26.4.11

क्या ? बाल विवाह पाप नहीं ? आप इस में कितने सहयोगी है


तमाम कोशिशों के बावजूद भारत में बाल विवाह की कुप्रथा बदस्तूर जारी है। बाल विवाह की वजह से जहां बच्चों का बचपन छिन जाता है, वहीं वे विकास के मामले में भी पिछड़ जाते हैं... देश में विवाह के लिए कानूनन न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल निर्धारित है, लेकिन यहां अब भी बड़ी संख्या में नाबालिग लड़कियों का विवाह कराया जा रहा है। इस तरह के विवाह से जहां क़ानून द्वारा तय उम्र का उल्लंघन होता है, वहीं कम उम्र में मां बनने से लड़कियों की मौत तक हो जाती है। अफसोस और शर्मनाक बात यह भी है कि बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों का विरोध करने वालों को गंभीर नतीजे तक भुगतने पड़ते हैं। मई 2005 में मध्य प्रदेश के एक गांव में बाल विवाह रोकने के प्रयास में जुटी आंगनबाड़ी सुपरवाइजर शकुंतला वर्मा से नाराज़ एक युवक ने नृशंसता के साथ उसके दोनों हाथ काट डाले थे। इसी तरह के एक अन्य मामले में भंवरी बाई के साथ दुर्व्यवहार किया गया था।
यूनिसेफ द्वारा जारी रिपोर्ट-2007 में बताया गया है कि हालांकि पिछले 20 सालों में देश में विवाह की औसत उम्र धीरे-धीरे बढ़ रही है, लेकिन बाल विवाह की कुप्रथा अब भी बड़े पैमाने पर प्रचलित है। रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में औसतन 46 फ़ीसदी महिलाओं का विवाह 18 साल होने से पहले ही कर दिया जाता है, जबकि ग्रामीण इलाकों कमें यह औसत 55 फ़ीसदी है। अंडमान व निकोबार में महिलाओं के विवाह की औसत उम्र 19।6 साल, आंध्र प्रदेश में 17।2 साल, चंडीगढ़ में 20 साल, छत्तीसगढ़ में 17.6 साल, दादर व नगर हवेली में 18.8 साल दमन व द्वीव में 19.4 साल, दिल्ली में 19.2 साल, गोवा में 22.2 साल, गुजरात में 19.2 साल, हरियाणा में 18 साल, हिमाचल प्रदेश में 19.1 साल, जम्मू-कश्मीर में 20.1 साल, झारखंड में 17.6 साल, कर्नाटक में 18.9 साल, केरल में 20.8 साल, लक्षद्वीप में 19.1 साल, मध्य प्रदेश में 17 साल, महाराष्ट्र में 18.8 साल, मणिपुर में 21.5, मेघालय में 20.5 साल, मिज़ोरम में 21.8 साल, नागालैंड में 21.6 साल, उड़ीसा में 18.9 साल, पांडिचेरी में 20 साल, पंजाब में 20.5 साल, राजस्थान में 16.6 साल, सिक्किम में 20.2 साल, तमिलनाडु में 19.9 साल, त्रिपुरा में 19.3 साल, उत्तरप्रदेश में 17.5 साल, उत्तरांचल में 18.5 साल और पश्चिम बंगाल में 18.4 साल है। गौरतलब है कि वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक़ देश में 18 साल से कम उम्र के 64 लाख लड़के-लड़कियां विवाहित हैं कुल मिलाकर विवाह योग्य कानूनी उम्र से कम से एक कराड़ 18 लाख (49 लाख लड़कियां और 69 लड़के) लोग विवाहित हैं। इनमें से 18 साल से कम उम्र की एक लाख 30 हज़ार लड़कियां विधवा हो चुकी हैं और 24 हज़ार लड़कियां तलाक़शुदा या पतियों द्वारा छोड़ी गई हैं। यही नहीं 21 साल से कम उम्र के करीब 90 हजार लड़के विधुर हो चुके हैं और 75 हजार तलाक़शुदा हैं। वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक़ राजस्थान देश के उन सभी राज्यों में सर्वोपरि है, जिनमें बाल विवाह की कुप्रथा सदियों से चली आ रही है। राज्य की 5.6 फ़ीसदी नाबालिग आबाद विवाहित है। इसके बाद मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा, गोवा, हिमाचल प्रदेश और केरल आते हैं।
