30.4.11

जान हमने भी गंवाई है वतन की ख़ातिर...फ़िरदौस ख़ान



जान हमने भी गंवाई है वतन की ख़ातिर...फ़िरदौस ख़ान


ध्यानार्थ : इस लेख का शीर्षक एक शेअर का मिसरा है... इसलिए लोग लेख पढ़ने से पहले ही इसका ग़लत मतलब निकाल रहे हैं... हैरत तो यह है की लेख पढ़ने के बाद भी लोग शीर्षक पर अटके हैं... हमें लगता है... ब्लॉग गंभीर विषयों के लिए नहीं हैं... 
 
कई लोगों को इस बात की तकलीफ़ है कि हमने मुस्लिम शहीदों का ज़िक्र क्यों किया है... इस मुल्क के लिए अमूमन सभी संप्रदायों और तबक़ों के लाखों लोगों ने कुर्बानियां दी हैं... इतिहास में कितने लोगों के नाम दर्ज हैं...? जिन लोगों के नाम इतिहास में दर्ज नहीं हैं... क्या उनकी क़ुर्बानी...क़ुर्बानी नहीं है...? हम जब शहीदों को खिराजे-अक़ीदत (श्रद्धा सुमन ) पेश करते हैं तो वो सभी शहीदों के लिए होती है... उन अनाम शहीदों के लिए भी...जिनके नाम कोई नहीं जानता...


इस लेख पर एतराज़ करने वाले ईमानदारी से बताएं... कि इस लेख में जिन बातों का ज़िक्र है, क्या वो पहले से यह सब जानते थे...? शायद नहीं... इस लेख का मक़सद यह बताना है कि इस मुल्क में अफ़ज़ल जैसे लोग ही पैदा नहीं हुए... बल्कि  अब्दुल हमीद जैसे वतन परस्त भी पैदा हुए हैं...

महापुरुष किसी ख़ास मज़हब या तबक़े के नहीं होते... वो तो पूरी ख़िलकत (मानव जाति) के होते हैं... यह बात अलग है कि जन्म से उनका किसी न किसी मज़हब या तबक़े से ताल्लुक़ होता है... इस लेख को लिखने का हमारा मक़सद यही है कि बच्चे (सभी संप्रदायों और तबक़ों के)  ख़ासकर मुस्लिम बच्चे इन महापुरुषों के बारे में जानें... सद्दाम हुसैन उनका आदर्श हो या न हो..., लेकिन अब्दुल हमीद उनका आदर्श ज़रूर होना चाहिए... फ़िरदौस 

फ़िरदौस ख़ान
'कुछ लोगों' की वजह से पूरी मुस्लिम क़ौम को शक की नज़र से देखा जाने लगा है... इसके लिए जागरूक मुसलमानों को आगे आना होगा... और उन बातों से परहेज़ करना होगा जो मुसलमानों के प्रति 'संदेह' पैदा करती हैं...

कोई कितना ही झुठला ले, लेकिन यह हक़ीक़त है कि हिन्दुस्तान के मुसलमानों ने भी देश के लिए अपना खून और पसीना बहाया है. हिन्दुस्तान मुसलमानों को भी उतना ही अज़ीज़ है, जितना किसी और को... यही पहला और आख़िरी सच है... अब यह मुसलमानों का फर्ज़ है कि वो इस सच को 'सच' रहने देते हैं... या फिर 'झूठ' साबित करते हैं...

इस देश के लिए मुसलमानों ने अपना जो योगदान दिया है उसे किसी भी हालत में नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता। कितने ही शहीद ऐसे हैं जिन्होंने देश के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर दी, लेकिन उन्हें कोई याद तक नहीं करता। हैरत की बात यह है कि सरकार भी उनका नाम तक नहीं लेती। इस हालात के लिए मुस्लिम संगठन भी कम ज़िम्मेदार नहीं हैं. वे भी अपनी क़ौम और वतन से शहीदों को याद नहीं करते.

हमारा इतिहास मुसलमान शहीदों की कुर्बानियों से भरा पड़ा है। मसलन, बाबर और राणा सांगा की लडाई में हसन मेवाती ने राणा की ओर से अपने अनेक सैनिकों के साथ युध्द में हिस्सा लिया था। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की दो मुस्लिम सहेलियों मोतीबाई और जूही ने आखिरी सांस तक उनका साथ निभाया था। रानी के तोपची कुंवर गुलाम गोंसाई ख़ान ने झांसी की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी। कश्मीर के राजा जैनुल आबदीन ने अपने राज्य से पलायन कर गए हिन्दुओं को वापस बुलाया और उपनिषदों के कुछ भाग का फ़ारसी में अनुवाद कराया। दक्षिण भारत के शासक इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय ने सरस्वती वंदना के गीत लिखे। सुल्तान नांजिर शाह और सुल्तान हुसैन शाह ने महाभारत और भागवत पुराण का बंगाली में अनुवाद कराया। शाहजहां के बड़े बेटे दारा शिकोह ने श्रीमद्भागवत और गीता का फ़ारसी में अनुवाद कराया और गीता के संदेश को दुनियाभर में फैलाया।

गोस्वामी तुलसीदास को रामचरित् मानस लिखने की प्रेरणा कृष्णभक्त अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना से मिली। तुलसीदास रात को मस्जिद में ही सोते थे। 'जय हिन्द' का नारा सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फ़ौज के कप्तान आबिद हसन ने 1942 में दिया था, जो आज तक भारतीयों के लिए एक मंत्र के समान है। यह नारा नेताजी को फ़ौज में सर्वअभिनंदन भी था।

छत्रपति शिवाजी की सेना और नौसेना के बेड़े में एडमिरल दौलत ख़ान और उनके निजी सचिव भी मुसलमान थे। शिवाजी को आगरे के क़िले से कांवड़ के ज़रिये क़ैद से आज़ाद कराने वाला व्यक्ति भी मुसलमान ही था। भारत की आजादी के लिए 1857 में हुए प्रथम गृहयुध्द में रानी लक्ष्मीबाई की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उनके पठान सेनापतियों जनरल गुलाम गौस खान और खुदादा खान की थी। इन दोनों ही शूरवीरों ने झांसी के क़िले की हिफ़ाज़त करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। गुरु गोबिन्द सिंह के गहरे दोस्त सूफी बाबा बदरुद्दीन थे, जिन्होंने अपने बेटों और 700 शिष्यों की जान गुरु गोबिन्द सिंह की रक्षा करने के लिए औरंगंजेब के साथ हुए युध्दों में कुर्बान कर दी थी, लेकिन कोई उनकी कुर्बानी को याद नहीं करता। बाबा बदरुद्दीन का कहना था कि अधर्म को मिटाने के लिए यही सच्चे इस्लाम की लड़ाई है।

