मेरी इस छोटी सी दुनिया में आप सब का स्वागत है.... अब अपने बारे में क्या बताऊँ... सिलसिला ज़ख्म ज़ख्म जारी है, ये ज़मी दूर तक हमारी है, मैं बहुत कम किसी से मिलता हूँ, जिससे यारी है उससे यारी है... वो आये हमारे घर में खुदा की कुदरत है, कभी हम उनको तो कभी अपने घर को देखते हैं...
29.5.11
शायरी
28.5.11
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी - रघुपति सहाय फिराक़
25.5.11
जेरोनिमो नाम के प्रयोग पर बवाल
अमरीकी की अपाचे जनजाति ने अल क़ायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के ख़िलाफ़ सैन्य कार्रवाई में अपने चर्चित लड़ाके जेरोनिमो के नाम का इस्तेमाल करने पर कड़ी आपत्ति जताई है.
अपाचे जनजाति ने इस मामले में अमरीका सरकार से माफ़ी मांगने को कहा है. फ़ोर्ट सिल अपाचे ट्राइबल के चेयरमैन जेफ़ हाउज़र ने कहा कि चर्चित अपाचे लड़ाके की तुलना सामूहिक संहार करने वाले से करना पीड़ादायक है और ये सभी मूल अमरीकियों के लिए अपमानजनक भी है.
जिस कमांडो टीम ने पाकिस्तान के ऐबटाबाद शहर में कार्रवाई करके ओसामा बिन लादेन को मार दिया था, उसने अपनी प्रगति रिपोर्ट में जेरोनिमो के नाम का इस्तेमाल किया था.
एक समय अपाचे नेता जेरोनिमो मैक्सिको और अमरीका दोनों देशों के सैनिकों के लिए सिरदर्द बने हुए थे. उन्होंने अपनी ज़मीन, अपने लोग और उनके जीने के तरीक़े की रक्षा के लिए हथियार उठाया था.
वर्षों तक वे सैनिकों की आँखों में धूल झोंकते रहे लेकिन आख़िरकार 1886 में पकड़े गए. उन्होंने ओक्लाहोमा की जेल में रखा गया जहाँ 23 साल तक क़ैद में रहने के बाद 1909 में निमोनिया से उनकी मौत हो गई.
जेरोनिमो अपाचे जनजाति के मशहूर नेता थे
20.5.11
माननीय न्यायालय बच्चो के स्कूल की छुट्टियो की तरह एक महीने की गर्मियो की छुट्टियां मना रहे हैं ...
अंग्रेजो के समय की बात और थी अब तो ए सी की सुविधा हैं जज साहब ....
क्या स्वतंत्र भारत के माननीय न्यायलयो को अपनी महीने महीने भर की छुट्टियो पर पुनर्विचार नही करना चाहिये ...
क्या सुप्रिम कोर्ट मेरी इस खुली जनहित याचिका पर कोई डाइरेक्टिव जारी करेगा !
मतदाता के बदलते मूड का संकेत हैं ये चुनाव परिणाम
कांग्रेस को भुगतनी पड़ी अपनी खुद की गलतियां
भाजपा के अकेले दिल्ली पहुंचना सपना मात्रपांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव नतीजों ने यह एक बार फिर साबित कर दिया है कि आम मतदाता का मूड अब बदलने लगा है। वह जाति, धर्म अथवा संप्रदाय दीवारों को लांघ कर वह विकास और स्वस्थ प्रशासन को प्राथमिकता देने लगा है। राजनीति में घुन की तरह लगे भ्रष्टाचार से वह बेहद खफा हो गया है। अब उसे न तो धन बल ज्यादा प्रभावित करता है और न ही वह क्षणिक भावावेश के लिए उठाए गए मुद्दों पर ध्यान देता है। चंद लफ्जों में कहा जाए तो हमारा मजबूत लोकतंत्र अब परिपक्व भी होने लगा है। अब उसे वास्तविक मुद्दे समझ में आने लगे हैं। कुछ ऐसा ही संकेत उसने कुछ अरसे पहले बिहार में भी दिया था, जहां कि जंगलराज से उकता कर उसने नितीश कुमार की विकास की गाडी में चढऩा पसंद किया। कुछ इसी प्रकार सांप्रदायिकता के आरोपों से घिरे नरेन्द्र मोदी भी सिर्फ इसी वजह से दुबारा सत्तारूढ़ हो गए क्योंकि उन्होंने अपनी पूरी ताकत विकास के लिए झोंक दी।
सर्वाधिक चौंकाने वाला रहा पश्चिम बंगाल में आया परिवर्तन। यह कम बात नहीं है कि एक विचारधारा विशेष के दम पर 34 साल से सत्ता पर काबिज वामपंथी दलों का आकर्षण ममता की आंधी के आगे टिक नहीं पाया। असल में इस राज्य में वामपंथ का कब्जा था ही इस कारण कि मतदाता के सामने ऐसा कोई दमदार विकल्प मौजूद नहीं था जो राज्य के सर्वशक्तिमान वाम मोर्चे के लिए मजबूत चुनौती खड़ी कर सके। जैसे ही मां, माटी और मानुस की भाषा मतदाता के समझ में आई, उसने ममता का हाथ थाम लिया और वहां का लाल किला ढ़ह गया। असल में ममता का परिवर्तन का नारा जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप था। कदाचित ममता की जीत व्यक्तिवाद की ओर बढ़ती राजनीति का संकेत नजर आता हो, मगर क्या यह कम पराकाष्ठा है कि लोकतंत्र यदि अपनी पर आ जाए तो जनकल्याणकारी सरकार के लिए वह एक व्यक्ति के परिवर्तन के नारे को भी ठप्पा लगा सकता है।
