भारत-वर्ष में पुरातन काल में नारी शक्ति का अत्यधिक महत्व था।यहाँ की संस्कृति में नारी को एक महान शक्ति के रूप में आदर-सम्मान दिया जाता रहा है।वैदिक काल में इस देवभूमि की नारी, सामाजिक-धार्मिक व आध्यात्मिक क्षेत्रों में पुरूष की सहभागिनी थी।गौरवपूर्ण अधिकार व सम्मान प्राप्त नारी आदिकाल से माँ ,बहन,प्रेयसी,पत्नी व पुत्री आदि रिश्तों को,दायित्वों को निभाती चली आ रही है।वैदिक काल में नारी ने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए,समाज व जीवन के हर क्षेत्र में अपना गौरव व सम्मान बढ़ाया था।भारत में हिन्दू शासकों के शासन काल तक नारी का सम्मान उच्चकोटि का था।महर्षि याज्ञवल्क्य का गार्गेय के साथ संवाद,जगतगुरु शंकराचार्य का मंडन मिश्र की धर्मपत्नी भारती के साथ शास्त्रों,वेदों व कामशास्त्र पर शास्त्रार्थ आज भी स्मरणीय है।
मध्य काल में भारत-वर्ष में मुगल सल्तनत के विस्तार के साथ-साथ,भारतीय समाज व नारी की स्थिति बिगड़ती गई एवं नारी के सामने एक के बाद एक समस्यायें पैदा होती रहीं।मुगल काल वह काल था,जब भारतीय नारी ने अपने सतीत्व के रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति देने का कार्य किया।मध्य काल में भारतीय नारी का जीवन संकटग्रस्त था।शिक्षा लगभग समाप्त हो गई थी।इस मध्य काल में भी अपनी विद्वता,वीरता,लगन से अपना,अपने परिवार का,अपने समाज व देश का नाम स्वर्णाक्षरों मे। लिखने वाली रानी दुर्गावती,अहिल्याबाई,पद्मिनी,जीजाबाई आदि युगों-युगों तक प्रेरणा देती रहेंगी।नैतिकता,सदाचरण व ब्रह्मचर्य पालन में भारतीय पुरूषों की अपेक्षा श्रेष्ठतम् उदाहरण बार-बार पेश करने वाली भारतीय महिलाओं ने पुरातन काल,मध्य काल में ही नहीं वरन् ब्रितानिया हुकूमत के समय भी भारत की जंग-ए-आजादी में अपनी सक्रिय व अविस्मरणीय भूमिका निभाई है।राजा राम मोहन राय,स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द,महात्मा गाँधी ने भारतीय नारी की दशा को समझते हुए,नारी शिक्षा व अन्य क्रान्तिकारी सुधारों को प्रचारित-प्रसारित करने व लागू करवाने का महानतम् कार्य किया।भारत-पाक विभाजन के समय भी सतीत्व के रक्षार्थ,अपने नश्वर शरीर का त्याग करने वाली भारतीय महिलाओं की बलिदान की उच्च परम्परा के कारण ही भारतीय नारी सदैव सम्मान की पात्र रही है।आज भारतीय महिलायें शिक्षा व सामाजिक-राजनैतिक क्षेत्रों में अगर अग्रणी स्थानों पर हैं तो वह भारत के इन्हीं महापुरूषों की सोच व प्रयासों का परिणाम है।
ब्रितानिया हुकूमत से लम्बे संघर्ष व अनगिनित बलिदानों के उपरांत आजादी हासिल करने के बाद,आजाद भारत के संविधान में भारतीय नारी को तमाम अधिकार प्रदान किये गये।शिक्षा पर विशेष ध्यान देते हुए तमाम विद्यालयों की स्थापना की गई।आजाद भारत में दिनों-दिन राजनैतिक-सामाजिक क्षेत्रों व शिक्षा-रोजगार के क्षेत्रों में महिलाओं ने तेजी से तरक्की हासिल की।महिलाओं ने कामयाबी के कीर्तिमान स्थापित किये।एक प्रधानमंत्री व कुशल प्रशासक के रूप में इंदिरा गाँधी ने विश्व पटल पर अपने अमिट हस्ताक्षर कर के भारत-भूमि की शान में बढ़ोत्तरी की।वर्तमान समय में भी राजनैतिक क्षेत्र में महिला शक्ति का वर्चस्व कायम है।सोनिया गाँधी ,मीरा कुमार,ममता बनर्जी,मायावती,जयललिता आदि की नेतृत्व क्षमता व कार्यशैली का लोहा विपक्षी राजनैतिक दल भी मानते हैं।भारत के सर्वोच्च पद राष्टपति पर भी इस समय नारी शक्ति के रूप में श्रीमती प्रतिभा पाटिल आसीन हैं। सार्वजनिक जीवन व सामाजिक-राजनैतिक क्षेत्रों में अपने विशेष योगदान के कारण सुभाषिनी अली,किरण बेदी ,मेघा पाटेकर का नाम सम्मान पूर्वक लिया जाता है।