अवध के नवाब तेरह दिन होली का उत्सव मनाते थे। नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में श्रीकृष्ण के सम्मान में रासलीला का आयोजन किया जाता था। नवाब वाजिद शाह अली ने ही अवध में कत्थक की शुरुआत की थी, जो राधा और कृष्ण के प्रेम पर आधारित है। प्रख्यात नाटक 'इंद्र सभा' का सृजन भी नवाब के दरबार के एक मुस्लिम लेखक ने किया था। भारत में सूफी पिछले आठ सौ बरसों से बसंत पंचमी पर 'सरस्वती वंदना' को श्रध्दापूर्वक गाते आए हैं। इसमें सरसों के फूल और पीली चादर होली पर चढ़ाते हैं, जो उनका प्रिय पर्व है। महान कवि अमीर ख़ुसरो ने सौ से भी ज़्यादा गीत राधा और कृष्ण को समर्पित किए थे। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की बुनियाद मियां मीर ने रखी थी। इसी तरह गुरु नानकदेव के प्रिय शिष्य व साथी मियां मरदाना थे, जो हमेशा उनके साथ रहा करते थे। वह रबाब के संगीतकार थे। उन्हें गुरुबानी का प्रथम गायक होने का श्रेय हासिल है। बाबा मियां मीर गुरु रामदास के परम मित्र थे। उन्होंने बचपन में रामदास की जान बचाई थी। वह दारा शिकोह के उस्ताद थे। रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्तों में से एक थे जैसे भिकान, मलिक मोहम्मद जायसी आदि। रसखान अपना सब कुछ त्याग कर श्रीकृष्ण के प्रेम में लीन हो गए। श्रीकृष्ण की अति सुंदर रासलीला रसखान ने ही लिखी। श्रीकृष्ण के हज़ारों भजन सूफ़ियों ने ही लिखे, जिनमें भिकान, मलिक मोहम्मद जायसी, अमीर ख़ुसरो, रहीम, हज़रत सरमाद, दादू और बाबा फ़रीद शामिल हैं। बाबा फ़रीद की लिखी रचनाएं बाद में गुरु ग्रंथ साहिब का हिस्सा बनीं।

बहरहाल, मुसलमानों को ऐसी बातों से परहेज़ करना चाहिए, जो उनकी पूरी क़ौम  को कठघरे में खड़ा करती हैं...
जान हमने भी गंवाई है वतन की ख़ातिर,
फूल सिर्फ़ अपने शहीदों पे चढ़ाते क्यों हो...

'बयान वापस लिए' कहानी जारी है...


'बयान वापस लिए' कहानी जारी है...

लौह-सा दिखता वो वृद्ध पुरुष धीमे-धीमे पिघलने लगा है। आलोचना की गर्मी से या किन्ही और कारणों से... निश्चिततौर पर आलोचना की गर्मी से यह संभव नहीं। महाराष्ट्र के एक गांव रालेगन सिद्धि का यह जनयोद्धा दिल्ली आकर महान से महामानव, अन्ना हजारे से छोटा गांधी और भ्रष्टाचार से लडऩे के लिए आमजन का सूरज बन गया था। जब अन्ना ने दिल्ली का रण संभाला था, उसी दिन मैंने सोचा था कुछ न कुछ तो जरूर होगा, क्योंकि यह आदमी विजयपथ पर निकलता है तो न रुकता है, न थकता है और न झुकता है। हुआ भी यही, लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ इस जंग में जंतर-मंतर के रणक्षेत्र से सचिवालय में हुई संयुक्त कमेटी की पहली बैठक तक जो हुआ उससे मैं अचरज में हूं। चट्टान सा दिखने वाला पुरुष लगातार समझौतावादी होता जा रहा है।
धीमे-धीमे  वे उन बातों को पीछे छोड़ते चले जा रहे हैं जिन पर जनता का समर्थन उन्हें मिला था। पहले कमेटी के अध्यक्ष पद पर समझौता, फिर शनिवार को बैठक में मसौदे पर समझौता। रविवार को तो हद हो गई उन्होंने संसद को सर्वोपरि बताते हुए कह दिया कि यदि प्रस्तावित बिल को संसद रिजेक्ट भी कर दे तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं। हालांकि मैं भी संसद को ही सर्वोपरि मानता हूं, लेकिन संसद के हिसाब से ही चलना था तो फिर इतना तामझाम क्यों फैलाया, क्यों लोगों की भावनाओं को उद्वेलित किया? क्यों लोगों का मजमा लगवाया? क्यों फोकट में अग्निवेश जैसे माओवादी और नक्सलियों के समर्थक को मंच साझा करने दिया? क्यों बेवजह प्रोफेशनल एनजीओ संचालकों को हीरो बनवा दिया? सबसे बड़ा सवाल आखिर क्यों भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबा रामदेव के आंदोलन को छोटा साबित करने की कोशिश की गई? क्यों घोटालों के आरोपों से घिरी कांग्रेस नीत यूपीए सरकार से लोगों का ध्यान भटकाया? बहुत से सवाल हैं जिनके जवाब भी अन्ना हजारे को ही देने पड़ेंगे। वे इन सवालों के जवाब दिए बिना अपने गांव रालेगन सिद्धि वापस नहीं लौट सकते।
खैर, इसी दौरान अन्ना ने गुजरात के विकास प्रतीक मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार को जातिगत राजनीति से उबारने वाले नीतीश कुमार की तारीफ में चंद लफ्ज बयां किए थे। एक तो अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंक कर भ्रष्ट नेताओं ने निशाने पर पहले ही चढ़ गए थे। ऊपर से मोदी और नीतीश की तारीफ कर बर्र के छत्ते में हाथ दे मारा। नेताओं के साथ-साथ तथाकथित सेक्यूलरों की जमात भी उनके पीछे पड़ गई। उनके अपने भी विरोधियों जैसे बयान जारी करने लगे। नरेन्द्र मोदी ने इस पर चिट्ठी लिखते हुए अन्ना को आगाह किया कि अब आपका का तीव्र विरोध होगा, क्योंकि आपने मेरी तारीफ कर दी है। मेरे धुर विरोधी और अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने वाले सेक्यूलर आपका कुर्ता खीचेंगे। आखिर में मोदी की शंका सत्य सिद्ध हुई। अन्ना हजारे पर लगातार भड़ास निकाली जाने लगी। आखिर उन्होंने अकरणीय कार्य (मोदी की तारीफ) जो कर दिया था।
इसके बाद चर्चाओं का केन्द्र बिन्दु बदल गया। भ्रष्टाचार के खिलाफ और जन लोकपाल विधेयक को पारित कराने के लिए अन्ना की आगे की रणनीति क्या होगी? इस पर बहुत ही कम बात होने लगी। बात हो रही थी तो इस पर कि क्या अन्ना हिन्दुवादी मानसिकता के हैं? क्या हजारे की विचारधारा हिन्दुवादी है? क्या अन्ना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता हैं या फिर उसके किसी अनुसांगिक संगठन के। इन चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया। यह सब चल ही रहा था कि इसी बीच फिर वही कहानी दोहराई गई। कहानी गुजरात के प्रतीक पुरुष नरेन्द्र मोदी के बारे में जो भी शब्द कहे उन्हें वापस लेने की। मोदी की तारीफ से आलोचना के शिकार बने अन्ना ने मोदी की तारीफ में कहे तमाम लफ्जों को समेटना शुरू कर दिया।
उन्होंने कहा कि मोदी के आलोचकों के द्वारा मोदी पर लगाए गए आरोपों में सच्चाई है तो मैं अपना बयान वापस लेता हूं। उन्होंने यह भी कहा कि मोदी और गुजरात के अच्छे कामों की तारीफ के बाद मुझे कई ई-मेल और पत्र आए। उनमें कहा गया कि गुजरात में कोई विकास नहीं हुआ है। मुझे नहीं मालूम कि इसमें सच्चाई क्या है, लेकिन अगर सच्चाई है तो मैं अपने बयान वापस लेता हूं। सामान्यतौर पर कोई भी साधारण आदमी अन्ना की इस बात पर विश्वास नहीं कर सकता कि उन्हें इस बात का इल्म न होगा कि गुजरात और बिहार में विकास कार्य हुए हैं या नहीं। इस बात पर भी कोई यकीन नहीं करेगा कि अन्ना बिना जानकारी के कोई बयान दे सकते हैं। तो क्या इसके पीछे विरोधियों का लगातार विरोधी प्रचार-प्रसार एक कारण हो सकता है? जो भी हो एक बार फिर नरेन्द्र मोदी की तारीफ में प्रस्तुत फिल्म का दि एण्ड वही निकला... मैं अपने बयान वापस लेता हूं।
नरेन्द्र मोदी के संदर्भ में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी कई लोग उनकी तारीफ करने के बाद अपने बयान वापस ले चुके हैं। प्रसिद्ध इस्लामिक संस्था दारुल उलूम देवबंद के नवनियुक्त कुलपति मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी ने भी पहले तो नरेन्द्र मोदी की उनके द्वारा गुजरात में कराए गए विकास कार्यों के लिए तारीफ की। इसके बाद तो कट्टरपंथी मुल्ला और सेक्यूलर जमात हाथ-पैर धोकर उनके पीछे ही पड़ गई। आखिर में मौलाना वस्तानवी को पीछे हटना पड़ा और उन्होंने भी मोदी की तारीफ में कहे शब्द वापस ले लिए। फिर कहानी में नया किरदार आया, भारतीय सेना में मेजर जनरल आईएस सिंघा। मेजर जनरल सिंघा ने अहमदाबाद में 'सेना को जानो'  प्रदर्शनी के उद्घाटन भाषण के दौरान मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि मोदी में सेना का कमाण्डर बनने के सभी गुण हैं। मोदी की प्रशंसा मेजर जनरल साहब को महंगी पड़ गई। सेना के उच्चाधिकारियों ने उन्हें तलब कर लिया।
वहीं मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद एपी अब्दुला कुट्टी को तो मोदी की प्रशंसा करने पर पार्टी से निष्कासन झेलना पड़ा। यह तो होना ही था, क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी के लिए तो नरेन्द्र मोदी वैसे भी राजनीतिक अछूत हैं। उनकी तारीफ करने पर निश्चित ही अब्दुला कुट्टी साहब अशुद्ध हो गए होंगे, तभी तो पार्टी ने उनसे कुट्टी कर ली, उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। गुजरात का ब्रांड एंबेसेडर बनने पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की भी खूब किरकिरी हुई। दशों दिशाओं से एक ही आवाज आ रही थी अमिताभ को गुजरात का ब्रांड एंबेसेडर  नहीं बनना चाहिए। लेकिन अमिताभ बच्चन ने अपने कदम वापस नहीं लिए, पैसा इसके पीछे का एक कारण हो सकता है। खैर जो भी हुआ, इस मुद्दे पर अमिताभ पर कीचड़ तो खूब उछाली ही गई थी। हाल ही 'बयान वापस लिए' नामक कहानी में नए किरदार की एंट्री हुई है। लेखन के क्षेत्र में खासा नाम कमाने वाले चेतन भगत ने उनकी प्रशंसा करने की जुर्रत की है। चेतन ने कहा कि नरेन्द्र मोदी को राजनीति के राष्ट्रीय मंच पर आकर कमान सम्भालनी चाहिए। वे अच्छे वक्ता हैं, अच्छे नेता हैं। मोदी ने चेतन को भी चेता दिया है कि सावधान रहना, अब तुम पर मेरे विरोधी निशाना साधेंगे। अब देखना बाकी है कि इस कहानी का अंत किस तरफ जाता है...