इस किले के ढ़हने की एक बड़ी वजह ये भी थी कि कैडर बेस मानी जाने वाली माकपा के हिंसक हथकंडों ने आम मतदाता को आक्रोषित कर दिया था। सिंगुर और नंदीग्राम की घटनाओं के बाद ममता की तृणमूल कांग्रेस ने साबित कर दिया कि वही वामपंथियों से टक्कर लेने की क्षमता रखती है। एक चिन्हित और स्थापित विचारधारा वाली सरकार का अपेक्षाओं का केन्द्र बिंदु बनी ममता के आगे परास्त हो जाना, इस बात का इशारा करती है कि आम आदमी की प्राथमिकता रोटी, कपड़ा, मकान और शांतिपूर्ण जीवन है, न कि कोरी विचारधारा।
तमिलनाडु चुनाव ने तो एक नया तथ्य ही गढ दिया है। इस चुनाव ने यह भी साबित कर दिया है कि आम मतदाता अपनी सुविधा की खातिर किसी दल को खुला भ्रष्टाचार करने की छूट देने को तैयार नहीं है। मतदाता उसको सीधा लालच मिलने से प्रभावित तो होता है, लेकिन भ्रष्ट तंत्र से वह कहीं ज्यादा प्रभावित है। चाहे उसे टीवी और केबल कनैक्शन जैसे अनेक लुभावने हथकंडों के जरिए आकर्षित किया जाए, मगर उसकी पहली प्राथमिकता भ्रष्टाचार से मुक्ति और विकास है। भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोपों से घिरे वयोवृद्ध द्रमुक नेता एम. करुणानिधि ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि वे लोक-लुभावन हथकंडों के बाद भी अकेले भ्रष्टाचार के मुद्दे की वजह से इस तरह बुरी कदर हार जाएंगे। कदाचित इसकी वजह देशभर में वर्तमान में सर्वाधिक चर्चित भ्रष्टाचार के मुद्दे की वजह से भी हुआ हो।
जहां तक पांडिचेरी का सवाल है, वह अमूमन तमिलनाडु की राजनीति से प्रभावित रहता है। यही वजह है कि वहां करुणानिधि के परिवारवाद और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी उनकी पार्टी से मतदाता में उठे आक्रोश ने अपना असर दिखा दिया। कांग्रेस को करुणानिधि से दोस्ती की कीमत चुकानी पड़ी। इसके अतिरिक्त रंगासामी के कांग्रेस से छिटक कर जयललिता की पार्टी के साथ गठबंधन करने ने भी समीकरण बदल दिए।
वैसे हर चुनाव में परिवर्तन का आदी केरल अपनी आदत से बाज नहीं आया, मगर अच्युतानंदन की निजी छवि ने भी नतीजों को प्रभावित किया। यद्यपि राहुल गांधी की भूमिका के कारण कांग्रेस की लाज बच गई और यही वजह रही कि वहां कांग्रेस की जीत का अंतर बहुत कम रहा।
रहा असम का सवाल तो वह संकेत दे रहा है कि अब छोटे राज्यों में हर चुनाव में सरकार बदल देने की प्रवत्ति समाप्त होने लगी है। मतदाता अब विकास को ज्यादा तरजीह देने लगा है। हालांकि जहां तक असम का सवाल है, वहां लागू की गईं योजनाएं तात्कालिक फायदे की ज्यादा हैं, मगर आम मतदाता तो यही समझता है कि उसे कौन सा दल ज्यादा फायदा पहुंचा रहा है। उसे तात्कालिक या स्थाई फायदे से कोई मतलब नहीं है। असम में सशक्त विपक्ष का अभाव भी तुरुण गोगोई की वापसी का कारण बना। एक और मुद्दा भी है। असम की जनता के लिए मौजूदा हालात में अलगाववाद का मुद्दा भाजपा के बांग्लादेशी नागरिकों के मुद्दे से ज्यादा असरकारक रहा। तरुण गोगोई की ओर से उग्रवादियों पर अंकुश के लिए की गई कोशिशों को मतदाता ने पसंद किया है। असल में अलगाववादियों की वह से त्रस्त असम वासी हिंसा और अस्थिरता से मुक्ति चाहते हैं।
कुल मिला कर इन परिणामों को राष्ट्रीय परिदृश्य की दृष्टि से देखें तो त्रिपुरा को छोड़ कर अपने असर वाले अन्य दोनों राज्यों में सत्ता से च्युत होना माकपा के लिए काफी चिंताजनक है। इसकी एक वजह ये भी है कि वह वैचारिक रूप से भले ही एक राष्ट्रीय पार्टी का आभास देती है, केन्द्र में उसका दखल भी रहता है, मगर वह कुछ राज्यों विशेष में ही असर रखती है और राष्ट्रीय स्तर पर वह प्रासंगिकता स्थापित नहीं कर पा रही। ताजा चुनाव कांग्रेस के लिए सुखद इसलिए नहीं रहे कि उसने खुद ने ही कुछ मजबूरियों के चलते गलत पाला नहीं छोड़ा। करुणानिधि की बदनामी के बावजूद उसने मौके की नजाकत को नहीं समझा और अन्नाद्रमुक के साथ हाथ मिलाने का मौका खो दिया। भाजपा की दिशा हालांकि ये चुनाव तय नहीं करने वाले थे, लेकिन फिर भी नतीजों ने उसे निराश ही किया है। पार्टी ने असम में जोर लगाया, मगर उसकी सीटें पिछली बार की तुलना में आधी से भी कम हो गई हैं। कुल मिला कर उसके सामने यह यक्ष प्रश्न खड़ा का खड़ा ही है कि वह आज भी देश के एक बड़े भू भाग में जमीन नहीं तलाश पाई है, ऐसे में भ्रष्टाचार और महंगाई से त्रस्त मतदाता को लुभाने के बावजूद राजनीतिक लाभ उठा कर देश पर शासन का सपना देखने का अधिकार नहीं रखती।
