31.3.12

अपने ही दस बच्चों की मां को दुल्हन बनाकर लाया

बारात लेकर गया और अपने ही दस बच्चों की मां को दुल्हन बनाकर लाया रामौतार Dulha Dulhan 

by



  • DR. ANWER JAMAL




  • हरदोई/एजेंसी ! बेटी के हाथ पीले करने की खातिर किसी बाप को अगर पहले अपने हाथ पीले करने पडे़ तो यह सुनने में ही अजीब लगेगा...
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    शरीयत, तरीक़त, मारिफ़त, हक़ीक़त Sufi & Tasawwuf

     


    पीर उस सालिक को साधना के मार्ग पर बढ़ने का रास्ता दिखाते हैं। सूफ़ी गुरुओं ने साधकों को साधना के लिए ये चार सोपान निर्धारित किए हैं –

    टेलीपैथी सिखाने वाला हिन्दी ब्लॉग

     


    टेलीपैथी सिखाने वाला एक नया ब्लॉग अब हिन्दी में Easy Telepathy RELAXATION EXERCISE BY WILLIAM HEWITT

    30.3.12

    जहां तुम हो, वहीं तुम्हारी रूह है और तुम्हारा रब भी वहीं है

    सच्चे बादशाह से बातें कीजिए God hears.

    रूह में रब का नाम नक्श है।
    रूह सबकी एक ही है।
    जो भी पैदा होता है, उसी एक रूह का नूर लेकर पैदा होता है।
    रूह क्या है ?
    रब की सिफ़ाते कामिला का अक्स (सुंदर गुणों का प्रतिबिंब) है।
    सिफ़ाते कामिला को ज़ाहिर करने वाले बहुत से नाम हैं।
    रब का हरेक नाम रूह को ताक़त देता है। रब का नाम रूहानी ताक़त का ख़ज़ाना है।
    रब का नाम दिल का सुकून है।
    खड़े बैठे या लेटे कैसे भी उसका नाम लो, दिल को सुकून मिलता है।
    जहां तुम हो, वहीं तुम्हारी रूह है और तुम्हारा रब भी वहीं है।
    रब की मौजूदगी को महसूस कीजिए।
    अपने अहसास को थोड़ा थोड़ा करके गहरा करते जाइये।
    अपने रब से बातें कीजिए, उसके साथ हंसिए बोलिए।
    उसके साथ अपने सुख दुख शेयर कीजिए, जैसे कि आप अपने मां बाप और दोस्त से शेयर करते हैं।
    आप जो भी कहते हैं, वह उसे सुनता है।
    यक़ीन कीजिए, आपको उससे बातें करके अच्छा लगेगा।
    वह आपकी बातों का आपको जवाब भी देगा।
    वह आपकी बातों का जवाब बहुत तरह से देता है, आज भी दे रहा है लेकिन आपका ध्यान उसकी तरफ़ नहीं है इसलिए आप यह जान ही नहीं पाते कि उसने आपकी किस बात पर किस तरह रिएक्ट किया है ?
    आप जो कुछ सुनते हैं, उसे रब से जोड़कर सुनिए, उनमें आपको जवाब मिलेगा।
    जो कुछ आप देखते हैं, उसे रब से जोड़कर देखिए, वे चीज़ें आपको रब की तरफ़ से संकेत देंगी।
    जिन धार्मिक ग्रंथों को आप पढ़ते हैं, उन पर ध्यान दीजिए, आपको वहां अपनी बात का जवाब मिलेगा।
    जैसे जैसे आपकी प्रैक्टिस बढ़ती जाएगी, आप ख़ुदा के इशारों को बेहतर तरीक़े से समझने लगेंगे।
    रब से बात करेंगे तो आपको वह हमेशा अपने साथ ही महसूस होगा।
    इससे आपके टेंशन्स दूर होंगे, आपको सुकून मिलेगा।
    आप जिस रब से बात कर रहे हैं, वह इस कायनात का बादशाह है और बादशाह से बात करना अपने आप में ही एक गौरव की बात है।
    कायनात का बादशाह आपको हमेशा अवेलेबल है।
    बादशाह अपना हो तो फिर चिंता किस बात की है ?
    बस हम बादशाह के हो जाएं।

    29.3.12

    भारत की स्वतंत्रता के बाद राजस्थान का एकीकरण (३० मार्च राजस्थान दिवस है )

    राजस्थान के इतिहास की समय रेखा है।

    ५००० ई. पू.: कालीवंग सभ्यता
    ३५०० ई. पू.;आहड़ सभ्यता
    १००० ई.पू.-६०० ई. पू. आर्य सभ्यता
    ३०० ई. पू.-६०० ई.जनपद युग

  • ३५० - ६०० गुप्त वंश का हस्तक्षेप


  • ६वीं शताब्दी व ७वीं शताब्दी हूणों के आक्रमण, हूणों व गुर्जरों द्वारा राज्यों की स्थापना - हर्षवर्धन का हस्तक्षेप