28.4.11

ईनाम महा घोटाले के छल का शिकार , चर्चित युवा ब्लॉगर सलीम खान Interview By Dr. Anwer Jamal


me
अस्सलामु अलैकुम !
स्वच्छ
ws
Sent at 8:12 AM on Friday
me
जनाब सलीम ख़ान साहब ! हिंदी ब्लॉगर्स को परिकल्पना समूह की तरफ़ वर्ष 2010 में ईनाम दिये जाने की जो घोषणा हुई थी, क्या उसमें आपका नाम मौजूद था ?
Sent at 8:14 AM on Friday
स्वच्छ
नहीं, मैंने देखा था लेकिन मेरा उसमें कहीं भी नाम नहीं है जबकि मैं पिछली मर्तबा आयोजकों में से था
Sent at 8:15 AM on Friday
me
आपको किस शीर्षक के अंतर्गत ईनाम दिया जा रहा था ?
स्वच्छ
मुझे  वर्ष  के  सर्वाधिक  चर्चित  ब्लॉगर  अंतर्गत   ईनाम  दिया गया  था. 
Sent at 8:18 AM on Friday
me
अब जो नई सूची हिंदी ब्लॉगर्स के सामने पेश की जा रही है, क्या उसमें आपका नाम मौजूद है ?
स्वच्छ
nahin
me
तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि इस सम्मान समारोह के आयोजकों ने ईनाम की मूल सूची ही बदल डाली है ?
स्वच्छ
पिछली मर्तबा जब घोषणा हुई थी उसमें मेरा नाम सर्वाधीक चर्चित ब्लॉगर में नाम था और मैं संयोजकों में से था मगर अबकी लिस्ट में मेरा नाम ही ग़ायब है
me
आप क्या समझते हैं कि आपके साथ ऐसा क्यों किया गया ?
Sent at 8:22 AM on Friday
स्वच्छ
मुझे नहीं मालूम, मगर कहीं न कहीं गहरी साज़िश  हुई है. रविन्द्र मेरे सहयोगियों में से हैं, मेरे ही शहर के ही हैं, लखनऊ ब्लॉगर्स एसोशियेशन और परिकल्पना व लोक संघर्ष के बैनर तहत उक्त इनमता दिया जा रहा था जिसके सर्वेसर्वा रविन्द्र थे और मुझे सम्मान भी मिला. बा जब इनाम की बात हो रही है तो उसमें मेरा नाम ही नहीं है.
me
सुना है कि परिकल्पना समूह वाले श्री रवीन्द्र प्रभात जी लखनऊ के नहीं हैं लेकिन उन्हें लखनऊ के लोगों ने हर तरह से सम्मान दिया है, तब उन्होंने लखनऊ के ही एक आदमी का नाम सम्मान सूची से क्यों निकाल दिया ?
Sent at 8:24 AM on Friday
स्वच्छ
हाँ, मूल रूप से वह लखनऊ के नहीं है. और मेरे द्वारा  लखनऊ ब्लॉगर्स एसोशियेशन के अध्यक्ष  बनाये  जाने  के पूर्व  उन्हें  कम  ही लोग  जानते  थे.
हाँ, मूल रूप से वह लखनऊ के नहीं है. और मेरे द्वारा लखनऊ ब्लॉगर्स एसोशियेशन के अध्यक्ष बनाये जाने के पूर्व उन्हें कम ही लोग जानते थे.
me
क्या आपको हिंदी ब्लॉगर्स को दिए जा रहे सम्मान समारोह में आने के लिए निमंत्रित किया गया है ?, किसी तरह का कोई निमंत्रण पत्र आपको दस्ती या फिर ईमेल से भेजा गया हो, जैसा कि सभी हिंदी ब्लॉगर्स को भेजा गया है ?
स्वच्छ
नहीं मुझे कोई निमंत्रण नहीं मिला
Sent at 8:29 AM on Friday
स्वच्छ
आखिर किस मुहँ से वो मुझे निमंत्रित करते.  उनके इस निंदनीय कृत्य के पीछे उनके सीने में तो पूर्वाग्रह बसा है
me
बड़े ताज्जुब की बात है ख़ान साहब। क्या कभी श्री रवीन्द्र प्रभात जी ने आपको फ़ोन भी नहीं किया बुलाने के लिए ?
स्वच्छ
नहीं
Sent at 8:31 AM on Friday
me
क्या आपने उनके साथ कभी अशिष्ट व्यवहार किया ? या उनका कोई हक़ आपने मारा हो ? क्या कभी उन्होंने आपसे आपके किसी व्यवहार की कोई शिकायत की ? जिससे आपके प्रति उनकी नाराज़गी का पता चलता हो।
Sent at 8:33 AM on Friday
स्वच्छ
नहीं ऐसा सलीम कर ही नहीं सकता. मैं सदैव सत्य के साथ रहा, व्यक्ति विशेष के प्रति लगाव मेरा तभी रहा जब वह सत्य पर हो. मैंने रविन्द्र जी का कभी कोई हक नहीं मारा बल्कि वे तो स्वयं ही लखनऊ ब्लॉगर्स एसोशियेशन का दामन छोड़ कर भाग गए.
और आज तक न फ़ोन किया और न ही कोई मेल. इसे आप क्या कहेंगे भगौड़ा और क्या?, 
लेकिन मैं उन्हीने भगौड़ा नहीं कहूँगा
me
चलिए श्री रवीन्द्र जी ने आपको निमंत्रित नहीं किया न सही लेकिन श्री अविनाश वाचस्पति जी तो आपको नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते, क्या उन्होंने भी आपको नहीं बुलाया

