22.7.11

मेेरे घर आई एक नन्ही परी


Pariwar Special article
मेेरे घर आई एक नन्ही परी
हरेक की हसरत होती है कि उसके आंगन में भी फूल खिलें, पर जब कुदरत मेहरबान नहीं हो और अपने आंगन में कोई किलकारी ना गूंजे, तो जिंदगी एक ऎसे मोड़ पर आ खड़ी होती है, जहां हर रास्ता वीरान और खामोश नजर आता है। लेकिन इस वीरानी को दूर करने के लिए आप किसी बच्चे को गोद ले सकते हैं। आपका आंगन भी गुलजार हो जाएगा और किसी मासूम और बेसहारा बच्चे के जीवन में भी खुशियों के फूल खिल उठेंगे। दत्तक ग्रहण में आने वाली मुश्किलें
किस तरह दूर हो सकती हैं, आइए जानें।

जानकारी के अभाव में अक्सर गोद लेने के इच्छुक लोगों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके लिए केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने केंद्रीय दत्तक ग्रहण तथा संसाधन प्राघिकरण बनाया है। यह प्राघिकरण इस कार्य में लगे राज्य सरकारों द्वारा संचालित तथा गैर सरकारी संगठनों को उच्च गुणवत्ता की बाल सुरक्षा तथा उनके घरेलू दत्तक ग्रहण को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक सहायता भी प्रदान करता है। दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया के लिए केंद्रीय दत्तक ग्रहण तथा संसाधन ने इंडियन प्लेसमेंट एजेंसी (देश के विभिन्न राज्यों में इसकी 73 शाखाएं हैं) और फॉरेन प्लेसमेंट एजेंसी (विदेशों में इसकी 254 शाखाएं हैं) को अघिकृत किया है।

इस तरह करें शुरूआत
माता पिता को सबसे पहले किसी मान्यता प्राप्त स्वयंसेवी समन्वय समिति से पंजीकरण करवाना होगा। नर्सिग होम या अस्पताल अथवा गैर मान्यता प्राप्त संस्था या किसी अन्य मध्यस्थ के जरिए बच्चा गोद लेना कानून सम्मत नहीं है।

बच्चा गोद लेने के लिए पात्रता
कोई भी भारतीय परिवार जो बालक को स्नेह, सुरक्षा तथा परवरिश दे सके, दत्तक ग्रहण कर सकता है। इसके लिए समाज में प्रतिष्ठित दो व्यक्तियों का प्रमाण-पत्र देना होगा कि दत्तक ग्रहिता जिम्मेदार माता-पिता बन सकते हैं तथा वे बच्चे को स्नेहपूर्ण, सुरक्षित, सुविधा संपन्न पारिवारिक संरक्षण प्रदान कर सकते हैं। ये व्यक्ति माता या पिता के रिश्तेदार नहीं होने चाहिए।

हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन धर्मावलंबी 'हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण पोष्ाण अघिनियम 1956' के अंतर्गत बच्चा गोद ले सकते हैं। अन्य धर्म के अनुयायी 'अभिभावक एवं संरक्षण अघिनियम' के अंतर्गत बच्चा गोद ले सकते हैं।

बच्चा गोद लेने वाले दंपती की संयुक्त आयु (दोनों की जोड़कर) 90 वष्ाü से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। माता और पिता के आयु के प्रमाणीकरण के लिए जन्म का प्रमाण-पत्र तथा शिक्षा प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने होंगे। माता-पिता का दांपत्य संबंध प्रमाणित करने के लिए विवाह का प्रमाण-पत्र पेश करने का निर्देश दिया जा सकता है।

माता या पिता किसी अकेले के गोद लेने की स्थिति में आयु 45 वष्ाü से अघिक नहीं होनी चाहिए।
माता-पिता और गोद लेने वाले बच्चे की उम्र में कम से कम 21 साल का अंतर होना चाहिए।

माता-पिता की आय का नियमित और स्थाई स्त्रोत होना चाहिए। इसके लिए उनके नियोक्ता द्वारा जारी प्रमाण-पत्र में माता-पिता का पद नाम, देय वेतन भत्ते आदि समस्त परिलाभ, और स्वरोजगाररत होने की स्थिति में व्यवसाय का पिछले तीन साल का आय-व्यय का विवरण (चार्टर्ड एकाउंटेट द्वारा प्रमाणित) प्रस्तुत करना होगा।