गौरवशाली इतिहास और कानूनी अधिकारों के बावजूद आज भारत में आम महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है।शीर्ष पदों पर महिलाओं के आसीन होने के बावजूद आज आम महिला को उसका अधिकार व सम्मान प्राप्त नहीं है।ग्रामीण अंचलों में नारी शिक्षा का प्रचार-प्रसार होने के बावजूद अभी अज्ञान की कालिमा मिटी नहीं है।अशिक्षित महिलाओं का अपने अधिकारों की जानकारी न होना,उनका अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न होना ही महिला की पीड़ा का,उसकी समस्या का सबसे बड़ा कारण है।विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सरकारें महिलाओं को जागरूक करने का प्रयास गैर सरकारी संगठनों व सरकारी महकमों के माध्यम से जारी रखे हुए हैं।यह सत्य है कि बगैर शैक्षिक व कानूनी जागरूकता के वर्तमान युग में महिलाओं को अधिकार व सम्मान मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।यह दुर्भाग्यपूर्ण कटु सत्य है कि‘‘यत्र नारी पूज्यंते,तत्र देवता रमन्ते’’की अवधारणा वाले भारत देश में सामाजिक व पारिवारिक स्तर पर स्त्री की दशा सोचनीय व दयनीय है।समाज के नैतिक पतन का परिणाम है कि जन्मदात्री नारी को पारिवारिक हिंसा का शिकार होना पड़ता है।
महिलाओ को भारत-वर्ष में कानून प्रदत्त तमाम अधिकार प्राप्त हैं।महिलाओं को घरेलू मामलों सम्बन्धी,ज़ायजाद सम्बन्धी,कार्य क्षेत्र सम्बन्धी,व्यक्तिगत सुरक्षा-संरक्षण सम्बन्धी,पंचायती राज व्यवस्था में भागीदारी सम्बन्धी और भी तमाम् हितकारी कानूनों का संरक्षण प्राप्त है।आम महिलाओं को अपना समय घर की चहारदीवारी में, पारिवारिक दायित्वों को पूरा करते हुए गुजारना पड़ रहा है।परिवार व रिश्तों को संजोने-सवारने का महती दायित्व निभाने वाली आम महिला आज अपने अधिकारों से वंचित है। जागरूकता व शिक्षा के अभाव में आम महिला के साथ पारिवारिक स्तर पर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है।परिवार की इज्जत,बाल-बच्चों के पालन-पोषण एवं चौके -चूल्हे के चक्रव्यूह में फॅंसी नारी मन मसोस कर,अपना कर्तव्य निभाती चली जा रही है।यह ठीक है कि शीर्ष पदों पर महिलायें पहुँच कर महिला शक्ति का परचम लहरा रहीं है। परन्तु समाज की प्राथमिक इकाई परिवार में महिला अपनी जिम्मेंदारियों एवं घरेलू हिंसा के पाटों के बीच पिसती जा रही है।यदि आम महिलायें अपना कानूनी अधिकार जान जायें,उन अधिकारों की प्राप्ति के प्रति मुखरित हो जाये। तो परिवार व समाज में एक बड़ा भूचाल आ जायेगा।इससे बड़ा क्रान्तिकारी परिवर्तन महिलाओं के हित का कुछ और हो नहीं सकता कि आम महिला का जीवन शोषण मुक्त हो जाये।
महिला संरक्षण अधिनियम,2005 के तहत् महिलाओं को पारिवारिक हिंसा के विरूद्ध संरक्षण व सहायता का कानूनी अधिकार प्राप्त है।यदि कोई भी व्यक्ति अपने साथ रह रही किसी महिला को शारीरिक हिंसा अर्थात मारपीट करना,थप्पड़ मारना,ठोकर मारना, दांत से काटना,लात से मारना,मुक्का मारना,धक्का देना,धकेलना या किसी और तरीके से शारीरिक क्षति पहुंचता है,तो पीड़ित महिला महिला संरक्षण अधिनियम,2005 के तहत् सहायता प्राप्त कर सकती है।महिलाओं को लैंगिक हिंसा अर्थात बलात् लैंगिक मैथुन,जबरन अश्लील साहित्य पढ़ने या देखने को मजबूर करने पर,कोई अन्य प्रकार से अस्वीकार्य लैंगिक दुव्र्यवहार के खिलाफ भी महिला संरक्षण अधिनियम 2005 में अधिकार प्राप्त हैं।