स्वच्छ
श्री अविनाश वाचस्पति जी  ने कोई निमंत्रण नहीं दिया और न ही फोन  किया.  श्री अविनाश वाचस्पति जी  का मैं सम्मान करता हूँ, chat  पर कई मर्तबा बात हुई जिसमें उन्होंने जीवन में कभी भी किसी भी ब्लॉग पर या अपने ब्लॉग पर टिपण्णी न करने की कसमें खाईं थीं और मैंने उन्हीने समझाया था.
me
अगर दोनों ने ही आपको इतने चर्चित सम्मेलन में नहीं बुलाया है तो क्या यह हिंदी ब्लागर्स के दरम्यान गुटबाज़ी को रेखांकित नहीं करता ?
Sent at 8:39 AM on Friday
स्वच्छ
यकीनन ऐसा ही है क्यूंकि अगर ऐसा नहीं होता तो वे मुझे अवश्य बुलाते अथवा सम्मान देते. हालंकि मैं सम्मान का भूखा नहीं. क्यूंकि न जाने कितने ब्लॉगर्स इस लिस्ट में शामिल नहीं. लेकिन मेरी शिकायत यह है की मैन्न्स्वयम आयोजकों में से था. और मेरा ही नाम ग़ायब है ये तो ऐसे ही हुआ की अपने शादी के कार्ड में अपने बाप का नाम ही नहीं लिखा.
मैन्न्स्वयम= मैं स्वयं
Sent at 8:43 AM on Friday
me
क्या आपने किसी पोस्ट के माध्यम से यह सब ब्लॉग जगत को कभी बताया है ?
क्या आम हिंदी ब्लॉगर यह सब जानता है कि आपके साथ यह सब अन्याय किया गया
?
Sent at 8:45 AM on Friday
स्वच्छ
नहीं मेरी ऐसी आदत नहीं है लेकिन जब अपने मुझसे पूछा तो बता दिया. अब आम ब्लॉगर्स को तो पता चलना ही चाहिए की ब्लॉग जगत में भी गुटबाजी चल रही है
me
कोई संदेश जो आप ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ के माध्यम से हिंदी ब्लॉग जगत को देना चाहें ?
Sent at 8:47 AM on Friday
स्वच्छ
जी हाँ, ब्लॉग जगत को सीधी राह पर और सार्थक सन्देश देने के नाम पर जो इनाम की बंदरबांट हुई है वह वाकई चिंतनीय है हिंदी ब्लॉग जगत के हित में नहीं है. यहाँ सब नेताओं की तरह मौक़ापरस्त  हो गए हैं. जब सलीम नाम की सीढ़ी की ज़रूरत थी तो आयोजक बना कर चर्चा में आ गए. जब सलीम की ज़रुरत थी तो साइंस ब्लॉग में उसे शामिल किया फिर लिखने की पॉवर ही छीन ली. यह सब क्या है???? लेकिन मैं इन्तिज़ार करूँगा और प्रयासरत भी रहूँगा हिंदी की सेवा के लिए. आपने मुझे तीसरी बार जगाया है हिंदी सम्मान कीई घालमेल से अवगत कराया. वैसे मैं अवगत कराऊंगा. लगता है इसीलिए मुझे हमारिवानी से निकलवा दिया और मेरे ही चेले शाहनवाज़ को मेरे खिलाफ कर दिया.
Sent at 8:51 AM on Friday
me
ख़ान साहब ! आपका शुक्रिया कि आपने अपना क़ीमती समय हमारे ‘वर्चुअल न्यूज़पेपर‘ को दिया।
स्वच्छ
शुक्रिया
me
ख़ान साहब ! जो सच आज तक हिंदी ब्लॉग जगत से छिपा रहा है, उसे ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ हिंदी ब्लॉगर्स के सामने रखकर यह ज़रूर पूछेगा कि आप सभी विचारशील लोग हैं, सारे हालात को सामने रखकर सोचिए कि ब्लॉगिंग के नाम पर गुट बनाना और अपनी रंजिंशें निकालना ब्लॉग जगत को किस ओर ले जा रहा है ?
ऐसे लोगों को मार्गदर्शक और सिरमौर बनाना ‘हिंदी ब्लॉगिंग के भविष्य‘ के लिए फ़ायदेमंद कहा जाएगा या फिर घातक ?
bye
Khuda Hafiz
स्वच्छ
यकीन एक डॉक्टर के ओपरेशन की माफिक फायदेमंद होगा'
Sent at 8:54 AM on Friday
स्वच्छ
चलते चलते मैं आपको यह भी बता दूं कि http://utsav.parikalpnaa.com/ पर अभी भी मेरा नाम आयोजन समिति में चमक रहा है
Sent at 8:56 AM on Friday
me
आपने यह भी एक हैरतअंगेज़ तथ्य उजागर किया है। आपके इंटरव्यू के लिए हम आपके शुक्रगुज़ार हैं।
Sent at 8:57 AM on Friday
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
=========================================================================================