-तेजवानी गिरधर, अजमेर
घोटाले के निर्माता-निर्देशक सोनिया और मनमोहन: गडकरी
गडकरी ने गुरुवार को यहां जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘मैं यह जानना चाहता हूं कि संसद भवन परिसर में हुई पीएसी की बैठक में सारा तमाशा या व्यवधान क्या सोनिया गांधी की मर्जी के बिना हुआ है? क्या प्रधानमंत्री की अनुमति के बिना ऐसा हुआ? दोनों ने अभी तक इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है।’ गडकरी ने कहा कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से संबंधित सभी निर्णयों की जानकारी प्रधानमंत्री को थी। लेकिन उन्होंने तूफान आने पर अपना सिर रेत में छिपाना बेहतर समझा। पीएसी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी पर संसदीय समिति में राजनीति करने के कांग्रेस के आरोप पर उन्होंने कहा कि यह तो चोर मचाए शोर जैसी बात हो गई। इन घोटालों के निर्माता और निर्देशक सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह है। जोशी ने गडकरी से कहा, आप मुझे ‘इंस्ट्रक्ट’ नहीं कर सकते : अरसे बाद वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की भाजपा में पूछ बढ़ गई है। बतौर पीएसी अध्यक्ष उनकी भूमिका को लेकर उन्हें सिर आंखों पर बैठाया गया है।
19.5.11
नेशनल वेस्ट है यह तोड़ फोड़
कल्पना श्रीवास्तव
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
९४२५८०६२५२
भोपाल में मीनाल माल ढ़हा कर सरकार बेहद खुश है , सरकारी कर्मचारी जो कुछ समय पहले तक ऐसे निर्माण करने की अनुमति देने के लिये बिल्डरों से गठजोड़ करके काला धन बटोर रहे थे , अब ऐसी सम्पत्तियो को चिन्हित न करने के एवज में मोटी रकम बटोर रहे हैं .
लोगों की गाढ़ी कमाई , उनकी आजीविका , अनुमति देने वाली एजेंसियो , प्रापर्टी सही है या नही इसकी सचाई की जानकारी के बिना , मोटी फीस वसूल कर वास्तविक कीमत से कम कीमत की रजिस्ट्री करने वाले रजिस्ट्रार कार्यालय के अमले ,बिना किसी जिम्मेदारी के सर्च रिपोर्ट बनवाकर फाइनेंस करने वाले बैंको की कार्य प्रणाली , और व्यक्तिगत रंजिश के चलते , राजनैतिक प्रभाव का उपयोग कर आहें बटोरने वाले मंत्रियो पर काफी कुछ लिखा जा रहा है .सरकार की इस अचानक कार्यवाही के पक्ष विपक्ष में बहुत कुछ लिखा जा रहा है . जिनका व्यक्तिगत कुछ बिगड़ा नही है , वे प्रसन्न है .निरीह आम जनता को उजाड़ने में सरकारी अमले को पैशाचिक सुख की प्राप्ति हो रही है .
मै एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक भारत के "रामभरोसे " जी रहे आम नागरिक होने के नाते इस समूचे घटनाक्रम को एक दूसरे दृष्टिकोण से देखना चाहती हूं . एक आम आदमी जिसे मकान लेना है उसके पास खरीदी जा रही प्रापर्टी की कानूनी वैद्यता जानने के लिये बिल्डर द्वारा दिखाये जा रहे सरकारी विभागों से पास नक्शे एवं बाजू में किसी अन्य के द्वारा खरीदे गये वैसे ही मकान की रजिस्ट्री ,बैंक की सर्च रिपोर्ट तथा बिल्डर के निर्माण की गुणवत्ता के सिवाये और क्या होता है ? इस सबके बाद जब वह मकान खरीद कर दसो वर्षों से निश्चिंत वहां रह रहा होता है , नगर निगम उससे प्रसन्नता पूर्वक सालाना टेक्स वसूल रही होती है , टैक्स जमा करने में किंचित विलंब पर पैनाल्टी भी लगा रही होती है , उसे बिजली , पानी के कनेक्शन आदि जैसी प्राथमिक नागरिक सुविधायें मिल रही होती हैं तब अचानक एक सुबह कोई पटवारी उसके घर को अवैद्य निर्माण चिंहित कर दे , इतना ही नही सरकार अपनी वाहवाही और रुतबा बनाने के लिये उसे वह दुकान या मकान खाळी करने के लिये एक घंटे की मोहलत तक न दे तो इसे क्या कहा जाना चाहिये ? क्या इतने पर भी यह मानना चाहिये कि हम लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं ?
