़ियों पर घातक असर होता है. कम उम्र और कम पढ़ी-लिखी लड़कियों के बच्चे आमतौर पर स्कूलों में खराब प्रदर्शन करते हैं और फ़िर बड़े होकर कम आय वाले प्रौढ़ बनते हैं. इस तरह गरीबी का दुष्चक्र और भी मजबूत होता जाता है.बाल विवाह पूरी दुनिया में होते हैं लेकिन खासतौर पर इनका प्रचलन दक्षिणी ऐशया
सब-सहारन अफ्रीका के कुछ हिस्सों में है.

बांग्लादेश में बाल विवाह की दर 
65 प्रतिशत हैजबकि भारत में 48 प्रतिशत. सबसे चिंताजनक हालत तो नाइजर (76 प्रतिशत) और चाड (71 प्रतिशत) की है. आने वाले दशक मेंएक आंकड़े के मुताबिक, 10 करोड़ लड़कियों का विवाह 18 साल की उम्र के पहले ही कर दिया जाएगा.बाल विवाह की इतनी भयावहता के बावजूद इसे हल करने के लिए होने वाले प्रयासों की गंभीरता में कमी नजर आती है.

हम उन मसलों में हस्तक्षेप में हिचकिचाहट को समझते हैं जो परंपरागत रूप से पारिवारिक माने जाते रहे हैं. हम मानते हैं कि बाल विवाह की प्रथा कई समाजों की परंपरा में गहरी पैठी हुई है
जिसे कई बार धार्मिक नेताओं का समर्थन हासिल होता है. इसलिये बदलाव इतना आसान भी नहीं होगा.निचले स्तर पर चले अभियानों और महिलाओं को हासिल नये ओर्थक अवसरों के चलते दुनिया के कुछ हिस्सों में बाल विवाह की दर कम हुई है.

लेकिन यदि यही रफ्तार रही तो इसे समाप्त होने में सैकड़ों साल लग जाएंगे. आज चुनौती इस बात की है कि विभिन्न समुदायों की इस बदलाव को और तेज करने में मदद की जाए. इसीलिए हम एल्डर्स और हमारे साथी बाल विवाह के नुकसानों की ओर आपका ध्यान खींच रहे हैं और उन लोगों का समर्थन कर रहे हैं जो इसे समाप्त करने के लिए काम कर रहे हैं.

इसका मतलब यह है कि हमें इस सवाल पर समुदायों के स्तर पर नई तरह से बहस
,अंत:क्रिया व शिक्षा का अभियान चलाना होगा.हमें विभिन्न धार्मिक नेताओं से ज्यादा सक्रिय तरीके से बातचीत करनी चाहिए. हम जितने धर्मो को जानते हैं उनमें से कोई भी सीधे-सीधे बाल विवाह को बढ़ावा नहीं देता. यह सच्चाई है कि विभिन्न समुदायों में इसका समर्थन करने वाले धार्मिक नेता पहले से चली आ रही प्रथा का समर्थन करते हैंयह उनकेधर्म के दर्शन का हिस्सा नहीं है.

लेकिन हम लंबे समय से चली आ रही कुप्रथाओं के नाम पर इस बात की इजाजत नहीं दे सकते कि वे लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करें और उनके समुदायों को गरीब बनाए रखें.हमें इस सवाल पर समुदायों के स्तर पर नई तरह से बहस
अंत:क्रिया व शिक्षा का अभियान चलाना होगा. हमें धार्मिक नेताओं से ज्यादा सक्रिय तरीके से बातचीत करनी चाहिये. हम जितने धर्मो को जानते हैं उनमें से कोई भी सीधे-सीधे बाल विवाह को बढ़ावा नहीं देता. यह सच्चाई है कि विभिन्न समुदायों में इसका समर्थन करने वाले धार्मिक नेता पहले से चली आ रही प्रथा का समर्थन करते हैंयह उनके धर्म के दर्शन का हिस्सा नहीं है.

लेकिन हम लंबे समय से चली आ रही कुप्रथाओं के नाम पर इस बात की इजाजत नहीं दे सकते कि वे लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करें और उनके समुदायों को गरीब बनाए रखें.इतने लंबे वर्षो में हमने सीखा है कि सामाजिक परिवर्तन ऊपर से नहीं थोपा जा सकता. कानूनों का   बहुत थोड़ा असर होता है. अधिकांश देशों ने अपने कानूनों के जरिए बाल विवाह को प्रतिबंधित कर दिया है और वे उन अंतरराष्ट्रीय संधियों का हिस्सा हैं जो बाल विवाह पर रोक लगाती हैं.

लेकिन इससे जमीनी हकीकत में कोई बदलाव नहीं हुआ. जरूरत इस बात की है कि जो लोग भी सत्ता में हैं वे कानूनों को और भी गंभीरता से लें
लेकिन तेजी से बदलाव तभी होगा जब विभिन्न समुदाय यह महसूस करने लगें कि लड़कियों को शिक्षित करने का ओर्थक और सामाजिक महत्व दुल्हन की कीमत के रूप में हासिल होने वाले पैसों से अधिक है. इसके लिए संवेदनशील नजरिएविचारशील नेतृत्व और लड़कियों को स्कूल भेज सकने के लिए ओर्थक सहायता की जरूरत है. हमें समुदायिकराष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस प्रथा को खत्म करने के लिए काम करने वाले समूहों की और भारी मदद करनी चाहिए.
(जिमी कार्टरअमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति हैं)

1 टिप्पणी:

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि बाल विवाह ने सिर्फ एक लड़की ही नहीं बल्कि परिवारों को भी नष्ट कर दिया है.
इससे लड़ने के लिए हो रही पहल अभी अधूरी है. इसके खिलाफ जागरूकता बढ़नी होगी तभी इससे होने वाले दुष्प्रभावों से लड़ा जा सकता है.

क्या इन टोटको से भर्ष्टाचार खत्म हो सकता है ? आप देखिए कि अन्ना कैसे-कैसे बयान दे रहे हैं? शरद पवार भ्रष्ट हैं। भ्रष्टाचार पर बनी जीओएम (मंत्रिसमूह) में फला-फलां और फलां मंत्री हैं। इसलिए इस समिति का कोई भविष्य नहीं है। पवार को तो मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देना चाहिए। पवार का बचाव करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर पवार के मंत्रिमंडल से बाहर हो जाने से भ्रष्टाचार