28.4.11

पूरा मीडिया अब साईं बाबा के आगे नतमस्तक कैसे हो गया?

देश की जानी-मानी आध्यात्मिक शख्सियत पुट्टापर्थी के सत्य साईं बाबा इन दिनों सर्वाधिक चर्चा में हैं। आज उनकी हजारों करोड़ की रुपए सम्पत्ति और उसके वारिस को लेकर विवाद हो रहा है। साथ ही इस बात पर भी जगह-जगह बहस हो रही है कि साईं बाबा भगवान थे या फिर आम आदमी। उनके खुद को भगवान कहलाने और चमत्कार दिखाने पर पूर्व में खूब विवाद होता रहा है। ऐसे में सर्वाधिक आश्चर्य होता है कि मीडिया और विशेष रूप से इलैक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका पर। सत्य साईं बाबा के अस्पताल में भर्ती होने से लेकर निधन के बाद तक सारे न्यूज चैनल जिस तरह बाबा की महिमा का बखान कर रहे हैं, उस देख यह हैरानी होती है कि कभी अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए ये ही चैनल उन्हें डोंगी बाबा बता कर सनसनी पैदा कर रहे थे और आज जनता के मूड को देख कर उन्हें वे ही करोड़ों लोगों के भगवान और हजारों करोड़ रुपए के साम्राज्य वाले धर्मगुरू कैसे दिखाई दे रहे हैं। कभी ये ही चैनल तर्कवादियों की जमात जमा करके बाबा को फर्जी बताने से बाज नहीं आ रहे थे, आज वे ही पुट्टापर्थी की पल-पल की खबर दिखाते हुए दुनियाभर में उनकी ओर से किए गए समाजोत्थान के कार्यों का बखान कर रहे हैं। ये कैसा दोहरा चरित्र है?
असल में महत्वपूर्ण ये नहीं है कि साईं बाबा चमत्कारी थे या नहीं, कि वे जादू दिखा कर लोगों को आकर्षित करते थे और वह जादू कोई भी दिखा सकता है, महत्वपूर्ण ये है कि उस शख्स ने यदि हजारों करोड़ रुपए का साम्राज्य खड़ा भी किया तो उसका मकसद आखिर जनता की भलाई ही तो था।
यह सही है कि स्वयं को भगवान कहलवाना नितांत गलत है, मगर यह भी उतना ही सही है कि केवल खुद को भगवान कहने मात्र से क्या होता है, अगर उसे कोई भगवान नहीं माने। दूसरा ये कि अगर किसी को किसी में भगवान के दर्शन होते हैं, तो उसका क्या उपाय है। हमें मात्र पत्थर में भी तो भगवान नजर आते हैं। मूर्तिपूजा विरोधी पत्थर में भगवान देखने वालों पर हंसते हैं। असल में यह आस्था का मामला है, जिसके आगे तर्क और बुद्धि का जोर नहीं चलता। कदाचित उनकी योजनाओं से लाभान्वित होने वाले लोग स्वार्थवश उन्हें भगवान के रूप में महिमामंडित कर रहे हों, मगर जिसका किसी से हित सधता है और उसमें उसे भगवान दिखाई देता है तो उसका क्या उपाय है। किसी मूर्ति विशेष या किसी मंदिर अथवा स्थान विशेष से हमारी मनोकामना पूरी होती है तो हम भी तो उसे भगवान के रूप में मानते हैं। ऐसी दुनिया में किसी को साईं बाबा में भगवान दिखता है तो उस पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए और न ही उस पर आपत्ति होनी चाहिए, जिसे साईं बाबा केवल आम आदमी ही नजर आता है।
असल बात ये कि ईश्वर निराकार है। हम ही हैं जो उसे आकार रूप में देखना चाहते हैं। चूंकि आकार ही हमें समझ में आता है, निराकार पर तो ध्यान टिकता नहीं है। और इसके लिए मूर्ति बना देते हैं। किसी व्यक्ति में, किसी वृक्ष में, गाय में, कन्या में भगवान देखते हैं। कोई अपने माता-पिता में तो कोई अपने गुरू में भगवान देखता है।
एक बिंदू और भी है। वो यह कि हम भगवान शब्द को सर्वशक्तिमान ईश्वर का पर्यायवाची मानते हैं, जबकि वस्तुत: ऐसा है नहीं। शास्त्रों में ही वर्णित है कि भग यानि श्री, यश, ऐश्वर्य इत्यादि छह तत्त्वों में किसी भी एक तत्त्व से परिपूर्ण होने वाले को भगवान कहा जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम व योगीराज श्रीकृष्ण को भी इसी रूप में भगवान माना जाता है। वरना उन्हें भी शरीर रूप में अवतार लेने के कारण सभी भौतिक  सुख-दु:ख को भोगना पड़ता है। उनकी भी मृत्यु होती है।
बहरहाल, चूंकि साईं बाबा ने खुद को भगवान कहलवाना शुरू किया तो उसकी आलोचना करते हुए हमने उन्हें केवल आम आदमी ही करार देने की जुर्रत की। यदि वे केवल आम आदमी ही हैं तो मात्र जादू के दम पर इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा नहीं किया जा सकता। जरूर उस शख्स में कुछ तो खासियत होगी ही। क्या केवल जादू के दम पर करोड़ों लोगों को अपना भक्त बनाया जा सकता है? जादू से अलबत्ता आकर्षित जरूर किया जा सकता है, मगर कोई भी व्यक्ति भक्त तभी होता है, जब उसके जीवन में अपेक्षित परिवर्तन आए। केवल जादू देख कर ज्यादा देर तक जादूगर से जुड़ा नहीं रहा जा सकता। राजनेता जरूर वोटों की राजनीति के कारण हर धर्म गुरू के आगे मत्था टेकते नजर आ सकते हैं, चाहे उनके मन में उसके प्रति श्रद्धा हो या नहीं, मगर सचिन तेंदुलकर जैसी अनेकानेक हस्तियां यदि बाबा के प्रति आकृष्ठ हुई थीं, तो जरूर उन्हें कुछ तो नजर आया होगा। माना कि जो कुछ लोग उनके कथित आशीर्वाद की वजह से खुशहाल हुए अथवा जो कुछ लोग उनकी ओर किए गए समाजोपयोगी कार्यों का लाभ उठा रहे थे, इस कारण उनके भक्त बन गए, मगर इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि चाहे जादू के माध्यम से ही सही, मगर उन्होंने लोगों को अध्यात्म का रास्ता दिखाया, गरीबों का कल्याण किया। अगर ये मान भी लिया जाए कि वे जो चमत्कार दिखाते थे, उन्हें कोई भी जादूगर दिखा सकता है, मगर क्या यह कम चमत्कार है कि करोड़ों लोग उनके प्रति आस्थावान हो गए। और कुछ नहीं तो इसी जादू या चमत्कार के दम पर इकट्ठा किए गए धन से आम लोगों के कल्याण की योजनाएं चलाने की तो तारीफ ही की जानी चाहिए।
संभव है आज पुट्टापर्थी का चौबीस घंटे कवरेज देने के पीछे तर्क ये दिया जाए कि वे तो महज घटना को दिखा रहे हैं कि वहां कितनी भीड़ जमा हो रही है या फिर वीवीआईपी का कवरेज दिखा रहे है या फिर करोड़ों लोंगों की आस्था का ख्याल रख रहे हैं, तो इस सवाल जवाब क्या है कि वे पहले उन्हीं करोड़ों लोगों की आस्था पर प्रहार क्यों कर रहे थे। कुल जमा बात इतनी सी है कि न्यूज चैनल संयमित नहीं हैं। उन्हें जो मन में आता है, दिखाते हैं। टीआरपी के चक्कर में सनसनी पैदा करते हैं। इसके अतिरिक्त जिस व्यक्ति से आर्थिक लाभ होता है, उसका कवरेज ज्यादा दिखाते हैं। बाबा रामदेव उसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। वे जो योग सिखा रहे हैं, वह हमारे ऋषि-मुनि हजारों वर्षों से करते रहे हैं, वह हजारों योग गुरू सिखा रहे हैं, कोई बाबा ने ये योग इजाद नहीं किया है, मगर चूंकि उन्होंने अपने कार्यक्रमों का कवरेज दिखाने के पैसे दिए, इस कारण उन्हें ऐसा योग गुरू बना दिया, मानो न पहले ऐसे योग गुरू हुए, न हैं और न ही भविष्य में होंगे।
गिरधर तेजवानी