अवैद्य निर्माण को प्रोत्साहित भी सरकारो ने ही किया , कभी राजनैतिक संरक्षण देकर तो कभी पट्टे बांटकर , किसी के साथ कुछ तो कभी किसी और के साथ कुछ अन्य नीति आखिर क्या बताती है ? जबलपुर में अतिक्रमण विरोधी कार्यवाही में बालसागर में हजारो गरीबों के झोपड़े उजाड़ दिये गये , इस कार्यवाही में दो लोगो की मौत भी हो गई . क्या यह सही नही है कि ये अतिक्रमण करवाते समय नेताजी ने , तहसीलदार जी ने और लोकल गुंडो ने इन गरीबों का भरपूर दोहन किया था ?
जो लोग इस आनन फानन में की गई तोड़फोड़ की प्रशंसा कर रहे हैं मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि मेरे घर में एक चिड़िया ने एक फोटो फ्रेम के पीछे घोंसला बना लिया था , मैं छोटी था , घोंसले के तिनके चिड़िया की आवाजाही से गिरते थे , उस कचरे से बचने के लिये जब मैने वह घोसला हटाना चाहा तो उस घोंसले तक को हटाने के लिये, चिड़िया के बच्चो को बड़ा होकर उड़ जाने तक का समय देने की हिदायत मेरे पिताजी ने मुझे दी थी . संवेदनशीलता के इस स्तर पर जी रहे मुझ जैसो को सरकार की इस कार्यवाही की आलोचना का नैतिक आधिकार है ना ? चिड़िया के घोसले से फैल रहे कचरे से तो हमारा घर सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा था , पर मेरा प्रश्न है कि मीनाल माल या इस जैसी अन्य तोड़ फोड़ से खाली जमीन का सरकार ने उससे बेहतर क्या उपयोग करके दिखाया है ? पर्यावरण की रक्षा में बड़े बड़े कानून बनाने वाले क्या मुझे यह बतायेंगे कि तोड़े गये निर्माण में लगा श्रम , सीमेंट , लोहा , अन्य निर्माण सामग्री नेशनल वेस्ट नही है ? उस सीमेंट , कांच व अन्य सामग्री के निर्माण से हुये प्रदूषण के एवज में समाज को क्या मिला ? इस क्रिमिनल वेस्ट का जबाबदार आखिर कौन है ? इगोइस्ट मंत्री जी ? नाम कमाने की इच्छा से प्रेरित आई ए एस अधिकारी ? क्या ऐसी कार्यवाहियो की अनुमति देने के लिये एक डिप्टी कलेक्टर स्तर के अधिकारी के हस्ताक्षर पर्याप्त हैं ? यह सब चिंतन और मनन के मुद्दे हैं .
मैं नही कहती कि अवैद्य निर्माण को प्रोत्साहन दिया जावे . सरकार ने यदि उन लोगो पर कड़ी कार्यवाही की होती , जिन्होने ऐसे निर्माणो की अनुमति दी थी तो भी भविष्य में ऐसे निर्माण रुक सकते थे . रजिस्ट्रार कार्यालय बहुत बड़े बड़े विज्ञापन छापता है जिनमें सम्पत्ति के मालिकाना हक के लिये वैद्य रजिस्ट्री होना जरूरी बताया जाता है , रजिस्ट्री से प्राप्त फीस सरकारी राजस्व का बहुत बड़ा अंश होता है , तो क्या इस विभाग को इतना सक्षम बनाना जरूरी नही है कि गलत संपत्तियो की रजिस्ट्री न हो सके , और यदि एक बार रजिस्ट्री हो जावे तो उसे कानूनी वैद्यता हासिल हो . आखिर हम सरकार क्यो चुनते हैं ,सरकार से सुरक्षा पाने के लिये या हमारे ही घरो को तोड़ने के लिये ?
मैं न तो कोई कानूनविद् हूं और न ही किसी राजनैतिक पार्टी की प्रतिनिधि . मैं नैसर्गिक न्याय के लिये इनोसेंट नागरिको की ओर से पूरी जबाबदारी से लिखना चाहती हूं कि यदि मीनाल माल एवं उस जैसी अन्य तोड़फोड़ की जगह उससे बेहतर कोई प्रोजेक्ट सरकार जनता के सामने नही ला पाती है तो यह तोड़फोड़ शर्मनाक है .क्रिमिनल वेस्ट है . मीनाल रेजीडेंसी देश की सर्वोत्तम कालोनियो में से एक है यदि इस तरह की कार्यवाही वहां हो सकती है तो भला कौन इंटरप्रेनर प्रदेश में निवेश करने आयेगा ? यह कार्यवाही निवेशको को प्रदेश में बुलाने के लुभावने सरकारी वादो के नितांत विपरीत है . आम आदमी से धोखा है , इसका जो खामियाजा सरकार अगले चुनावो में भुगतेगी वह तो बाद की बात है , पर आज कानून क्या कर रहा है ? क्या हम इतने नपुंसक समाज के निवासी है कि एक मंत्री अपने व्यक्तिगत वैमनस्य के लिये आम लोगो को घंटे भर में उजाड़ सकता है , और सब मूक दर्शक बने रहेंगे ? क्या इन असहाय लोगो के साथ अन्याय होता रहने दिया जावे क्योकि वे संख्या में कम हैं , मजबूर हैं और व्यवस्था न होने के चलते अज्ञानता से वे इन मकानो के मालिक हैं . ऐसे इंनोसेंट लोगो पर कार्यवाही करके सरकार कौन सी मर्दानगी दिखा रही है , और क्या इससे यह प्रमाणित नही होता है कि यह सब दुर्भावना पूर्ण है , जब बिल्डर से सौदा नही बना तो तोड़फोड़ शुरू , अधिकारो के ऐसे दुष्प्रयोग जनतांत्रिक देश में असहनीय हैं .एक ओर आतंकवादियो और नक्सलवादियो तक को क्षमा दी जा रही है तो दूसरी ओर लोगो को बिना वजह बेगर किया जा रहा है , क्योकि बिल्डर की गलती थी . बेहतर हो कि कानूनी कार्यवाही व सजा बिल्डर और निर्माण की अनुमति देने वाले अधिकारियो पर की जावे . बिल्डर पर बड़ा आर्थिक दण्ड लगाकर सरकारी खजाना भरा जावे .