तो साहिबान ! जो सच अब तक था पर्दे के पीछे, अब वह आ चुका है मंज़रे आम पर, आप सबके सामने। एक ऐसा सच जिसे कहने से टालते रहे जनाब सलीम ख़ान साहब आज तक और जो लोग उनके साथ अन्याय करते रहे उन्होंने भी यह सच आपके सामने आने नहीं दिया आज तक। 
यह है आज हिंदी ब्लॉगिंग का नंगा सच, जिसे आप देख पा रहे हैं ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ पर। पहला वर्चुअल समाचार पत्र, जो आपको बाख़बर रखता है हिंदी ब्लॉगिंग के सच से, सच जो कड़वा होता है, सच जो असहनीय होता है, लेकिन सच ही अमृत होता है। हिंदी ब्लॉगिंग की आत्मा का हनन हो नहीं सकता जब तक कि सच बोलने के लिए ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ मौजूद है और इसके ज़रिये सच जानने के ख्वाहिशमंद ब्लॉगर्स मौजूद हैं।
जनाब सलीम ख़ान साहब को सर्वाधिक चर्चित ब्लॉगर के शीर्षक के तहत पुरस्कृत किया जा रहा था और अब उनका चर्चा कहीं भी नहीं है ?
जबकि उनका नाम आयोजन समिति में अब भी चमक रहा है। जिसका फ़ोटो भी आप देख सकते हैं और दिए गए लिंक पर जाकर प्रमाणित भी कर सकते हैं।
जिन ब्लॉगर्स को सम्मानित किया जा रहा है, उनमें से अधिकतर ने हिंदी ब्लॉगिंग को अपना यादगार योगदान दिया है। उनका हम भी सम्मान करते हैं। उनका काम ही उनका सम्मान है, उनके काम को सम्मान मिलना ही चाहिए लेकिन सम्मान की आड़ में व्यक्तिगत रंजिंशें निकालना कहां तक उचित है ?
आज यही सवाल हम सबके सामने है।
विचारशील ब्लॉगर्स विचार करें कि अपने व्यापार के लिए, अपनी लिखी किताब की पब्लिसिटी के लिए सम्मानित ब्लॉगर्स को अपनी तुच्छ रंजिश और अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल करना कहां तक उचित है ?
अपना जवाब आप टिप्पणियों के माध्यम से खुलकर दें ताकि आइंदा आयोजित होने वाले कार्यक्रम गंदी गुटबाज़ी के मनहूस साये से दूर रहें।
ऐसी ही रोचक और खोजपूर्ण रिपोर्ट लाता रहेगा ब्लॉग की ख़बरें‘
हिंदी ब्लॉग जगत का सबसे पहला और सबसे विश्वसनीय अख़बार
जो लिखता सदा सच ।
जय हिंद ! 
(यह इंटरव्यू Chat पर लिया गया ताकि संदेह की कोई गुंजाइश ही न रहे.)     

सुझाव : Blogging के बेहतर कल के लिए


आज नवोदित ब्लोगर्स की क्या स्तिथि है इस नवोदित, विकास शील ब्लॉग जगत में ?

मुझे ब्लॉग जगत में आये ज्यादा वक्त न गुजरा होगा, और मैं भी इसके रंग में रंगने लगा. अपनी पोस्ट को बढ़ावा देने मैंने भी कई एग्रीगेटर का सहारा लेना शुरू कर दिया. आखिर हर नया ब्लौगर यही तो चाहता है कि उसकी पोस्ट को सब पढ़ें और वो मशहूर हो जाए. और इसी कारण मैंने भी बहुत प्रयत्न किये ताकि मैं भी लोगों की नज़रों में आ जाऊँ... और देखो मैं अपने उद्देश्य में थोडा ही सही सफल तो हो ही रहा हूँ. पर इस ब्लाग जगत में इतनी जल्दी नाम पा लेना सबके बस की बात नहीं. मैंने भी करीब एक साल से ज्यादा का लम्बा इंतजार किया.  और आज न जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि मैंने तो अपने मुकाम की पहली सीढ़ी तो पा ली पर क्या और भी लोगों को मेरी ही तरह सफलता मिली ? ये इंसानी फितरत है कि अगर कोई नया काम वो करने जाए तो सबसे पहली उसकी मनोकमाना यही रहती है कि अगले दिन ही उसे अपने उस काम का सही फल और वह भी बड़ी अच्छी तादाद में मिले. इसी बीच मैंने अपने २३वें जन्मदिन पे एक फिल्म देखी F.A.L.T.U. फिल्म की कहानी बहुत अच्छी लगी मुझे... Don't worry मैं आपको फिल्म की स्टोरी नहीं सुनाने वाला, मैं तो बस इतना कहना चाहता हूँ कि इस फिल्म को देखने के बाद मुझे realize हुआ कि हमारा education system कितना लापरवाह है, आज हर कोई इंजिनियर, डॉक्टर इत्यादि बनना चाह रहा है. क्योंकि हमारे schools में ये कभी नहीं सिखाया जाता कि बेटा तेरे अन्दर ये प्रतिभा है और तू इस ओर भी थोड़ा ध्यान दे. और इसी कारण अक्सर नवयुवक लेखन को कॉलेज में या उसके बाद ही अपनाते हैं. 
डॉक्टर, इंजिनियर तो आज हर कोई बन रहा है और आप शायद ना मानें जहां मैं रहता हूँ उस बिल्डिंग में ६ इंजिनियर रहते हैं. और उन ६ में से केवल दो ही ऐसे हैं जो कवितायें लिखते हैं, और उन दो में से एक मैं भी हूँ जो कविता के साथ साथ लेख, कहैं इत्यादि भी लिखता हूँ. यहाँ मैं अपनी बधाई नहीं कर रहा. बस इतना कहना चाहता हूँ कि मैं जिस शहर (जबलपुर) में रहता हूँ वो आज भी पूरी तरह से जागरूक नहीं. यहाँ के लोग अपने बच्चों को इंजिनियर तो बनाना चाहते हैं पर लेखक या कवि नहीं. चाहे उनके बच्चे में कितनी भी प्रतिभाएं क्यों न छिपी हों... यहाँ मैं सिर्फ लेखन के क्षेत्र विशेष की बात इसीलिए कर रहा हूँ क्योंकि ये क्षेत्र ही मेरे हिसाब से ज्यादा अछूता है आज. आज लोग दूसरे देश के लोगों की किताबें पढ़ते हैं, उनकी किताबों को दूसरों को पढने की प्रेणना देते हैं, बड़े शायरों की शायरियों को SMS में एक दूसरे को भेजते हैं पर कोई ये नहीं चाहता कि वो भी कुछ लिखे. अपना या अपने प्रियजन का नाम दुनिया के सामने साबित करें.

और इसीलिए आज मैं ब्लॉग जगत के बड़े बड़े दिग्गजों को कुछ सुझाव देना चाहता हूँ. और वो सुझाव कुछ इस तरह हैं - 

