3.4.11

बोझ संस्कारों और रस्मों का




विदेश में रहकर भी अपनी भूमि और भाषा के प्रति गहरा लगाव रखने वाली स्वप्नमंजूषा 'अदा' ब्लॉगर होने के साथ-साथ कवयित्री भी हैं। रांची में रहकर बड़ी हुई और फिलहाल ओटावा (कनाडा) में रह रहीं 'अदा' की कविताओं और ब्लॉग पोस्टों में नारीत्व के प्रति गौरव का भाव तो है ही, मातृभूमि और अपनों से दूर रहने की व्यथा भी झलकती है। नारी की दुनिया जिस तरह सीमाओं और संस्कारों के दायरे में समेट दी गई है, उसके प्रति मासूम-सा विद्रोह भी दिखाती हैं, स्वप्न मंजूषा की कविताएं- 

इंसान के कंधों पे, रिवाजों का बोझ है/ पाजेब है संस्कार की, रस्मों का बोझ है/ आंखें वो हवस से भरी, हैं खार चुभोतीं / हैं फूल से बदन, उन निगाहों का बोझ है।

हालांकि कनाडा की जगमगाती और सुविधाजनक दुनिया में अदा को वह सब शायद ही सहन करना पड़ता हो जो आम भारतीय नारी करती है, लेकिन पारंपरिक नारी के प्रति उनके सरोकार खत्म नहीं होते। ब्लॉगिंग के बहाने अपने घरेलू जीवन में उपलब्ध उन्मुक्तता का जिक्र करते हुए वे अपनी देसज भाषा में लिखती हैं- ब्लॉगिंग से हमको का तकलीफ होगी भला ...तकलीफ तो बाकी लोगों को होती है... सब बोलते हैं कि जब देखो तब इसी में लगी रहती है... हम सुनकर भी कान में तेल दिए रहते हैं और मजे से करते हैं ब्लागिंग...।

जाहिर है, कनाडा में बसी प्रवासी भारतीय नारी और रसोईघर के कामकाज और दूसरों की सेवा में अपना ज्यादातर जीवन गुजार देने वाली विशुद्ध भारतीय गृहिणी के जीवन की सच्चाइयां अलग-अलग हैं। उनके जीवन-संघर्ष भी अलग-अलग हैं। लेकिन लंबे समय तक पारंपरिक çस्त्रयों के संसार से रूबरू होती रहीं अदा परिवार, पति और समाज की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की पारंपरिक जद्दोजहद में लगी महिलाओं के अनुभवों से अनजान नहीं हैं। यह उदाहरण देखिए जिसमें वे द्रोपदी के बहाने आम स्त्री की पीड़ाओं और विवशताओं पर टिप्पणी करती हैं। 

भावुक होकर भी वे अपने असंतोष को छिपाती नहीं। असंतोष, जो सिर्फ समाज या पुरूषों के रवैए के प्रति ही नहीं है बल्कि स्त्री की समर्पणकारी मन:स्थिति के विरूद्ध भी है-चौपड़ की गोटी बनी, रिक्त सा जीवन पाया / बिन सोचे-समझे पांडवों ने तुझ पर दांव लगाया/ अब बनो वस्तु से नारी और करो मनन / पांचाली तुम्हें किस रूप में करूं मैं स्मरण ?

आज शोषण, दुख, अन्याय, विश्वासघात, असमानता, भेदभाव आदि को उनकी लेखनी अस्वीकार्य मानती है- प्रभु तुम्हारी दुनिया में, इतना अन्याय क्यों होता है ?/ जीत-हार के अंतराल में, निर्दोष बलि क्यों चढ़ता है?

स्वप्न मंजूषा खालिस मध्यवर्गीय प्रवासी भारतीयों जैसी हैं जिन्हें वह हर चीज अच्छी लगती है जिसमें अपनी संस्कृति, अपने देश के साथ नोस्टेल्जिया का एहसास हो- पुरानी फिल्में, पुराने गाने, जगजीत सिंह, मेहंदी हसन की गजलें और लोपामुद्रा से लेकर पंचतंत्र और चाचा चौधरी जैसी पुस्तकें। ब्लॉगिंग भी एक कड़ी है जो उन्हें अपनी इस बिछुड़ी दुनिया से जोड़ती है और इसीलिए वे इसका जिक्र करते हुए जैसे किसी और कोमल-सी दुनिया में चली जाती हैं-
(अपनी ब्लॉग पोस्टों पर भारत से आने वाली टिप्पणियों को) देखते ही मैं भारत की अलसुबह के दर्शन करती थी....बिल्कुल वही एहसास होता था जैसे सुबह कि किरणें फूट रहीं हैं ..चिडियों की चहचहाहट...मंदिर की घंटी, मस्जिद की अजान... जैसे एक सुंदर सी गोरी इधर से उधर छमछम करती हुई आ-जा रही है...।।

भारतीय नारी की प्राथमिकताओं में परिवार बहुत दूर कैसे रह सकता है?  लगाव उनकी रचनाओं में खूब दिखता है- कहीं बच्चों का जिक्र आने पर सहज उमड़ आने वाली प्रसन्नता के रूप में, तो कहीं माता-पिता का जिक्र आने पर उपजने वाले गौरव के जरिए। वे लिखती हैं- मेरे 3 बच्चे हैं। मेरी दुनिया उनसे शुरू और उन्हीं पर खत्म हो जाती है... इसी तरह एक जगह उन्होंने लिखा है कि मुझे समय निकालकर अपने माता-पिता को अच्छी जगहों पर घुमाने ले जाना बहुत पसंद है।

कोई टिप्पणी नहीं:

क्या इन टोटको से भर्ष्टाचार खत्म हो सकता है ? आप देखिए कि अन्ना कैसे-कैसे बयान दे रहे हैं? शरद पवार भ्रष्ट हैं। भ्रष्टाचार पर बनी जीओएम (मंत्रिसमूह) में फला-फलां और फलां मंत्री हैं। इसलिए इस समिति का कोई भविष्य नहीं है। पवार को तो मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देना चाहिए। पवार का बचाव करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर पवार के मंत्रिमंडल से बाहर हो जाने से भ्रष्टाचार