दुष्यंत कुमार की पंक्तियां हैं
लोग जिंदगी लगा देते हैं एक घर बसाने में
उन्हें पल भर भी नही लगता बस्तियां जलाने में
यद्यपि इन पंक्तियो का संदर्भ भिन्न है , पर फिर भी यह ऐसी सरकारी नादिरशाही की दृष्टि से प्रासंगिक ही हैं .सरकार से पुनः प्रार्थना है कि व्यापक लोकहित तथा राष्ट्र हित में उदारता से विचार कर लोगो को बेघर न करें , बिल्डर पर जो भी पेनाल्टी लगानी हो वह लगाकर यदि कोई अच्छा निर्माण कतिपय रूप से अवैधानिक भी है तो उसका नियमतीकरण करने की जरूरत है .
लेखिका को सामाजिक विषयों पर लेखन हेतु अनेक पुरुस्कार मिल चुके हैं
17.5.11
नारी तू क्या है ये तू ही जाने
मेरा एक मित्र है जिसने कुछ दिनों पत्रकारिता की और अब लॉ करने के बाद एक सीनियर क्रिमिनल लॉयर के साथ ट्रेनिंग ले रहा है। कुछ ही दिन पहले वह मिला और इतना व्यथित था कि पूछिए मत। वजह पूछने पर बताया कि यार गलत काम मैं कर नहीं सकता और न करूं तो वकालत करने का सपना छोड़ना पड़ेगा। और मेरे पैरंट्स मुझे समझने की बजाय मुझे प्रैक्टिकल बनने की सलाह दे रहे हैं। हुआ यूं कि कुछ दिन पहले उसके सीनियर के पास एक महिला आई। पढ़ी लिखी और मॉडर्न। उसने अपने 2 साल पुराने पति और उसके पैरंट्स के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत केस दर्ज कराया था। वह वकील से कहने लगी कि मैं अपने पति और उसके पूरे परिवार को जेल में देखना चाहती हूं चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े। आप चाहें तो सबूत क्रिएट करने के लिए मैं अपने शरीर पर सिगरेट से दागने के निशान बना सकती हूं। इतना बताया ही था कि मेरा वह दोस्त बुरी तरह बरस पड़ा। उसने बताया कि एक हफ्ते से वह सीनियर लॉयर के पास नहीं गया है क्योंकि जब उसने उनसे कहा कि सर ये तो गलत है तो उन्होंने उसे ही लेक्चर दे डाला।
एक वाकया और याद आ रहा है जब मैं कॉलेज में स्टूडेंट यूनियन में था । एक 22 साल के लड़के को रेप के आरोप में गिरफ्तार किया गया। कुछ सीनियर पुलिस अधिकारियों ने बताया कि दरअसल मामला कुछ और ही है। वह लड़का एक कॉल गर्ल के पास गया और बाद में पैसों को लेकर कुछ बहस हुई और 40 रुपये को लेकर उसने लड़के पर रेप का केस कर दिया। मेडिकल टेस्ट में भी उसकी पुष्टि हो गई। पुलिस वाले हकीकत जानते हुए भी कुछ नहीं कर सके और उस लड़के को सजा हो गई।
मेरा यह कहने का कतई मतलब नहीं है कि कानून गलत है लेकिन कानून का गलत इस्तेमाल जरूर हो रहा है। आप यह भी कह सकते हैं कि महिलाओं को अतिरिक्त अधिकार देने का ही नहीं बल्कि मर्डर जैसे सारे कानूनों का गलत इस्तेमाल हो रहा है तो... हां मैं भी इससे सहमत हूं। लेकिन कुछ तो ऐसा करना ही होगा जिससे बेगुनाह को सजा ना मिले। और महिला अधिकारों के नाम पर कुछ बेचारे पुरुष ना पिसें।
अभी हाल ही में उत्तराखण्ड में एक अजीब वाकया घटा। जब दुल्हन सुहागरात से ठीक पहले अपने प्रेमी के साथ भाग गई। परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया। लेकिन जेल गया सिर्फ प्रेमी। जबकि दोनों अपनी मर्जी से भागे थे। लड़की ने अपने प्रेमी से कहा था कि अगर वो सुहागरात से पहले उसे भगा नहीं ले गया तो वो जहर खा लेगी। पुलिस के सामने खुद लड़की ने ये बयान दिया लेकिन कानून का शिकंजा कसा सिर्फ लड़के पर। अगर लड़की कोर्ट में बयान देने तक अपने कहे पर कायम रहती है, तो शायद युवक बच जाए। लेकिन अगर किसी दबाव में या किसी और वजह से वह मुकर गई तो? बेचारा प्रेमी...