  • आज भी हमारे देश के ऐसे कई शहर व गाँव हैं जहाँ इन्टरनेट तो हर कोई जनता है पर वो ब्लॉग्गिंग या लेखन के प्रति जागरूक नहीं हैं, बहुत से लोगों को ब्लॉग्गिंग के बारे में जानकारी ही नहीं है. इसीलिए मेरा सुझाव है कि 
  1. सारे देश में हिंदी लेखन, हिंदी क्रियेटिव राइटिंग तथा हिंदी ब्लॉग्गिंग के लिए हर छोटे - बड़े  शहर, कस्बे तथा गाँव के सभी छोटे बड़े स्कूल व कॉलेज में छोटे छोटे Workshops तथा सेमीनार आयोजित करना चाहिए.
  2.  छोटे व बड़े स्तर पर हिंदी लेखन सम्बंधित प्रतियोगिताएं आयोजित की जाए.
  3. हर प्रतियोगी व वर्कशॉप में आने वाले प्रतिभागी को अखिल भारतीय स्तर का प्रमाण पात्र दिया जाए.
  4. अगर हो सके तो प्रोत्साहन राशि का भी इन्तेजाम किया जाए.
  5.  और वर्ष में एक बार इन अलग अलग स्थानों से चुने गए शीर्ष प्रतियोगियों को हिंदी साहित्य लेखन जगत की सम्मानित  हस्तियों द्वारा सम्मानित भी किया जाए.
  6. और एक पुस्तक का भी विमोचन किया जाए जिसमे उन प्रतिभागियों की ही लिखी गई रचनाएं हों. 
  • अब बात आती है इन सबमे लगने वाले धन की. तो उसके लिए भी मेरे पास सुझाव है कि जो वोर्क्शोप या प्रतियोगिता आयोजित की जाए उनमे भाग लेने वाले प्रतिभागियों से ही कुछ राशि ली जाए और उन पर ही खर्च किया जाए.
  • हमारे देश में लाखों स्वयं सेवी संस्थाएँ हैं, इस हेतु उनकी भी मदद ली जाए...
ऐसा नहीं है कि ये काम मैं अकेला शुरू नहीं कर सकता, पर इस काम के लिए मुझे समय - समय पर सही मार्गदर्शन करने वालों की जरूरत होगी. सभी आयोजनों के लिए धन राशि की भी आवश्यकता होगी. और सबसे महत्वपूर्ण समय की भी आवश्यकता भी होगी. चूंकि मैं अभी एक बेरोजगार नौजवान व नवोदित ब्लोगर हूँ तो मेरे लिए सब कुछ कर पाना थोड़ा नामुमकिन सा लगता है... 
और जहाँ तक मैं समझता हूँ कि हिंदी ब्लॉगर जगत के वरिष्ठ ब्लौगर पूरी तरह से इस कार्य हेतु सक्षम हैं, तो कृप्या कर मेरे इस सुझाव को आप सारे हिंदी ब्लॉगर जगत के हर फोरम, हर ब्लॉगर असोसिएशन इत्यादि के सामने प्रस्तुत करें और मेरी सोच को आगे तक पंहुचने का कष्ट करें...

मैं नहीं चाहता कि ब्लॉग जगत के नवोदित सितारे तथा कुछ गुमनाम नौजवान कवि व लेखकों की रचनाएँ बस उनकी डायरी तक ही सीमित रह जाए... और हाँ एक और बात इस कार्य में कृपया भ्रष्टाचार व भ्रष्ट लोगों की मदद लेने के बारे में सोचे ही न, चाहे वो कितना भी बड़ा नेता हो या कोई दिग्गज ब्लोग्गर...

धन्यवाद !

अधिक जानकारी के लिए मुझसे संपर्क करें - 

महेश बारमाटे "माही"

और मेरे ब्लॉग को फौलो कर के मेरा हौसला बढायें... 

पूरा मीडिया अब साईं बाबा के आगे नतमस्तक कैसे हो गया?

देश की जानी-मानी आध्यात्मिक शख्सियत पुट्टापर्थी के सत्य साईं बाबा इन दिनों सर्वाधिक चर्चा में हैं। आज उनकी हजारों करोड़ की रुपए सम्पत्ति और उसके वारिस को लेकर विवाद हो रहा है। साथ ही इस बात पर भी जगह-जगह बहस हो रही है कि साईं बाबा भगवान थे या फिर आम आदमी। उनके खुद को भगवान कहलाने और चमत्कार दिखाने पर पूर्व में खूब विवाद होता रहा है। ऐसे में सर्वाधिक आश्चर्य होता है कि मीडिया और विशेष रूप से इलैक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका पर। सत्य साईं बाबा के अस्पताल में भर्ती होने से लेकर निधन के बाद तक सारे न्यूज चैनल जिस तरह बाबा की महिमा का बखान कर रहे हैं, उस देख यह हैरानी होती है कि कभी अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए ये ही चैनल उन्हें डोंगी बाबा बता कर सनसनी पैदा कर रहे थे और आज जनता के मूड को देख कर उन्हें वे ही करोड़ों लोगों के भगवान और हजारों करोड़ रुपए के साम्राज्य वाले धर्मगुरू कैसे दिखाई दे रहे हैं। कभी ये ही चैनल तर्कवादियों की जमात जमा करके बाबा को फर्जी बताने से बाज नहीं आ रहे थे, आज वे ही पुट्टापर्थी की पल-पल की खबर दिखाते हुए दुनियाभर में उनकी ओर से किए गए समाजोत्थान के कार्यों का बखान कर रहे हैं। ये कैसा दोहरा चरित्र है?
असल में महत्वपूर्ण ये नहीं है कि साईं बाबा चमत्कारी थे या नहीं, कि वे जादू दिखा कर लोगों को आकर्षित करते थे और वह जादू कोई भी दिखा सकता है, महत्वपूर्ण ये है कि उस शख्स ने यदि हजारों करोड़ रुपए का साम्राज्य खड़ा भी किया तो उसका मकसद आखिर जनता की भलाई ही तो था।