दरअसल , बाल विवाह को रोकने के लिए 1929 में अंग्रेजों के शासनकाल में बने शारदा एक्ट के बाद कोई क़ानून नहीं आया। शारदा एक्त में तीन बार संशोधन किए गए, जिनमें हर बाल विवाही के लिए लड़के व लड़की उम्र में बढ़ोतरी की गई। शारदा एक्ट के मुताबिक़ बाल विवाह गैरकानूनी है, लेकिन इस एक्ट में बाल विवाह को खारिज करने का कोई प्रावधान नहीं है। इसी बड़ी खामी के चलते यह कारगर साबित नहीं हो पाया। इस अधिनियम में अधिकतम तीन माह तक की सज़ा का प्रावधान है। विडंबना यह भी है कि शादा एक्ट के तहत बाल विवाह करने वालों को सज़ा का प्रावधान है, लेकिन बाल विवाह कराने वालों या इसमें सहयोग देने वालों को सीधे दंडित किए जाने का कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि दोषी पाए जाने पर नामामत्र सज़ा दी जा सकती है। इतना ही नहीं इस क़ानून की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि पहले तो इस संबंध में मामले ही दर्ज नहीं हो पाते और अगर हो भी जाते हैं तो दोषियों को सज़ा दिलाने में काफ़ी दिक्कत होती है। नतीजतन, दोषी या तो साफ बच निकलते हैं या फिर उन्हें मामूली सज़ा होती हैं। अंग्रेजों ने शारदा एक्ट में कड़ी सज़ा का प्रावधान नहीं किया और इसे दंड संहिता की बजाय सामाजिक विधेयक के माध्यम से रोकने की कोशिश की गई। दरअसल, अंग्रेज इस क़ानून को सख्त बनाकर भारतीयों को अपने खिलाफ़ नहीं करना चाहते थे।
अफ़सोस की बात यह भी है कि आज़ादी के बाद बाल विवाह को रोकने के लिए बड़े-बड़े दावे वाली सरकारों ने भी बाल विवाह को अमान्य या गैर जमानती अपराध की श्रेणी में लाने की कभी कोशिश नहीं की। महिला आयोग और मानवाधिकार आयोग और मानवाधिकार आयोग भी बाल विवाह पर अंकुश लगाने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने की बजाय भाषणों पर ही जोर देते हैं।बाल विवाह अधिनियम-1929 और हिन्दू विवाह अधिनियम-1955 की दफा-3 में विवाह के लिए अनिवार्य शर्तों में से एक यह भी है कि विवाह के सम लड़ी की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल होनी चाहिए। अगर विवाह के समय लड़के और लड़की की उम्र निर्धारित उम्र से कम हो तो इसकी शिकायत करने पर हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-18 के तहत दोषी व्यक्ति को 15 दिन की कैद या एक हजार रुपये जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। कानून की नजर में भले ही इस तरह का विवाह दंडनीय अपराध हो, लेकिन इसके बावजूद इसे गैरकानूनी नहीं माना जाता और न ही इसे रद्द किया जा सकता है। इसके अलावा अगर हिंदू लड़की उम्र विवाह के समय 15 साल से कम है और 15 साल की होने के बाद वह अपने विवाह को स्वीकार करने में मना कर दे तो वह तलाक दे सकती है लेकिन अगर विवाह के समय उसकी उम्र 15 साल से ज्यादा (भले ही 18 साल से कम हो) हो तो वह इस आधार पर तलाक लेने की अधिकारी नहीं। हिंदू विवाह अधिनियम के मुताबिक विवाह के समय लड़की उम्र 18 साल से कम नहीं होनी चाहिए, लेकिन भारतीय दंड संहिता-1860 की दफा-375 के तहत 15 साल से कम उम्र की अपनी पत्नी के साथ सहवास करना बलात्कार नहीं है।
क़ाबिले -गौर है कि भारतीय दंड संहिता-1860 की दफा-375(6) के मुताबिक किसी भी पुरुष द्वारा 16 साल से कम उम्र की लड़की के साथ उसकी सहमति या असहमति से किया गया सहवास बलात्कार है। भारतीय दंड संहिता की दफा-375 में 16 साल से कम उम्र की लड़ी के साथ बलात्कार की सजा कम से कम साल कैद और जुर्माना है, लेकिन इस उम्र की अपनी पत्नी के साथ बलात्कार के मामले में पुरुषों को विशेष छूट मिल जाती है। इतना ही नहीं अपराधिक प्रक्रिया संहिता-1973 में बलात्कार के सभी तरह के मामले संगीन अपराध हैं और गैर जमानती हैं, लेकिन 12 साल तक की पत्नी के साथ बलात्कार के मामले संगीन नहीं हैं और जमानती भी हैं। इस तरह के भेदभाव पूर्ण कानूनों के कारण भी देश में पीड़ित महिलाओं को इंसाफ़ नहीं मिल पाता।देश के विभिन्न इलाकों में अक्षय तृतीया, तीज और बसंत पंचमी जैसे मौकों पर सामूहिक बाल विवाह कार्यक्रम आयोजित कर खेलने-कूदने की उम्र में बच्चों को विवाह के बंधन में बांध दिया जाता है। इन कार्यक्रमों में राजनीतिक दलों के नेता और प्रशासन के आला अधिकारी भी शिरकत कर बाल नन्हें दंपत्तियों को आशीष देते है।