अदालतें खुद कई बार यह मान चुकी हैं कि कई बार महिलाएं बदला लेने के मकसद से झूठे केस दर्ज करवा देती हैं और महिला के अधिकारों की रक्षा के लिए बने कानून बेगुनाह पुरुष के उत्पीड़न के हथियार बन जाते हैं। इतिहास में पढ़ा था कि एक दौर में मातृ सत्ता हुआ करती थी। तब महिलाओं की तूती बोलती थी। फिर वक्त बदला और पुरूषों ने सत्ता पर कब्जा जमा डाला और महिलाओं के शोषण की ऐसी काली किताब लिखी कि लाख धोने पर भी शायद ही धुले। आज जब महिलाओं के पास एक बार फिर कानूनी ताकत आ रही है तो क्या पुरूषों के साथ भी वही सबकुछ नहीं होने लगा है। भले ही अभी इसे शुरुआत कहा जाए...। लेनिन ने कहा था कि सत्ता इंसान को पतित करती है या यूं कहें पावर जिसके पास होती है वह शोषणकारी होता है और उसका इंसानी मूल्यों के प्रति कोई सरोकार नहीं रहता। लेकिन क्या ऐसे कभी समानता आ सकती है? या फिर ये चक्र ऐसे ही घूमता रहेगा। कभी हम मरेंगें... कभी तुम मरोगे।
15.5.11
पीढ़ियां तबाह करता है बाल विवाह
पीढ़ियां तबाह करता है बाल विवाह 1. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बाल विवाह और इससे महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़नेवाले व्यापक दुष्प्रभावों की बहुत कम चर्चा होती है 2. बाल विवाह पूरी दुनिया में होते हैं लेकिन खासतौर पर इनका प्रचलन दक्षिणी ऐशया, सब-सहारन अफ्रीका के कुछ हिस्सों में है. 3. बाल विवाह की इतनी भयावहता के बावजूद इसे हल करने के लिए होनेवाले प्रयासों की गंभीरता में कमी नजर आती है. सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों की समीक्षा के लिए न्यूयॉर्क में चल रहे संयुक्त राष्ट्र के शिखर सम्मेलन में उन क्षेत्रों पर बहस की जरूरत है. जहां से हमें सर्वाधिक निराशाजनक परिणाम मिले हैं. इनमें से सबसे ऊपर है सबसे गरीब देशों में मातृ स्वास्थ्य के सुधार में असफ़लता. ऐसी चर्चायें होती रही हैं कि जिन विकासशील देशों में संसाधनों का उचित इस्तेमाल हुआ है,उनके लिए धनी देश सहायता राशि बढ़ायें. पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बाल विवाह और इससे महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की बहुत कम चर्चा हुई है.हमारे सामने ऐसे प्रमाण मौजूद हैं कि बाल विवाह, आठ सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों में से छ: की ओर आगे बढ़ने में बहुत बड़ी रुकावट है. शिशु और मातृ मृत्यु दर को कम करने, एचआइवी/एड्स से लड़ने और सार्वभौम बुनियादी शिक्षा को हासिल करने के वैश्विक लक्ष्यों को सबसे बड़ा झटका इसी बात से लगता है कि विकासशील देशों में हर 7 में से 1 लड़की का विवाह 15 वर्ष की उम्र तक पहुंचने के पहले ही कर दिया जाता है. बाल विवाह भयानक गरीबी को समाप्त करने और जेंडर बराबरी के प्रयासों को भी धक्का पहुंचाता है.आंकड़े बहुत साफ़ हैं. गरीब देशों में 18 साल से कम उम्र की मांओं से पैदा हुए बच्चों की पहले ही साल में मृत्यु की संभावना प्रौढ़ मांओं के बच्चे की अपेक्षा 60 प्रतिशत अधिक होती है. गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के समय 15 साल से कम उम्र की मांओं की मृत्यु की संभावना 20 वर्ष की उम्र से ऊपर की मांओं की अपेक्षा 5 गुना अधिक होती है. सूचनाओं का अभाव, अधिक उम्र के पुरुष से विवाह और सुरक्षित यौन संबंधों का अभाव बाल विवाहिताओं में एचआइवी संक्रमण के खतरे को उन्हीं उम्र की अविवाहित लड़कियों की अपेक्षा काफ़ी बढ़ा देता है.इतना ही नहीं, बाल विवाहिताओं को पढ़ाई छोड़ देनी पड़ती है ताकि वे घर के काम पर ध्यान दे सकें और बच्चों को पाल सकें. लेकिन पढ़ाई कर रही लड़कियों के खिलाफ़ यह दुराग्रह और भी पहले शुरू हो जाता है. जिन समाजों में लड़कियों का बहुत जल्दी विवाह कर दिया जाता है उनमें उनकी शिक्षा पर कुछ भी खर्च करने को व्यर्थ समझा जाता है.गरीबी, बाल विवाह के सबसे बड़े कारणों में से एक है. बहुत से गरीब देशों और समुदायों में लड़की का विवाह करने का मलतब एक अतिरिक्त पेट भरने की जिम्मेदारी से मुक्त होना होता है. दुल्हन की कीमत या दहेज हताश परिवारों के लिए अप्रत्याशित लाभ की तरह होते हैं. इससबका कई पीढ़ियों पर घातक असर होता है. कम उम्र और कम पढ़ी-लिखी लड़कियों के बच्चे आमतौर पर स्कूलों में खराब प्रदर्शन करते हैं और फ़िर बड़े होकर कम आय वाले प्रौढ़ बनते हैं. इस तरह गरीबी का दुष्चक्र और भी मजबूत होता जाता है.