कहते हैं कि देश में अगर अन्ना का कोई सबसे बड़ा समर्थक है, तो वो है महेंद्र सिंह धोनी. वो उनकी तारीफ़ करते नहीं थकते. दरअसल अन्ना ने बुरे वक्त में धोनी का काफी साथ दिया है. बहुत अहसान है अन्ना का माही पर. अरे-अरे, मेरी बातों को ज़्यादा सीरियसली मत लीजिएगा. अब ये इत्तेफ़ाक ही कुछ ऐसा है कि आजकल हर कोई यही मज़ाक कर रहा है.
ऐसा नहीं है कि ये रिश्ता एकतरफ़ा है. दिमाग पर ज़ोर लगाकर याद कीजिए कि आपको जनलोकपाल बिल और अन्ना के बारे में सबसे पहले कब पता चला? वर्ल्डकप के बाद ना? मैंने विश्वकप के दौरान जितने भी मैच कवर किए, छोटे-छोटे झुंड में लोग 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' के प्लेकार्ड्स लिए स्टेडियम के बाहर नारेबाज़ी करते थे. मीडिया से समर्थन की गुहार भी लगाते थे, पर उस वक्त क्रिकेट का खुमार कुछ ऐसा था कि हम चाहकर भी उन्हें कवरेज नहीं दे पाए.
खैर, वर्ल्डकप खत्म हुआ, माही के सिर पर ताज सजा. और फिर 30 साल के विश्वविजेता से ध्यान 74 साल के उस शख्स पर जा टिका, जो देश से भ्रष्टाचार भगाना चाहता था.
क्रिकेट से सशक्त हुए देश के युवा लामबंद हुए, जाग्रत हुए और वहीं से अन्ना और माही का एक अजीब-सा रिश्ता शुरू हुआ. जब क्रिकेट नहीं होता, अन्ना का आंदोलन ज़ोर पकड़ता. और जब क्रिकेट टीम का निराशाजनक प्रदर्शन होता, तो अन्ना की आंधी में सबकुछ छुप जाता.
रामलीला मैदान में लहराते तिरंगे वैसे भी किसी क्रिकेट मैदान की ही याद दिलाते हैं, नहीं तो बाकी जगह राजनीतिक पार्टियों के झंडे ही होते हैं, देशभक्ति नहीं.
माही ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में तो अन्ना पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, पर भीतर ही भीतर टीम इंडिया में सब अन्ना से प्रभावित हैं. काश, इस मुश्किल दौर में भारतीय क्रिकेट को भी एक अन्ना मिल जाता!
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