यह सही है कि स्वयं को भगवान कहलवाना नितांत गलत है, मगर यह भी उतना ही सही है कि केवल खुद को भगवान कहने मात्र से क्या होता है, अगर उसे कोई भगवान नहीं माने। दूसरा ये कि अगर किसी को किसी में भगवान के दर्शन होते हैं, तो उसका क्या उपाय है। हमें मात्र पत्थर में भी तो भगवान नजर आते हैं। मूर्तिपूजा विरोधी पत्थर में भगवान देखने वालों पर हंसते हैं। असल में यह आस्था का मामला है, जिसके आगे तर्क और बुद्धि का जोर नहीं चलता। कदाचित उनकी योजनाओं से लाभान्वित होने वाले लोग स्वार्थवश उन्हें भगवान के रूप में महिमामंडित कर रहे हों, मगर जिसका किसी से हित सधता है और उसमें उसे भगवान दिखाई देता है तो उसका क्या उपाय है। किसी मूर्ति विशेष या किसी मंदिर अथवा स्थान विशेष से हमारी मनोकामना पूरी होती है तो हम भी तो उसे भगवान के रूप में मानते हैं। ऐसी दुनिया में किसी को साईं बाबा में भगवान दिखता है तो उस पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए और न ही उस पर आपत्ति होनी चाहिए, जिसे साईं बाबा केवल आम आदमी ही नजर आता है।
असल बात ये कि ईश्वर निराकार है। हम ही हैं जो उसे आकार रूप में देखना चाहते हैं। चूंकि आकार ही हमें समझ में आता है, निराकार पर तो ध्यान टिकता नहीं है। और इसके लिए मूर्ति बना देते हैं। किसी व्यक्ति में, किसी वृक्ष में, गाय में, कन्या में भगवान देखते हैं। कोई अपने माता-पिता में तो कोई अपने गुरू में भगवान देखता है।
एक बिंदू और भी है। वो यह कि हम भगवान शब्द को सर्वशक्तिमान ईश्वर का पर्यायवाची मानते हैं, जबकि वस्तुत: ऐसा है नहीं। शास्त्रों में ही वर्णित है कि भग यानि श्री, यश, ऐश्वर्य इत्यादि छह तत्त्वों में किसी भी एक तत्त्व से परिपूर्ण होने वाले को भगवान कहा जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम व योगीराज श्रीकृष्ण को भी इसी रूप में भगवान माना जाता है। वरना उन्हें भी शरीर रूप में अवतार लेने के कारण सभी भौतिक  सुख-दु:ख को भोगना पड़ता है। उनकी भी मृत्यु होती है।
बहरहाल, चूंकि साईं बाबा ने खुद को भगवान कहलवाना शुरू किया तो उसकी आलोचना करते हुए हमने उन्हें केवल आम आदमी ही करार देने की जुर्रत की। यदि वे केवल आम आदमी ही हैं तो मात्र जादू के दम पर इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा नहीं किया जा सकता। जरूर उस शख्स में कुछ तो खासियत होगी ही। क्या केवल जादू के दम पर करोड़ों लोगों को अपना भक्त बनाया जा सकता है? जादू से अलबत्ता आकर्षित जरूर किया जा सकता है, मगर कोई भी व्यक्ति भक्त तभी होता है, जब उसके जीवन में अपेक्षित परिवर्तन आए। केवल जादू देख कर ज्यादा देर तक जादूगर से जुड़ा नहीं रहा जा सकता। राजनेता जरूर वोटों की राजनीति के कारण हर धर्म गुरू के आगे मत्था टेकते नजर आ सकते हैं, चाहे उनके मन में उसके प्रति श्रद्धा हो या नहीं, मगर सचिन तेंदुलकर जैसी अनेकानेक हस्तियां यदि बाबा के प्रति आकृष्ठ हुई थीं, तो जरूर उन्हें कुछ तो नजर आया होगा। माना कि जो कुछ लोग उनके कथित आशीर्वाद की वजह से खुशहाल हुए अथवा जो कुछ लोग उनकी ओर किए गए समाजोपयोगी कार्यों का लाभ उठा रहे थे, इस कारण उनके भक्त बन गए, मगर इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि चाहे जादू के माध्यम से ही सही, मगर उन्होंने लोगों को अध्यात्म का रास्ता दिखाया, गरीबों का कल्याण किया। अगर ये मान भी लिया जाए कि वे जो चमत्कार दिखाते थे, उन्हें कोई भी जादूगर दिखा सकता है, मगर क्या यह कम चमत्कार है कि करोड़ों लोग उनके प्रति आस्थावान हो गए। और कुछ नहीं तो इसी जादू या चमत्कार के दम पर इकट्ठा किए गए धन से आम लोगों के कल्याण की योजनाएं चलाने की तो तारीफ ही की जानी चाहिए।
संभव है आज पुट्टापर्थी का चौबीस घंटे कवरेज देने के पीछे तर्क ये दिया जाए कि वे तो महज घटना को दिखा रहे हैं कि वहां कितनी भीड़ जमा हो रही है या फिर वीवीआईपी का कवरेज दिखा रहे है या फिर करोड़ों लोंगों की आस्था का ख्याल रख रहे हैं, तो इस सवाल जवाब क्या है कि वे पहले उन्हीं करोड़ों लोगों की आस्था पर प्रहार क्यों कर रहे थे। कुल जमा बात इतनी सी है कि न्यूज चैनल संयमित नहीं हैं। उन्हें जो मन में आता है, दिखाते हैं। टीआरपी के चक्कर में सनसनी पैदा करते हैं। इसके अतिरिक्त जिस व्यक्ति से आर्थिक लाभ होता है, उसका कवरेज ज्यादा दिखाते हैं। बाबा रामदेव उसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। वे जो योग सिखा रहे हैं, वह हमारे ऋषि-मुनि हजारों वर्षों से करते रहे हैं, वह हजारों योग गुरू सिखा रहे हैं, कोई बाबा ने ये योग इजाद नहीं किया है, मगर चूंकि उन्होंने अपने कार्यक्रमों का कवरेज दिखाने के पैसे दिए, इस कारण उन्हें ऐसा योग गुरू बना दिया, मानो न पहले ऐसे योग गुरू हुए, न हैं और न ही भविष्य में होंगे।
गिरधर तेजवानी