बाल विवाह पूरी दुनिया में होते हैं लेकिन खासतौर पर इनका प्रचलन दक्षिणी ऐशया, सब-सहारन अफ्रीका के कुछ हिस्सों में है. बांग्लादेश में बाल विवाह की दर 65 प्रतिशत है, जबकि भारत में 48 प्रतिशत. सबसे चिंताजनक हालत तो नाइजर (76 प्रतिशत) और चाड (71 प्रतिशत) की है. आने वाले दशक में, एक आंकड़े के मुताबिक, 10 करोड़ लड़कियों का विवाह 18 साल की उम्र के पहले ही कर दिया जाएगा.बाल विवाह की इतनी भयावहता के बावजूद इसे हल करने के लिए होने वाले प्रयासों की गंभीरता में कमी नजर आती है. हम उन मसलों में हस्तक्षेप में हिचकिचाहट को समझते हैं जो परंपरागत रूप से पारिवारिक माने जाते रहे हैं. हम मानते हैं कि बाल विवाह की प्रथा कई समाजों की परंपरा में गहरी पैठी हुई है, जिसे कई बार धार्मिक नेताओं का समर्थन हासिल होता है. इसलिये बदलाव इतना आसान भी नहीं होगा.निचले स्तर पर चले अभियानों और महिलाओं को हासिल नये ओर्थक अवसरों के चलते दुनिया के कुछ हिस्सों में बाल विवाह की दर कम हुई है. लेकिन यदि यही रफ्तार रही तो इसे समाप्त होने में सैकड़ों साल लग जाएंगे. आज चुनौती इस बात की है कि विभिन्न समुदायों की इस बदलाव को और तेज करने में मदद की जाए. इसीलिए हम एल्डर्स और हमारे साथी बाल विवाह के नुकसानों की ओर आपका ध्यान खींच रहे हैं और उन लोगों का समर्थन कर रहे हैं जो इसे समाप्त करने के लिए काम कर रहे हैं. इसका मतलब यह है कि हमें इस सवाल पर समुदायों के स्तर पर नई तरह से बहस,अंत:क्रिया व शिक्षा का अभियान चलाना होगा.हमें विभिन्न धार्मिक नेताओं से ज्यादा सक्रिय तरीके से बातचीत करनी चाहिए. हम जितने धर्मो को जानते हैं उनमें से कोई भी सीधे-सीधे बाल विवाह को बढ़ावा नहीं देता. यह सच्चाई है कि विभिन्न समुदायों में इसका समर्थन करने वाले धार्मिक नेता पहले से चली आ रही प्रथा का समर्थन करते हैं, यह उनकेधर्म के दर्शन का हिस्सा नहीं है. लेकिन हम लंबे समय से चली आ रही कुप्रथाओं के नाम पर इस बात की इजाजत नहीं दे सकते कि वे लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करें और उनके समुदायों को गरीब बनाए रखें.हमें इस सवाल पर समुदायों के स्तर पर नई तरह से बहस, अंत:क्रिया व शिक्षा का अभियान चलाना होगा. हमें धार्मिक नेताओं से ज्यादा सक्रिय तरीके से बातचीत करनी चाहिये. हम जितने धर्मो को जानते हैं उनमें से कोई भी सीधे-सीधे बाल विवाह को बढ़ावा नहीं देता. यह सच्चाई है कि विभिन्न समुदायों में इसका समर्थन करने वाले धार्मिक नेता पहले से चली आ रही प्रथा का समर्थन करते हैं, यह उनके धर्म के दर्शन का हिस्सा नहीं है. लेकिन हम लंबे समय से चली आ रही कुप्रथाओं के नाम पर इस बात की इजाजत नहीं दे सकते कि वे लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करें और उनके समुदायों को गरीब बनाए रखें.इतने लंबे वर्षो में हमने सीखा है कि सामाजिक परिवर्तन ऊपर से नहीं थोपा जा सकता. कानूनों का बहुत थोड़ा असर होता है. अधिकांश देशों ने अपने कानूनों के जरिए बाल विवाह को प्रतिबंधित कर दिया है और वे उन अंतरराष्ट्रीय संधियों का हिस्सा हैं जो बाल विवाह पर रोक लगाती हैं. लेकिन इससे जमीनी हकीकत में कोई बदलाव नहीं हुआ. जरूरत इस बात की है कि जो लोग भी सत्ता में हैं वे कानूनों को और भी गंभीरता से लें, लेकिन तेजी से बदलाव तभी होगा जब विभिन्न समुदाय यह महसूस करने लगें कि लड़कियों को शिक्षित करने का ओर्थक और सामाजिक महत्व दुल्हन की कीमत के रूप में हासिल होने वाले पैसों से अधिक है. इसके लिए संवेदनशील नजरिए, विचारशील नेतृत्व और लड़कियों को स्कूल भेज सकने के लिए ओर्थक सहायता की जरूरत है. हमें समुदायिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस प्रथा को खत्म करने के लिए काम करने वाले समूहों की और भारी मदद करनी चाहिए. (जिमी कार्टर, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति हैं) |
13.5.11
दिल से ज्यादा जिस्म की सोचता
11.5.11
कविता ---लोकतंत्र का सच्चा रूप...डा श्याम गुप्त...