11 टिप्‍पणियां:

Rajani ने कहा…

Bahut bahut Dhanawad ki app har samaya nariyo pe kuch na kuch naya likhte rahte hai


प्रशासन से सात वचन

> जिला ब्लॉक व जिला स्तर पर गठित, सहायता समूह, महिला समूह, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, साथिन, सहयोगिनी के कोर ग्रुप को सक्रिय करना।

> ऐसे व्यक्ति व समुदाय जो विवाह संपन्न कराने में सहयोगी हैं, पंडित, पंडाल, व टेंट लगाने वाले, हलवाई, ट्रांसपोर्ट्र्स इत्यादि पर बाल विवाह में सहयोग न करने का आश्वासन लेना।

> निर्वाचन जन प्रतिनिधियों के साथ चेतना बैठकों का आयोजन करना।

> ग्राम सभाओं में सामूहिक रूप से बाल विवाह के दुष्प्रभावों की चर्चा करना व रोकथाम की कार्रवाई करना।

>किशोरियों, महिला समूहों व विभिन्न विभागों के कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय बैठक करना।

> कानून द्वारा बाल विवाहों को रोका जाना, जहां बाल विवाह की आशंका हो समन्वित रूप से समझाइश करना।

>बाल विवाह रोकथाम के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग सहित अन्य विभाग के ग्रामस्तरीय कार्यकर्ताओं को जोड़ा जाना। साथ ही पटवारी, अध्यापिका को बाल विवाह होने पर पुलिस में सूचना देने के लिए पाबंद करना।

Shalini kaushik ने कहा…

bal vivah chinta ka vishay hain kintu is disha me tab taq kuchh nahi kiya ja sakta jab taq janjagrukta n ho .aur yahi is disha me sabse kathin hai.

Kerudung Paris Polos ने कहा…

Nice Blog, Your info very interesting ^_^. Follow u via GFC. Thanks following me

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सही आंकड़े प्रस्तुत किये हैं ।
इन्ही कारणों से हम अभी तक विकासशील देश हैं , और शायद हमेशा रहेंगे ।
जनता को जागरूक होना पड़ेगा ।

Mayank ने कहा…

baal vivah kanuni apradha hi nahi ye orat ka shoshan h or iske liye jyadatar orate hi jimedar hai.,,

kya ek orat, orat ko nhi samjhti?
to fir wo baal vivah jese apradho me kyo aage hai.

Mayank ने कहा…

aapke in 7 vachano me sabse pahle prsashan ko hi jagurati ki jarurat hao.......

kyo ki prsashan ke aala officer's bhi baal vivah jesi kuritiyo me sabse pahale dikhai padte hai.........

Rachana ने कहा…

achchhi jankari .sochna hi hoga sabhi ko .uttam alekh
rachana

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Aankhen kholne wale aankde hain ... samaaj ko jaagrook hona padhega ... aur jaldi hi hona hoga ...

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

बाल विवाह पाप ही नहीं अपराध भी है...इसे तो ‘अमानवीय आचरण’ की श्रेणी में रखा जाना चाहिए...आखिर यह संज्ञान अपराध है...

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

श्रीमान जी, क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.

श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी कल ही लगाये है. इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें

क्या इन टोटको से भर्ष्टाचार खत्म हो सकता है ? आप देखिए कि अन्ना कैसे-कैसे बयान दे रहे हैं? शरद पवार भ्रष्ट हैं। भ्रष्टाचार पर बनी जीओएम (मंत्रिसमूह) में फला-फलां और फलां मंत्री हैं। इसलिए इस समिति का कोई भविष्य नहीं है। पवार को तो मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देना चाहिए। पवार का बचाव करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर पवार के मंत्रिमंडल से बाहर हो जाने से भ्रष्टाचार