20.4.11

अन्ना सुधार चाहते हैं या सुधारों की मौत?

यह लीजिए आरएसएस ने तो अपने ही मुंह से सारी बातें स्वीकार कर लीं। कल तक इसी आरएसएस के लोग भगवा आतंकवाद का नाम सुनकर ही भड़क जाते थे। हिंदू समुदाय के किसी शख्स को आतंकवादी तो क्या, दंगाई कहने पर भी ये वैसे ही भड़कते थे। इनका घोषित स्टैंड रहा है कि चूंकि हिंदू सदियों से सहिष्णु और उदार रहा है, इसलिए इनकी अगुवाई में हिंदू समुदाय के मुट्ठी भर लोग दंगा, मारपीट, आगजनी, रेप और बम विस्फोट के चाहे जितने भी कांड कर लें, उन्हें दंगाई, रेपिस्ट, आतंकवादी वगैरह कहना हिंदुत्व का अपमान है और उस कथित अपमान पर ये सब बिफर जाते थे। मगर, इसी संघ ने अब 'इटैलियन देवी की कृपा से गद्दी पर बैठे' प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर कहा है कि भगवा आतंकवादी उसके दुश्मन हैं।

संघ के सीनियर नेता सुरेश जोशी ने पत्र में कहा है कि मालेगांव ब्लास्ट के आरोपी बर्खास्त कर्नल पुरोहित और कथित शंकराचार्य दयानंद पांडे संघ प्रमुख मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार की जान लेना चाहते थे।
दिलचस्प बात यह है कि इसके लिए हवाला भी उन्होंने उसी महाराष्ट्र एटीएस का दिया है जिस पर हिंदू विरोधी साजिश का आरोप लगाते हुए संघ नेता थकते नहीं थे। जोशी ने कहा है कि 'महाराष्ट्र एटीएस के पास इस बात के पक्के सबूत हैं कि मालेगांव ब्लास्ट के ये दोनों आरोपी संघ नेतृत्व की हत्या की साजिश कर रहे थे।'

गौर करें तो संघ नेतृत्व के रुख में यह बदलाव अचानक नहीं बल्कि धीरे-धीरे और सुविचारित ढंग से आया है। पहले संघ यह कहता था कि कांग्रेस की ईसाई प्रभावित सरकार हिंदुओं के खिलाफ साजिश कर रही है, उन्हें आतंकवादी साबित करना चाहती है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उसके बाद संघ ने यह कहना शुरू किया कि संघ में कट्टरपंथियों के लिए जगह नहीं है। और अब संघ ने कहा है कि भगवा आतंकवादी उसके दुश्मन हैं। इतना ही नहीं, संघ ने इसी 'हिंदूद्रोही सरकार' से यह भी अनुरोध किया है कि संघ के खिलाफ रची जा रही साजिश की पूरी जांच करवाए।

सवाल है कि संघ के रुख में यह बदलाव क्यों आ रहा है? आखिर जो संघ हिंदुत्व को बदनाम करने वाली सरकार से टकराने को तैयार था उसने सरकार के आगे इस मसले पर समर्पण क्यों कर दिया?

असल में संघ नेतृत्व को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसकी बीमार विचारधारा से उपजे खतरनाक कीटाणु उसके अपने संगठन पर किस कदर काबिज हो चुके हैं। संघ ने शुरू में बात को हवा में उड़ाने की कोशिश की, लेकिन भगवा आतंक की एक के बाद एक जुड़ती कड़ियों से उसके होश फाख्ता हो गए। सुरेश जोशी ने अपने पत्र में कर्नल पुरोहित और दयानंद पांडे का जिक्र तो किया है पर साध्वी प्रज्ञा समेत तमाम उन आरोपियों पर चुप्पी साध गए जो आतंकी घटनाओं में पुरोहित और पांडे के साथ रहे हैं। इस तथ्य को झुठलाना अब संघ के लिए भी संभव नहीं रह गया है कि असीमानंद से लेकर इन तमाम आरोपियों तक के संघ परिवार से जुड़े संगठनों में अच्छी पैठ थी और इनका संघ कैडर पर खासा प्रभाव भी था।