10.5.11
क्या है महिला अधिकार ?
देश भर में नारी उत्थान (महिला अधिकार) की बात बड़े ही जोर-शोर से उठाई जा रही है लेकिन देश की अधिकाँश महिलाओं को सही मायनों में उनके मौलिक अधिकारों अथवा संवैधानिक अधिकारों की जानकारी ना के बराबर है | आइये जानते है कि भारतीय संविधान के अनुसार भारतीय महिलाओं को क्या-क्या हक़ प्रदान किये गये हैं |
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 16 में देश के प्रत्येक नागरिक को समानता का अधिकार दिया गया है। समानता का मतलब ‘समानता ‘ , इसमें किसी प्रकार का लिंग भेद नहीं है । समानता , स्वतन्त्रता और न्याय का अधिकारमहिला-पुरुष दोनों को समान रूप से दिया गया है। शारीरिक और मानसिक तौर पर नर-नारी में किसी प्रकार का भेदभाव असंवैधानिक माना गया है । हालाँकि आवश्यकता महसूस होने पर महिलाओं और पुरुषों का वर्गीकरण किया जा सकता है। अनुच्छेद-15 में यह प्रावधान किया गया है कि स्वतंत्रता -समानता और न्याय के साथ -साथ के महिलाओं /लड़कियों कीसुरक्षा और संरक्षण का काम भी सरकार का कर्तव्य है। जैसेबिहार में लड़कियों के लिए साइकिल और पोषक की योजना, मध्यप्रदेश में लड़कियों के लिए ‘ लाड़ली लक्ष्मी’ योजना , दिल्ली में मेट्रो में महिलाओं के लिए रिजर्व कोच की व्यवस्था आदि ।
स्वतंत्रता और समानता का अधिकार :- अनुच्छेद-19 में महिलाओं को यह अधिकार दिया गया है कि वह देश के किसी भी हिस्से में नागरिक की हैसियत से स्वतन्त्रता के साथ आ-जा सकती है, रह सकती है। व्यवसाय का चुनाव भी स्वतन्त्र रूप से कर सकती है। महिला होने के कारण किसी भी कार्य के लिए उनको मना करना उनके मौलिक अधिकार का हनन होगा और ऐसा होने पर वे कानून की मदद ले सकती है।
नारी की गरिमा का अधिकार : – अनुच्छेद-23 नारी की गरिमा की रक्षा करते हुए उनको शोषण मुक्त जीवन जीने का अधिकार देता है। महिलाओं की खरीद-बिक्री , वेश्यावृत्ति के धंधे में जबरदस्ती लाना , भीख मांगने पर मजबूर करना आदि दण्डनीय अपराध है। ऐसा कराने वालों के लिए भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत सजा का प्रावधान है। संसद ने अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम,1956 पारित किया है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा-361, 363, 366, 367, 370, 372, 373 के अनुसार ऐसे अपराधी को सात साल से लेकर 10 साल तक की कैद और जुर्माने की सजा भुगतनी पड़ सकती है। अनुच्छेद-24 के अनुसार 14 साल से कम उम्र के लड़के या लड़कियों से काम करवाना बाल-अपराध है।
घरेलु हिंसा का कानून :- घरेलु हिंसा अधिनियम , 2005 जिसके तहत वे सभी महिलाये जिनके साथ किसी भी तरह घरेलु हिंसा की जाती है, उनको प्रताड़ित किया जाता है , वे सभी पुलिस थाने जाकर F।I.R दर्ज करा सकती है , तथा पुलिसकर्मी बिना समय गवाएँ प्रतिक्रिया करेंगे |
दहेज़ निवारक कानून :- दहेज़ लेना ही नहीं देना भी अपराध हैं । अगर वधु पक्ष के लोग दहेज़ लेनी के आरोप मे वर पक्ष को कानून सजा दिलवा सकते हैं तो वर पक्ष भी इस कानून के ही तहत वधु पक्ष को दहेज़ देने के जुर्म मे सजा करवा सकता हैं । 1961 से लागू इस कानून के तहत बधू को दहेज़ के नाम पर प्रताड़ित करना भी संगीन जुर्म है |
नौकरी / स्वव्यवसाय करने का अधिकार : - संविधान के अनुच्छेद 16 में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि हर वयस्क लड़की व हर महिला को कामकाज के बदले वेतन प्राप्त करने का अधिकार पुरुषों के बराबर है। केवल महिला होने के नाते रोजगार से वंचित करना, किसी नौकरी के लिए अयोग्य घोषित करना लैंगिग भेदभाव माना जाएगा।
प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार: - अनुच्छेद-21 एवं 22 दैहिक स्वाधीनता का अधिकार प्रदान करता है। हर व्यक्ति को इज्जत के साथ जीने का मौलिक अधिकार संविधान द्वारा प्रदान किया गया है। अपनी देह व प्राण की सुरक्षा करना हरेक का मौलिक अधिकार है।
राजनीतिक अधिकार:- प्रत्येक महिला व वयस्क लड़की को चुनाव की प्रक्रिया में स्वतन्त्र रूप से भागीदारी करने और स्व विवेक के आधार पर वोट देने का अधिकार प्राप्त है। कोई भी संविधान सम्मत योगता रखने पर किसी भी तरह के चुनाव में उम्मीदवारी कर सकती है |
गोमाता और बछडोंकी हत्या
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