2 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

girdhar tejvani ji aapka ye aalekh gyan ka bhandhar hai aur media par sahi kataksh karta hai. karodon log kisi ke bhakt mate jadoo se nahi hote.sai baba ko hamara bhi naman...

Dinesh pareek ने कहा…

गिरधारी जी सबसे पहले तो आपका मैं अपने ब्लॉग पे सादर अभिनन्दन करता हू|
आपमें सही और १ दम सत्य वचन कहा की आज असा समय आ चूका है की लोग अपने लालच के लिए किसी को भी निशाना बना सकते है खास कर ये मीडिया वाले पहले तो उनको बड़ा चडा.कह देते है फिर आज उसी इन्सान को नगा करने मैं तुले हुवे है

क्या इन टोटको से भर्ष्टाचार खत्म हो सकता है ? आप देखिए कि अन्ना कैसे-कैसे बयान दे रहे हैं? शरद पवार भ्रष्ट हैं। भ्रष्टाचार पर बनी जीओएम (मंत्रिसमूह) में फला-फलां और फलां मंत्री हैं। इसलिए इस समिति का कोई भविष्य नहीं है। पवार को तो मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देना चाहिए। पवार का बचाव करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर पवार के मंत्रिमंडल से बाहर हो जाने से भ्रष्टाचार