27.4.11

एक पत्र, अन्ना के नाम


एक पत्र, अन्ना के नाम

प्रिय श्री अन्ना हज़ारे जी, आपके आन्दोलन को मिल रहा अपार जनसमर्थन इस बात का द्योतक है कि लोग व्यवस्था में बदलाव चाहते हैं. टीवी देख कर, समाचार पत्रों को पढ़ कर तो ऐसा लग रहा है कि अगर आपका आन्दोलन सफल हो गया तो भ्रष्टाचार फिर किताबों में ही पढ़ने को मिलेगा या फिर दादी-नानी के किस्से कहानियों में. ऐसा होता है तो इससे अच्छा और क्या होगा, पर मैं दो-चार बातें कहना चाहूंगा. उपवास का मैं विरोधी नहीं, उपवास करना चाहिए. गाँधी जी भी करते थे और उन्होंने कहा भी है कि भोजन करना एक अशुचितापूर्ण कार्य है ठीक उसी तरह जैसे मल त्याग करना. अंतर सिर्फ इतना है के मल त्याग करने के बाद हम राहत महसूस करते है और भोजन करने के बाद बेचैनी.
अतः उपवास करना ठीक है, पर उपवास का उपयोग एक हथियार के रूप में अपनी बात मनवाने के लिए किया जाए ये कहाँ तक उचित है. ये ब्लैकमेलिंग है. प्रकारांतर से हिंसा है. एक बड़ा बौद्धिक वर्ग आपके साथ है, समर्थन में है फिर ये अतार्किक रास्ता क्यों. या तो आपके व उनके तर्कों व प्रयासों में दम नहीं के अपनी बात मनवा लें या फिर सरकार निरंकुश हो गयी है. हम आमजन के लिए दोनों ही स्थितियाँ खतरनाक हैं. समस्या दोनों तरफ है, दोनों ही आमजन से संवाद स्थापित करने की कला भूल गए हैं. ऐसे में एक ही रास्ता बचता है, अतिवाद का. आप भी वही कर रहे हैं. सरकार भी वही करेगी. सत्य और समाधान कहीं बीच में खो के रह जायेंगे.
आप जिस जनलोकपाल अधिनियम को पारित करना चाहते हैं, या कि जो सरकार लाना चाहती है वो कैसे समस्या का समाधान करेंगे मेरी समझ से परे है. कुल मिला के आप और सरकार दोनों सहमत हैं कि भ्रष्टाचार रहे, लोग पीड़ित भी होते रहें, तसल्ली ये रहे के भाई भ्रष्टाचारी को सजा मिलने की उम्मीद रहेगी. परिणामतः में एक और समस्याकारक संस्था हमारे सामने होगी. हम कितनी संस्थाएं एक के ऊपर एक बैठाते जायेंगे. ऐसी संस्थाएं बनाने से भ्रष्टाचार नहीं मिटता. किला मजबूत होने से दुश्मन के अन्दर आने का भय कम नहीं होता.
काश आप कोई ऐसी आयोजना करते कि भ्रष्टाचार के मूल पर प्रहार होता. आप जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं उससे कई गुना ज्यादा खतरनाक है बौद्धिक भ्रष्टाचार जो आपके, मेरे, हम सबके चारों ओर पसरा हुआ है, पर दीखता नहीं. ये आर्थिक भ्रष्टाचार इसी बौद्धिक भ्रष्टाचार की उपज है.
काश के आप कहते और आन्दोलन करते कि भाई देश में सभी के लिए एक न्यूनतम जीवन स्तर निर्धारित हो, जो कि ऐसा हो कि व्यक्ति सुविधापूर्ण जीवन जी सके. रोटी मिले, कपड़ा मिले, मकान मिले, बीमारी में चिकित्सा मिले, भविष्य के प्रति अनिश्चितता ना हो. असुरक्षा का भाव ना हो. लोगों के बीच प्रेम बढ़े, भाईचारा बढ़े. राज्य सबकी शिक्षा का प्रबंध करे. सभी एक साथ पढ़े, एक जैसे विद्यालय हो, एक जैसी सुविधाएं हों. समाज के एक बहुत बड़े वर्ग के साथ तो ऐसा घटना ही चाहिए तभी हम कह सकते हैं कि हम सुखी हैं. हमारा देश हमारा समाज सुखी है.
काश कि आप कहते और आन्दोलन करते कि भाई संविधान का अंगीकार किया जाना सामजिक संविदा एक थी. तो आओ उस संविदा का अनुपालन सुनिश्चित करें. संविधान कि वे उपबंध जो कि निर्जीव पड़े हैं उन्हें जीवित करें. वे कब तक काले कोट वालों के रहमो-करम पे पड़े रहेंगे. आप कहते कि अब समय आ गया है आर्थिक समानता को जड़ से उखाड़ फेंकने का. सिर्फ राजनितिक समानता से तो कुछ ख़ास हासिल नहीं होता. विनोबा ने भूदान के लिए कहा आप बड़े लोगों से अतिरिक्त पूँजी राज्य को वापस करने के लिए कहते. यूं पूँजीपति होना बुरा नहीं, अरबपति होना बुरा नहीं. पर एक कल्याणकारी समाजवादी राज्य में ये अखरता है कि जनता दो ध्रुवों में बंट जाए, एक छोर पे चंद अरबपति हों दूसरे पे आमजन, ये कैसे चलेगा ये नहीं चल सकता. और फिर क्यों चाहिए किसी को इतना पैसा. अगर कुछ के पास आवशयकता से अधिक है तो निश्चय ही बहुतों के पास आवशयकता से कम होगा या बिलकुल नहीं होगा. फिर कैसे मिटेगा भ्रष्टाचार कैसे बनेगा शांत सुखी और सम्रद्ध समाज.
हम वोट देते हैं, या नहीं भी देते हैं तो भी हैं तो इस देश के नागरिक. हम जन्मते हैं और बंध जाते हैं उसी सामाजिक संविदा से. जब हमें बाँधा जाता है तब हम कोई उपाय करने के लायक नहीं होते और जब हम उपाए करने के लायक होते हैं तब कोई उपाय रह नहीं जाता. काश आप इसके लिए कोई उपाय कोई आयोजना करते.
पर अफ़सोस अपने ऐसी कोई आयोजना, कोई उपाय नहीं किया. आप मूल पे प्रहार करने का प्रयास करते नहीं दिखते. आपने शरद पवार पे कई प्रश्न उठाये. ऐसे प्रश्न कई और मंत्रियों पे भी किये जा सकते हैं. ठीक भी है. तब आप कुछ ऐसा करते के शरद पवार के निर्वाचन क्षेत्र में जाते और जनता से सीधे संवाद करते उन्हें बताते के शरद पवार के कारनामे. आपके सहयोगी जैसे काले कोट वालों की संपत्ति का ब्यौरा जुटाते हैं वैसे ही शरद पवार की संपत्ति का भी जुटाते. जनता को सुझाते के ये आदमी देश समाज के लिए खतरा है, भ्रष्टाचार का पोषक है इसे वापस बुलाओ दोबारा कभी ना चुनना जब तक ये तौबा ना कर ले. हो सकता है ऐसा कोई उपाय निकल आता कि किसी जनप्रतिनिधि को वापस भी बुलाया जा सके. और आप वही से अपने अपना आन्दोलन संचालित करते. ओबी वैन वहां भी पहुँच जाती, रवीश कुमार वहां भी पहुँच जाते.
आप जनता को समझाते के भाई इन राजनीतिज्ञों को छोड़ दो. क्यों बंधक बनाये हो इन्हें जवानी से. क्यों मजबूर कर रहे हो इन्हें कि ये बार-बार एमपी बने. और अब तो तुमने इनके जवान-जवान बच्चों को भी एमपी बनने के लिए मजबूर कर दिया है. अब कोई कारण नहीं के इन बूढ़ों को ढोया जाय. पवार साहब 1967 से लगे हैं, प्रणब दा 1969 से लगे हैं और भी बहुत हैं जो परिवार समेत बस गए हैं संसद में. अब तो इनका बोरिया-बिस्तर बांधो. शायद कोई बात निकल के आती कि भाई चार-पांच बार से अधिक कोई क्यों संसद जाए. संसद है कोई ज़मींदारों का अड्डा नहीं.
अपने ऐसा नहीं किया, पर ऐसा तो करना पड़ेगा. आँखों में एक यूटोपिया तो रखना पड़ेगा. हमें अच्छे आदमी तो बनाने ही होंगे. जब देश और समाज सोचेगा ही नहीं अच्छे आदमी बनाने के बारे में तो कैसे चलेगा. जब इंसान को हिन्दू बनाया जा सकता है, मुस्लिम बनाया जा सकता है, सिख बनाया जा सकता है तो साथ ही उसे अच्छा इंसान भी बनाया जा सकता है. आज नहीं तो कल. आप नहीं तो कोई और. बिना ऐसे आमूलचूल परिवर्तन के कुछ हासिल होने वाला नहीं. आपने जाने अनजाने राजनीति को अवमूल्यित करने का प्रयास किया है. उसके प्रति विरक्ति का भाव निराशा का भाव पैदा करने का प्रयास किया है. ये मुझे स्वीकार नहीं. ऐसे प्रयास और भी सँस्थाए करती रहती हैं. उनमें दो प्रमुख हैं. मीडिया और मार्केट. पर भारत जैसे देश में राजनीति को हल्का करना एक खतरनाक और कुटिल प्रयास होगा.
हाँ एक बात है. आपको मिले समर्थन से ये स्पष्ट है के जनता बदलाव चाहती है. सही नेतृत्व की तलाश है. आपको देख के मुझे लगा कि हम लोग 'राजनीति' शब्द का प्रयोग क्यों करते हैं, इस शब्द का प्रयोग बंद कर देना चाहिए. जब राजा नहीं तो राजनीती कैसी. हमें कहना चाहिए 'जननीति'. और आप एक जननीतिज्ञ हैं.
सरकार तो खैर आपकी बात मानेगी ही. क्योंकि वे लोग जनता की नब्ज आपसे बेहतर समझते हैं. आप प्यारे इंसान हैं. हम आपको यूं मरने नहीं दे सकते. मैं कल अपने शहर बरेली के अयूबखां चौराहे पे जाऊंगा आपके समर्थन में मानव श्रृंखला बनाने. आपसे असहमति अलग बात है. पर जनता की आवाज में आवाज मिलाना ज़रूरी है. उम्मीद बंधी रहती है प्रदीप सर जैसे कुछ सच्चे कुछ निस्वार्थ लोगों से मिलकर, उनसे जुड़कर.
आभार
दिनेश पारीक 

क्या इन टोटको से भर्ष्टाचार खत्म हो सकता है ? आप देखिए कि अन्ना कैसे-कैसे बयान दे रहे हैं? शरद पवार भ्रष्ट हैं। भ्रष्टाचार पर बनी जीओएम (मंत्रिसमूह) में फला-फलां और फलां मंत्री हैं। इसलिए इस समिति का कोई भविष्य नहीं है। पवार को तो मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देना चाहिए। पवार का बचाव करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर पवार के मंत्रिमंडल से बाहर हो जाने से भ्रष्टाचार