इज्जत के नाम पर बहनों और बेटियों को मौत के घाट उतार रहे इज्जतदार लोगों का क्या किया जाए, यह आज के हिंदुस्तान का सबसे बड़ा सोशल इशू बन गया है।
क्या इसका जवाब हमारे नुमाइंदों के पास है, जो कोई भी कानून बना सकते हैं? क्या अदालतों के पास ऐसी पावर है कि हथौडे़ की एक चोट से समाज का दिमाग ठीक कर दें? क्या आपके या हमारे पास कोई जवाब है, जो इस दर्दनाक सिलसिले को यहीं रोक दे?
दिलचस्प बात यह है कि इशू जितना बड़ा होता है, उतने उत्साह और उतनी आसानी से उसके जवाब पेश किए जाने लगते हैं। लिहाजा ऑनर किलिंग पर भी सबके पास जवाब तैयार हैं। हमारे लॉ मिनिस्टर वादा कर रहे हैं कि जल्द ही एक बेहद सख्त कानून बनाया जाएगा, जो हत्यारों के होश उड़ा देगा।
अदालतों ने कानून के रखवालों को फटकारने में लफ्जों की कोई कमी नहीं होने दी है। उनका रुख अल्टिमेटम जैसा है, जिसे माने जाते ही हालात सुधर जाएंगे। आप-हम कह रहे हैं कि गुनाहगारों को सरेआम फांसी दे दी जानी चाहिए। या फिर बहुत से लोग यह भी कह रहे होंगे कि लड़कियां अपना चाल-चलन सुधार लें तो ऐसी नौबत ही नहीं आएगी।
क्या हम उम्मीद करें कि इनमें से कोई बात असर कर जाएगी और इक्कीसवीं सदी के भारत को इस नई महामारी से उबारा जा सकेगा? यही उम्मीद वे तमाम जोड़े कर रहे हैं, जिनकी फरियादों से देश भर की अदालतों या पुलिस थानों की फाइलें मोटी होती जा रही हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। इस देश में इतने जोड़ों ने अपनों से हिफाजत की इतनी गुजारिश पहले कभी नहीं की।
तो हमारी स्ट्रैटिजी क्या है? एक कानून जल्द ही आप बनता देखेंगे, जिसमें ऑनर किलिंग को एक अलग जुर्म का दर्जा मिल जाएगा, ऐसा जुर्म जिसके साथ कोई मुरव्वत नहीं होगी, जिससे दहेज हत्या की तरह आरोपी को खुद बचना होगा। यह कानून जब तक अपना काम करे, अदालतें पूरी मशीनरी को अलर्ट कर चुकी होंगी। खतरे में पड़े हर जोड़े के सिर पर कानून का हाथ होगा, बुरी नजरें उस तक पहुंच भी नहीं पाएंगी।
अगर आपका सामना ऑनर किलिंग से हुआ हो, या फिर एलएसडी में काटे जाते प्रेमियों की चीखें आपको अब भी तकलीफ दे रही हों, तो ये बातें राहत देने वाली पॉजिटिव न्यूज का काम कर सकती हैं। लेकिन क्या ऑनर किलिंग का वायरस ऐसी वैक्सीन से ठंडा हो जाएगा? कानून भी उसी पर काम करता है, जो कानून को मानता हो। जो लोग यह कहते सुनाई दें कि उन्हें अपनी बहन-बेटियों के कत्ल का कोई अफसोस नहीं है, क्योंकि समाज की मर्यादा सबसे बड़ी चीज है और कोई उन्हें नीची निगाह से देखे, यह मंजूर नहीं किया जा सकता, तो आपका कानून क्या कर लेगा? कुछ लोग कानून तोड़ बैठते हैं और कुछ का पेशा ही कानून तोड़ना हो जाता है। कानून सिर्फ पहली कतार पर लागू होता है।
अब अगर कानून से लोगों की सोच नहीं बदली जा सकती, तो कैसे बदली जा सकती है? सामाजिक संस्कारों से, तालीम से, मजहब से और बड़े लोगों की मिसालों से। दरअसल समाज के कायदे इन्हीं से बनते हैं और कानून बाद में इन्हें ठोस शक्ल देता है या कुछ सुधार लाता है। ऑनर किलिंग वाले समाज में यह साफ है कि सामाजिक मान्यताएं किसी पुराने वक्त पर अटकी रह गई हैं।
उनमें सुधार नहीं हुआ है। यानी बदलाव की सामाजिक ताकतों ने वहां उपना करना बंद कर दिया है। इस रुकी हुई घड़ी को कौन ठीक करेगा? क्या वे संत और गुरु, जो इधर काफी पॉपुलर होते जा रहे हैं? क्या वे सुधार की कोई मुहिम चलाने की तकलीफ करेंगे? क्या उसी समाज के कुछ समझदार लोग बदलाव की जिम्मेदारी लेना चाहेंगे? क्या ऐसी शख्सियतें मिलेंगी, जिन्हें लोग सुनना पसंद करेंगे? आज के जमाने में, जब कोई कुछ सीखने-समझने को तैयार नहीं होता, क्या सुधार का ट्रडिशनल प्रोसेस अपना काम करेगा?
सच तो यह है कि यह सब पढ़कर आप भी बोर ही हो रहे होंगे। धीमे सुस्त तरीके अब बेकार हो चुके हैं। यही ऑनर किलिंग का पेच है। दिमाग कहीं अटक गए हैं, क्योंकि उन्हें खुलने की कोई जरूरत नहीं है। तरक्की का सबसे बड़ा पैमाना पैसा तो बिना खुद को बदले हासिल किया जा सकता है। हम अपनी दुनिया में मस्त रह सकते हैं और वह भी अपनी शर्तों पर। मॉडर्न लगने के लिए मॉडर्न सोच जरूरी है, यह तो कहीं लिखा नहीं है, बल्कि यह हो सकता है कि मॉडर्न-शॉडर्न के नाम पर हो रही कांय-कांय ही हमें अपनी ट्रडिशन का पहले से ज्यादा मुरीद बना दे।
एक कशमकश, एक जंग हिंदुस्तान के दिल पर कब्जे के लिए चल रही है। जब भी नया और पुराना भारत करीब आते हैं, रगड़ खाते हैं। मॉडर्निटी पुराने भारत को डराती है, बदले में उसे परंपरा का हमला झेलना पड़ता है। यह हमला अब खून बनकर शहरों की गलियों में भी बहने लगा है। हम चाह सकते हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए, लेकिन ऐसा होना ही था। यह जंग कभी न कभी होनी थी।
मैं मानता हूं, इस जंग में किसी भी कानून, किसी अदालत या मुहिम को फैसला करने का मौका नहीं मिलेगा। फैसला वही करेंगे, जो निशाने पर हैं। और उनकी तादाद बढ़ने वाली है, क्योंकि वे हार मानने के मूड में नहीं हैं। वे क्यों मानेंगे, जब दुनिया की सबसे बड़ी ताकत उनके साथ है - मॉडर्निटी। नए को पुराने से हार माननी पड़ी है, ऐसा आज तक तो कभी नहीं हुआ।
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