माता-पिता किसी गंभीर बीमारी टीबी. एड्स, हेपेटाइटिस-बी, एचआईवी आदि से पीडित नहीं है। इसका प्रमाण-पत्र किसी सरकारी सेवारत चिकित्सक से प्राप्त कर पेश करना होगा।

माता-पिता के विरूद्ध कोई आपराघिक मामला विचाराधीन नहीं है। इसके लिए संबंघित पुलिस थाना अघिकारी का जांच प्रमाण-पत्र पेश करना होगा।

माता-पिता दो चरित्र प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करेंगे। इनमें से एक समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति से तथा दूसरा जनप्रतिनिघि, तहसीलदार या जिला कलेक्टर से प्रमाणित होगा।

संबंघित राज्य का मूल निवास प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना होगा। दत्तक ग्रहिता माता-पिता के स्वयं के नवीनतम पोस्टकार्ड साइज फोटो तथा परिवार का फोटोग्राफ प्रस्तुत करना होगा। परिवार में यदि स्वयं के बच्चे हैं, तो उनकी सहमति भी प्रस्तुत करनी होगी।

13.7.11

दुख-दर्द और समस्याओं से मुक्ति के लिए दिल से प्रार्थना

दरहक़ीक़त इंसान ख़ुदा का बंदा है लेकिन वह अपने रब का हुक्म न मानकर अपने मन के मुताबिक़ जी रहा है और जीवन में हर मोड़ पर ठोकरें खा रहा है। उसे दुख से मुक्ति देने के लिए उसका मालिक उसे बार बार अपनी ओर पलटकर आने के लिए पुकारता है। ‘रब की ओर पलटने‘ को ही अरबी भाषा में ‘तौबा‘ कहते हैं। जो भी आदमी अपने रब की तरफ़ पलटकर उससे कुछ मांगता है तो वह दुआ उसका रब ज़रूर पूरी करता है। शबे बरात की रात भी उन ख़ास अवसरों में से एक है जब मालिक अपने बंदों पर ख़ास रहमत करता है, उनकी दुआएं पूरी करता है और उन्हें दुख-दर्द और समस्याओं से मुक्ति देता है। किसी भी मत का आदमी हो, यदि वह अपने हालात से परेशान है तो वह इस ख़ास अवसर पर अपने मालिक की तरफ़ पलटे और दिल से प्रार्थना करे, उसे तुरंत ही लाभ होगा।
इस अवसर पर ‘अन्जुम नईम‘ साहब का एक लेख भी पेश ए खि़दमत है  :

रहमतों के महीने रमजान से पहले मगफेरत का महीना शाबान आता है, जिसे रसूल अकरम ने गुनाहों को मिटाने वाला महीना करार दिया है। इस शाबान के महीने में एक रात ऐसी भी आती है, जिसमें अल्लाह अपने गुनहगार बन्दों की दुआओं को सुनता है और उन लोगों को जहन्नुम से निजात देता है। उस रात अल्लाह की रहमत जोश में होती है और वह पुकार-पुकार कर मगफेरत की चाहत रखने वालों को अपने हुजूर में तौबा करने की इजाजत देता है। और फिर उनकी दुआएं कुबूल करता है। फजीलत और बरकत वाली यह रात शबे बरात मुस्लिम कैलेंडर के आठवें महीने शाबान की चौदहवीं रात (तारीख) को मगरिब के वक्त शुरू होकर सुबह सूरज निकले तक जारी रहती है।

शंकराचार्य सोने के सिंहासन पर बैठते हैं

ब्लॉग की ख़बरें: संस्कृत की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार कौन ? Sanskrit Bhasha:

इन लोगों के पास संस्कृत दैनिक को दान देने के लिए तो पैसे निकलते नहीं हैं लेकिन

स्वामी अग्निवेश को क़त्ल करने के लिए 10 लाख रूपया देने का ऐलान कर दिया।

एक तरफ़ तो इन धर्म स्थलों के पास इतने ख़ज़ाने हैं और दूसरी तरफ़ हाल यह है कि

भाजपा विधायक आशा सिन्हा की गाड़ी से 9 हत्यारोपी गिरफ्तार 

और

केरल के मंदिर से 1 लाख करोड़ से ज़्यादा का ख़ज़ाना मिला है
और दीगर मंदिरों में लाखों करोड़ के ख़ज़ाने हैं। शंकराचार्य सोने के सिंहासन पर बैठते हैं और पूरी दुनिया में वह अकेले आदमी हैं जिसके पास सोने का सिंहासन है। जब वह मरते हैं तो उन्हें स्नान भी सोने के तख्ते पर दिया जाता है।

3.7.11

हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड : एक नया अध्याय


हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड : एक नया अध्याय



आह... !