कारण यह है कि ये सब संघ की उसी विचारधारा से पोषित हो रहे थे जिससे संघ का सामान्य कैडर प्रभावित था और है। ये संघ के ही तर्कों को और आगे ले जा रहे थे। स्वाभाविक रूप से संघ का मौजूदा नेतृत्व इनके निशाने पर था। उस पर ये जरूरत से ज्यादा उदार, आलसी, डरपोक आदि होने का आरोप सामान्य कैडर के बीच लगाते थे और सामान्य कैडर इनसे प्रभावित भी होता था। संघ के अंदर इन कथित आतंकियों से प्रभावित कैडर की संख्या अच्छी-खासी है। इनका नेतृत्व पर इस बात के लिए दबाव भी है कि 'हिंदुत्व के इन योद्धाओं' का मुसीबत में साथ न छोड़ा जाए, बल्कि डटकर इनका साथ दिया जाए।

दरअसल, इन कैडर की गलती भी नहीं है। संघ नेतृत्व ने जैसी विचारधारा का पाठ उन्हें पढ़ाया है वे तो उसी पाठ को दोहरा रहे हैं। मगर, अपनी विचाराधारा की असलियत से वाकिफ संघ नेतृत्व के हाथ-पैर अब फूल रहे हैं। उसे इस बात का भी अंदाजा हो रहा है कि सांप्रदायिक घृणा का जो भस्मासुर उसने पैदा कर दिया है, वह अब तक भले दूसरों के सिर पर हाथ देता था, अब उसी केपीछे पड़ गया है। सो, इससे बचने के लिए अब संघ के नेता उसी सरकार की शरण में पहुंच गए हैं जिसे वह पानी पी-पी कर कोसते रहते थे।

6 टिप्‍पणियां:

Rajani ने कहा…

क्यों न गरीबों से मुलाकात अब की जाए
जो हैं मक्कार और गद्दार, खाट उनकी खड़ी की जाए
हालाँकि पहचान में, नहीं आयेंगे जल्दी से
पकड़ के इन सबकी, पोलीग्राफ टेस्ट की जाए
फांसी उनको जिन्होंने भरपेट कमीशन खाया
सर कलम उनके जिन्होंने देश को भी बेच खाया
काम अपना जो करते नहीं ईमानदारी से
फिर तो तनख्वाह उनकी पूरी काट ली जाए..

Rajani ने कहा…

क्यों न गरीबों से मुलाकात अब की जाए
जो हैं मक्कार और गद्दार, खाट उनकी खड़ी की जाए
हालाँकि पहचान में, नहीं आयेंगे जल्दी से
पकड़ के इन सबकी, पोलीग्राफ टेस्ट की जाए
फांसी उनको जिन्होंने भरपेट कमीशन खाया
सर कलम उनके जिन्होंने देश को भी बेच खाया
काम अपना जो करते नहीं ईमानदारी से
फिर तो तनख्वाह उनकी पूरी काट ली जाए..

Rajani ने कहा…

उद्यमी भ्रष्टाचारी का साथ न देते हुए भी भ्रष्टाचार में लिप्त होना उसकी मजबूरी है। वैट टैक्स, आयकर आदि विभागीय अधिकारी करनिर्धारण करते समय लक्ष्य की पूर्ति के लिए अपनें अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए इतना अधिक गलत कर आरोपित कर देतें हैं कि व्यापार उद्योग की आर्थिक स्थिति ही गड़बड़ा जाती है। उस गलत आरोपित कर को छुटानें के लिए बेबस उद्यमी को अपील ट्र्ब्यूनल/हाईकोर्ट/सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है।
जिसके लिये उसे 5 से 15 बर्ष का समय लगता है क्योंकि न्याय महॅगा व देरी से है। अतः इन परेशानियों से बचनें के लिये उद्यमी की मजबूरी है कि वह न चाहते हुए भी भ्रष्टाचार में लिप्त हो।
अपने सोझाव व विचार दें!

Rajani ने कहा…

अब तो कुत्ते भी छुप छुप के निकल रहे है ग़ालिब !
कोई दिग्विजय या सिब्बल समझ कर जूता न मार दे !!

Rajani ने कहा…

सोनिया गाँधी ...बाल ठाकरे का ११ जून १९९५ को सामना मे लिखा लेख पढ़ लो !!