मौखिक और भावनात्मक हिंसा जिसमें अपमान,गलियां देना,चारित्रिक दोषारोपण,पुरूष संतान न होने के लिए अपमानित करना,दहेज की मांग ,शैक्षणिक संस्थान में अध्ययन से रोकने,नौकरी करने से मना करने,घर से निकलने पर,सामान्य परिस्थितियों में व्यक्तियों से मिलने पर रोक,विवाह करने के लिए जबरदस्ती,पसन्द शुदा व्यक्ति से विवाह पर रोक,आत्महत्या की धमकी देकर कोई कार्य करवाने की चेष्टा,मौखिक दुव्र्यवहार के साथ-साथ महिलाओं को आर्थिक हिंसा के विरूद्ध भी महिला संरक्षण अधिनियम,2005 में कानूनी अधिकार प्राप्त हैं।आर्थिक हिंसा की श्रेणी में महिला को या उसके बच्चों को गुजारा भत्ता न देना,खाना,कपड़े,दवाइयां न उपलब्ध कराना,महिला को रोजगार चलाने से रोकना या विघ्न डालना,रोजगार करने की अनुमति न देना,महिला द्वारा कमायें गये धन को उसे खर्च न करने देना,घर से निकालने की कोशिश करना,घरेलू उपयोग की वस्तुओं के उपयोग पर पाबन्दी लगाना,किराये के घर में रहने की स्थिति में किराया न देना आदि कृत्य आते है।।
यदि किसी महिला के साथ घरेलू हिंसा की जाती है तो वह महिला धारा18 व धारा19 के अधीन हिंसा करने वालों के विरूद्ध न्यायालय से आदेश प्राप्त कर सकती है।इन धाराओं के द्वारा महिला घरेलू हिंसा को रोकने के लिए साधारण आदेश अथवा विशेष आदेश की प्राप्ति कर सकती है।महिलाओं को धारा20 और धारा22 के अधीन अंतरिम धनीय अनुतोष के तहत् आदेश की प्राप्ति हो सकती है।घरेलू हिंसा की शिकार महिला को धारा5, धारा6, धारा7, धारा9, धारा10, धारा12, धारा14, धारा18 से धारा23 के तहत् अधिकार प्राप्त है।।इसमे। संरक्षण अधिकारी और सेवा प्रदाता की सहायता,संरक्षण,घरेलू हिंसा से बचाव के उपाय,घर में शांतिपूर्ण तरीके से रहने का अधिकार,घरेलू उपयोग की चीजों के उपयोग की अनुमति आदि अधिकार शामिल है।।
अब ध्यान देने की बात यह है कि यदि आज परिवार में महती जिम्मेदारी निभा रही आम महिला अपने इन अधिकारों की बहाली की मांग करने लगे तो क्या होगा?आम भारतीय जनमानस अपने परिवार की महिला से पारिवारिक जिम्मेंदारियों के साथ-साथ आर्थिक तरक्की में भी सहयोग तो चाहता है परन्तु महिला को उसका अधिकार देने के नाम पर त्यौरियां चढ़ा लेता है।अब भारत की महिलाओं को अपना अधिकार जानना व छीनना दोनों पड़ेगा।अब महिलाओं को अपने साथ होने वाले दुव्र्यवहार के विषय में मुखरित होना चाहिए।किसी व्यक्ति के द्वारा महिला से छेड़खानी करने पर महिला को दोषी मानना न्यायसंगत नहीं है।होना तो यह चाहिए कि जिसने गलती की है उसे सजा मिले परन्तु अधिकतर मामलों में महिलायें बदनामी के भय से मौन रहती हैं तथा जाने-अनजाने अपराध करने वाले की मदद कर देती हैं।सजा न मिलने के ही कारण ऐसे तत्व लोमहर्षक वारदातों को अंजाम दे देते हैं।स्कूली छात्राओं,कामकाजी महिलाओं के साथ ऐसी घटनायें रोजमर्रा की विषय वस्तुओं में शुमार हो चुकी हैं।
वर्तमान दौर में मॅंहगाई,आतंक के साये में जी रहे समाज व परिवार की महत्वपूर्ण सदस्या महिला वर्ग,दोहरी जिम्मेंदारी का बोझ उठाने को विवश है।चौके -चूल्हे की आग की तरह प्रतिदिन नारी के मन में आग जलती है।महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करके,समाज की अंहवादी सोच को बदल कर के हम रिश्तों,परिवार व समाज का पुनःनिर्माण कर सकते हैं।ऐसा तभी सम्भव हो पायेगा जबकि महिलायें स्वयं जागरूक होकर,अपने पैरों पर खड़ी होकर,अपने अधिकारों को जानें,उन्हें हासिल करें तथा कर्तव्य -पालन की दिशा में आगे बढ़ती रहें।