कितना हसीं समां है... 
चारो ओर हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के ही चर्चे हो रहे हैं...

कल तक जो बस एक ख्वाब था,
आज देखो आसमान में चमक रहा है...
हमने तो बस एक भीनी खुशबु की चाहत की थी,
देखो आज सारा जहां महक रहा है...

      आज से करीब दो महीने पहले, डॉ. अनवर ज़माल खान जी ने हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड नामक एक किताब प्रकाशित करने का वादा किया था.  और देखो आज हमारे पास न केवल हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड की रूपरेखा है बल्कि इस गाइड के लिए आवश्यक लेख भी हैं... और तो और सारा हिंदी ब्लॉग्गिंग जगत भी हमारे साथ है. क्योंकि आज हमारा मीडिया तो विज्ञापनकर्ताओं और राजनेताओं के पैरों की जूती बनता जा रहा है और ऐसे समय ब्लॉग्गिंग वो जरिया बनता जा रहा है जिसके तहत हम अपने दिल की बात सारी दुनिया को बता सकते हैं...
      और आज हर इंसान के मन में हजारों स्वप्न, हजारों ख्वाहिशें और हजारों बातें दबी हुई हैं पर आज की इक्कीसवीं सदी का इन्सान पहले की तरह अपने सपनो, ख्वाहिशों या बातों, इरादों को दबाना नहीं चाहता. वह भी चाहता है की अपने दिल की बात किसी से कही जाए, किसी को कुछ बताया जाए, ऐसा कुछ जो समाज का या देश का नजरिया ही बदल दे, पर सही मार्गदर्शन की कमी के कारण इंसान का आत्मविश्वास डगमगा जाता है और वो वही करता है जो उससे करवाया जाता है या फिर उसके हालात उसे करने पे मजबूर कर देते हैं...
ऐसे में एक आम इंसान क्या करता है ?
       वो या तो चुपचाप नज़ारा देखता है या मन ही मन खुद को या व्यवस्था को कोसता है या फिर अगर थोड़ी सी कल्पना शक्ति होती है तो कागजों पे या डायरी में लिख डालता है... पर वो डायरी या वो कागज पे लिखे शब्द सिर्फ उस तक ही सीमित होते हैं, समाज तक पहुँच ही नहीं पाते... 
      ऐसे में इन्टरनेट एक ऐसा माध्यम बन के आगे आया है कि इसके जरिये हम सारे विश्व में क्रांति ला सकते हैं... तो फिर क्यों न इसे अपनी बात कहने का एक ऐसा माध्यम बनाया जाए जिसके तहत हम अपनी बात अणि भाषा व अपने लहजे में कह सकें... 

       ब्लॉग्गिंग भी आज ऐसा ही माध्यम है जिसके बारे जितनी तारीफ की जाये कम लगती हैं... पर नए लोग जिन्हें इन्टरनेट सिर्फ ऑनलाइन गेम खेलने, यूट्यूब पे विडियो देखने या नए सोफ्टवेयर डाउनलोड करने इत्यादि का माध्यम ही लगता है उन्हें ब्लॉग्गिंग की दुनिया में लाने के लिए ब्लॉग्गिंग सिखानी भी पड़ेगी. अगर लगन है तो इंसान बिना गुरु के भी सीख लेता है और थोड़े से आत्मविश्वास की कमी से इंसान अपनी लगन से भी हाथ धो बैठता है. ऐसे में अगर भारत में हिंदी में ब्लॉग्गिंग करने की कोई सोचता है तो उसके पास बहुत सारी कठिनाईयां भी झेलनी पड़ती हैं...

बस इन्ही फायदे व कठिनाइयों को मद्देनज़र रखते हुए, पहली बार एक पहल की जा रही है, एक सम्पूर्ण मार्गदर्शिका बनाने की जो हिंदी में हमारे भारत के करोड़ों हिंदी भाषी लोगों को ब्लॉग्गिंग की दुनिया का रास्ता दिखायेगी... इसी पहल का नाम है - हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड.