मित्रों , ...आज कांग्रेस अन्ना हजारे को लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बता रही है और उनको सर से लेकर पैर तक भ्रष्टाचार मे डूबा बता रही है .. लेकिन आज अन्ना को अन्ना किसने बनाया ?
इसकी कहानी ठीक भी भिंडरावाला जैसी ही है .. महाराष्ट्र मे शिव सेना और बीजेपी की दो बार लगातार सरकार बन रही थी . कांग्रेस को महाराष्ट्र की राजगद्दी मिलनी असंभव लग रही थी ..
ऐसे मे कांग्रेस ने बिलकुल एक अलग चाल चली ..
अन्ना हजारे अहमदनगर जिले के है और कांग्रेस के कई बड़े नेता जैसे सुशील कुमार शिंदे , विलास राव देशमुख आदि अहमदनगर से आते है . फिर तत्कालीन शिव सेना बीजेपी सरकार के तीन मंत्रियो के उपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे . कांग्रेस ने बहुत ही घिनौनी चाल चली ..
उस समय अन्ना सिर्फ अपने गांव तक ही सिमित थे और अपने गांव मे एक समाज सेवक के रूप मे जाने जाते थे .. कांग्रेस ने कई बड़े नेताओ ने उस समय अन्ना को सरकार के खिलाफ भडकाया और अनशन करने को उकसाया . जबकि सरकार ने तुरंत एक सुप्रीम कोर्ट के जज से सारे मामले की जाँच करवाने का आदेश दिया लेकिन अन्ना अनशन पर डटे रहे .. आज जो कांग्रेस अनशन को संबिधान और लोकतंत्र के खिलाफ बता रही है उस समय यही नीच कांग्रेस अन्ना को पुरे महाराष्ट्र मे एक मसीहा बना कर पेश किया . कांग्रेस के चमचे अखबार लोकमत और शाकाल ने अन्ना को लोकतंत्र का सच्चा सिपाही बताया .. खुद कांग्रेस ने बड़े नेता अन्ना के हमेशा साथ रहते थे और उनको एक संबिधान का रखवाला बता रहे थे ..
अन्ना का अनशन उस समय करीब १४ दिन चला . फिर दबाव मे शिव सेना बीजेपी सरकार ने तीनों मंत्रियो से इस्थीपा ले लिया .
उस समय कांग्रेस ने अन्ना का विजय जुलुस पुरे महाराष्ट्र ने निकला .. फिर सामना मे बाला साहेब ठाकरे ने एक लेख लिख था .. सोनिया एक दिन यही अन्ना तुम्हारे लिए भिंडरावाला बनेगा .
मै आज यही सोच रहा हूँ क्या बाला साहेब ज्योतिषी है या कांग्रेस अपने कर्मो का फल भुगत रही है ?
फिर महाराष्ट्र मे अगली सरकार कांग्रेस और एनसीपी की बनी और उसके चार मंत्रियो पर गंभीर आरोप लगे .. बाला साहेब ने फिर सामना मे लिखा अन्ना अब तुम कहा हों ? अन्ना को फिर से अनशन करना पड़ा .और कांग्रेस को चारो मंत्रियो को हटाना पड़ा .
उसके बाद अन्ना अनशन किंग बन गए .. लेकिन कांग्रेस को अन्ना के बारे मे बुरा बोलने के पहले अपना गन्दा अतीत पहले देखना चाहिए .

कांग्रेस के सत्ता के लिए गन्दा खेल खेलने के कुछ और उदाहरण :-

१- बंगाल मे वामपंथियो को कमजोर करने के लिए चारु मजुमदार और कानू सान्याल को भड़काकर नक्सलवाद को जन्म दिया .
२- पंजाब मे अकाली दल को कमजोर करने के लिए कांग्रेस ने भिंडरावाला को भडकाया .
३- दार्जिलिंग मे सुभाष घिसिंग को कांग्रेस के ही खड़ा किया .
४- असाम मे असाम गण परिषद को कमजोर करने के लिए उल्फा को कांग्रेस के ही बड़ा किया .
५- कश्मीर मे नेशनल कॉन्फेंस को कमजोर करने के लिए अलगाववादियों को भडकाया .

आज मै कांग्रेस के नेताओ को अन्ना के बारे मे जब भी कुछ बोलते देखता हूँ तो मै सोचता हूँ यही अन्ना कभी कांग्रेस के लिए भगवान हुआ करते थे !

बेनामी ने कहा…

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क्या इन टोटको से भर्ष्टाचार खत्म हो सकता है ? आप देखिए कि अन्ना कैसे-कैसे बयान दे रहे हैं? शरद पवार भ्रष्ट हैं। भ्रष्टाचार पर बनी जीओएम (मंत्रिसमूह) में फला-फलां और फलां मंत्री हैं। इसलिए इस समिति का कोई भविष्य नहीं है। पवार को तो मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देना चाहिए। पवार का बचाव करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर पवार के मंत्रिमंडल से बाहर हो जाने से भ्रष्टाचार