     मैं महेश बारमाटे "माही", आज से हर पल आपको हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड की सारी जानकारी देने की एक नयी श्रंखला अपने ब्लॉग "कुछ दिल से..." में प्रस्तुत करने जा रहा हूँ... 

फिलहाल हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के बारे में ज्यादा जानकारी जानने के लिए आप निम्न लिंक पे जा के हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के हर पल से जुड़ सकते हैं...


अगर आप हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के गूगल ग्रुप से जुड़ना चाहते हैं तो अपना ईमेल हमे कमेन्ट करें या मुझे ईमेल करें - mbarmate@gmail.com पर ...

इस पोस्ट के अगले संस्करण में पढ़ें - हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड का नए गूगल ग्रुपलिंक्डइन.कॉम पे हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड का ग्रुप, तथा हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड से सम्बंधित कुछ रोचक जानकारियाँ...


- महेश बारमाटे "माही"

राहुल की ताजपोशी पर विवाद : कितना सही, कितना गलत?

नेहरू-गांधी खानदान के युवराज राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद पर ताजपोशी की मांग करके कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने एक बार फिर राजनीतिकों को विवाद और चर्चा करने का मौका दे दिया है। एक ओर जहां कांग्रेस के अंदरखाने में इस पर गंभीर चिंतन हो रहा है, वहीं विपक्षी दलों ने इसे परिवारवाद की संज्ञा देने साथ-साथ मजाक उड़ाना शुरू कर दिया है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर तो बाकायदा सुनियोजित तरीके से एक तबका इस विषय पर हंसी-ठिठोली कर रहा है।
आइये, जरा गौर करें दिग्विजय सिंह के बयान पर। उनका कहना है कि राहुल अब 40 वर्ष के हो गये हैं और उनमें प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण और अनुभव आ गये हैं। सवाल ये उठता है कि क्या 40 साल का हो जाना कोई पैमाना है? क्या इतनी उम्र हो जाने मात्र से कोई प्रधानमंत्री पद के योग्य हो जाता है? जाहिर सी बात है उम्र कोई पैमाना नहीं है और सीधे-सीधे बहुमत में आई पार्टी अथवा गठबंधन को यह तय करना होता है कि वह किसे प्रधानमंत्री बनाए। तो फिर दिग्विजय सिंह ने ऐसा बयान क्यों दिया? ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसा उन्होंने इस कारण कहा है कि पूर्व में जब उनका नाम उछाला गया था तो विपक्ष ने उन्हें बच्चा कह कर खिल्ली उड़ाई थी। तब अनुभव की कमी भी एक ठोस तर्क था। लेकिन अब जब कि वे संगठन में कुछ अरसे से काम कर रहे हैं, विपक्ष को यह कहने का मौका नहीं मिलेगा कि उन्हें अनुभव नहीं है। उम्र के लिहाज से अब वे उन्हें बच्चा भी नहीं कर पाएंगे। और सबसे बड़ा ये कि जिस प्रकार विपक्ष ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठा कर उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचने के बाद भी पीछे खींच लिया था, वैसा राहुल के साथ नहीं कर पाएंगे। ऐसे में हाल ही पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने एक नया पैंतरा खेला है। उन्होंने अपने ब्लॉग पर लिखा है कि कांग्रेस एक परिवार की जागीर हो गई है। ऐसा करके वे कांग्रेस में विरोध की सुगबुगाहट शुरू करना चाहते हैं। ऐसे प्रयास पूर्व में भी हो चुके हैं।
तार्किक रूप से आडवाणी की बात सौ फीसदी सही है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में इस प्रकार परिवारवाद कायम रहना निस्संदेह शर्मनाक है। अकेले प्रधानमंत्री पर ही क्यों, यह बात केन्द्रीय मंत्रियों व  मुख्यमंत्रियों पर भी लागू होती है। राजनीति में परिवारवाद पर पूर्व में भी खूब बहस होती रही है। मगर सच्चाई ये है कि कोई भी दल इससे अछूता नहीं है। खुद भारतीय जनता पार्टी भी नहीं। कांग्रेस तो खड़ी ही परिवारवाद पर है। यदि बीच में किसी और को भी मौका दिया गया तो उस पर नियंत्रण इसी परिवार का ही रहा है। जब पी. वी. नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने और सोनिया गांधी राजनीति में न आने की जिद करके बैठी थीं, तब भी बड़े फैसले वहीं से होते थे। मनमोहन सिंह को तो खुले आम कठपुतली ही करार दे दिया गया है। एक ओर यह कहा जाता है कि वे सर्वाधिक ईमानदार हैं तो दूसरी ओर सोनिया के इशारे पर काम करने के कारण सबसे कमजोर भी कहा जाता है। मगर तस्वीर का दूसरा रुख ये है कि उन्हें कमजोर और आडवाणी को लोह पुरुष बता कर भी भाजपा मनमोहन सिंह के नेतृत्व में लड़े गए चुनाव में उन्हें खारिज नहीं करवा पाई थी। तब भाजपा की  बोलती बंद हो गई थी। अब जब कि मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में भ्रष्टाचार व महंगाई के मामले उफान पर हैं, उन्हें नकारा माना जा रहा है। इसी मौके का फायदा उठा कर दिग्विजय सिंह ने राहुल को प्रधानमंत्री के योग्य बताने का राग अलाप दिया है। समझा जाता है कि कांग्रेस हाईकमान भी यह समझता है कि दूसरी बार उनके नेतृत्व में चुनावी वैतरणी पार करना नितांत असंभव है, इस कारण पार्टी में गंभीर चिंतन चल रहा है कि आगामी चुनाव से पहले पाल कैसे बांधी जाए। यूं तो मनमोहन सिंह के अतिरिक्त कुछ और भी योग्य नेता हैं, जो प्रधानमंत्री पद के लायक हैं, मगर चूंकि डोर सोनिया गांधी के हाथ ही रहनी है तो उसकी भी हालत वही हो जाने वाली है, जो मनमोहन सिंह की हुई है। ऐसे में पार्टी के सामने आखिरी विकल्प यही बचता है कि राहुल को कमान सौंपी जाए। इसमें कोई दोराय नहीं कि परिवारवाद पर टिकी कांगे्रेस में अंतत: राहुल की ही ताजपोशी तय है, मगर पार्टी यह आकलन कर रही है कि इसका उचित अवसर अभी आया है या नहीं। इतना भी तय है कि आगामी चुनाव से पहले ही राहुल को कमान सौंप देना चाहती है, ताकि उनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाए। मगर अहम सवाल ये भी है कि क्या स्वयं राहुल अपने आपको इसके तैयार मानते हैं। देश में प्रधानमंत्री पद के अन्य उम्मीदवारों से राहुल की तुलना करें तो राहुल भले ही कांग्रेस जैसी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी का नेता होने और गांधी परिवार से ताल्लुक रखने के कारण सब पर भारी पड़ते हैं, लेकिन यदि अनुभव और वरिष्ठता की बात की जाए तो वह पिछड़ जाते हैं। यदि उन्हें अपनी समझ-बूझ जाहिर करनी है तो खुल कर सामने आना होगा। ताजा स्थिति तो ये है कि देश के ज्वलंत मुद्दों पर तो उन्होंने चुप्पी ही साध रखी है। अन्ना हजारे का लोकपाल विधेयक के लिए आंदोलन हो या फिर बाबा रामदेव का कालेधन के खिलाफ आंदोलन, इन दोनों पर राहुल खामोश रहे। इसके बावजूद यह पक्का है कि यदि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने चमत्कारिक परिणाम दिखाये तो फिर प्रधानमंत्री पद राहुल के लिए ज्यादा दूर नहीं रहेगा। रहा मौलिक सवाल परिवारवाद का तो यह आम मतदाता पर छोड़ देना चाहिए। अगर राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव लड़ती है तो जाहिर है कि विपक्ष परिवारवाद के मुद्दे को दमदार ढंग से उठाएगा। तब ही तय होगा कि लोकतंत्र में सैद्धांतिक रूप से गतल माने जाने वाले परिवारवाद की धरातल पर क्या स्थिति है।
-तेजवानी गिरधर, अजमेर

क्या इन टोटको से भर्ष्टाचार खत्म हो सकता है ? आप देखिए कि अन्ना कैसे-कैसे बयान दे रहे हैं? शरद पवार भ्रष्ट हैं। भ्रष्टाचार पर बनी जीओएम (मंत्रिसमूह) में फला-फलां और फलां मंत्री हैं। इसलिए इस समिति का कोई भविष्य नहीं है। पवार को तो मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देना चाहिए। पवार का बचाव करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर पवार के मंत्रिमंडल से बाहर हो जाने से भ्रष्टाचार