  • ७२८ बाप्पा रावल द्वारा चितौड़ में मेवाड़ राज्य की स्थापना


  • ९६७ कछवाहा वंश घोलाराय द्वारा आमेर राज्य की स्थापना


  • १०१८ महमूद गजनवी द्वारा प्रतिहार राज्य पर आक्रमण तथा विजय


  • १०३१ दिलवाड़ा में विंमल शाह द्वारा आदिनाथ मंदिर का निर्माण


  • १११३ अजयराज द्वारा अजमेर (अजयमेरु) की स्थापना


  • ११३७ कछवाहा वंश के दुलहराय द्वारा ढूँढ़ार राज्य की स्थापना


  • ११५६ महारावल जैसलसिंह द्वारा जैसलमेर की स्थापना


  • ११९१ मुहम्मद गोरी व पृथ्वीराज चौहान के मध्य तराइन का प्रथम युद्ध - मुहम्मद गोरी की पराजय


  • ११९२ मुहम्मद गोरी व पृथ्वीराज चौहान के मध्य तराइन का द्वितीय युद्ध -- पृथ्वीराज की पराजय


  • ११९५ मुहम्मद गौरी द्वारा बयाना पर आक्रमण


  • १२१३ मेवाड़ के सिंहासन पर जैत्रसिहं का बैठना


  • १२३० दिलवाड़ में तेजपाल व वस्तुपाल द्वारा नेमिनाथ मंदिर का निर्माण


  • १२३४ रावल जैत्रसिंह द्वारा इल्तुतमिश पर विजय


  • १२३७ रावल जैत्रसिंह द्वारा सुल्तान बलवन पर विजय


  • १२४२ बूँदी राज्य की हाड़ा राज देशराज द्वारा स्थापना


  • १२९० हम्मीर द्वारा जलालुद्दीन का आक्रमण विफल करना


  • १३०१ हम्मीर द्वारा अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण को विफल करना, षड़यन्त्र द्वारा पराजित रणथम्मौर के किले पर ११ जुलाई को तुर्की का आधिकार स्थापित


  • १३०२ रत्नसिंह गुहिलों के सिहासन पर आरुढ़


  • १३०३ अलाउद्दीन खिलजी द्वारा राणा रत्नसिंह पराजित, पद्मिनी का जौहर, चितौड़ पर खिलजी का अधिकार, चितौड़ का नाम बदलकर खिज्राबाद


  • १३०८ कान्हडदेव चौहान खिलजी से पराजित, जालौर का खिलजी पर अधिकार


  • १३२६ राणा हमीर द्वारा चितौड़ पर पुन: अधिकार


  • १४३३ कुम्भा मेवाड़ के सिंहासन पर आरुढ़


  • १४४० महाराणा कुम्भा द्वारा चितौड़ में विजय स्तम्भ का निर्माण


  • १४५६ महाराणा कुम्मा द्वारा मालवा के शासन महमूद खिलजी को परास्त करना, कुम्भा का शम्स खाँ को हराकर नागौर पर कब्जा


  • १४५७ गुजरात व मालवा का मेवाड़ के विरुद्ध संयुक्त अभियान करना


  • १४५९ राव जोधा द्वारा जोधपुर की स्थापना


  • १४६५ राव बीका द्वारा बीकानेर राज्य की स्थापना


  • १४८८ बीकानेर नगर का निर्माण पूर्ण


  • १५०९ राणा संग्रामसिंह मेवाड़ के शासक बने


  • १५१८ महाराणा जगमल सिंह द्वारा बाँसवाड़ राज्य की स्थापना


  • १५२७ राणा संग्राम सिंह का बयाना पर अधिकार तथा बाबर के हाथों पराजय


  • १५२८ राणा सांगा का निधन


  • १५३२ राजा मालदेव द्वारा अपने पिता राव गंगा की हत्या पर मारवाड़ की सत्ता पर कब्जा


  • १५३८ मालदेव का सिवाना व जालौर पर अधिपत्य


  • १५४१ राजा मालदेव द्वारा हुमायू को निमंत्रण देना


  • १५४२ राजा मालदेव का बीकानेर नरेश जैत्रसिंह को परास्त करना, जैत्रसिंह की मृत्यु, हुमायूँ का मारवाड़ सीमा मे प्रवेश


  • १५४४ राजा मालदेव व शेरशह के मध्य जैतारण (सामेल) का युद्ध, मालदेव की पराजय


  • १५४७ भारमल आमेर का शासक बना


  • १५५९ राजा उदयसिंह द्वारा उदयपुर नगर की स्थापना


  • १५६२ राजा मालदेव का निधन, मालदेव का तृतीय पुत्र राव चन्द्रसेन मारवाड़ के सिंहासन पर आरुढ


  • १५६२ आमेर के राजा भारमल ने अपनी पुत्री का विवाह सांभर से सम्पन्न कराया


  • १५६४ राव चन्द्रसेन की पराजय, जोधपुर मुगलों के अधीन


  • १५६९ रणथम्भौर नरेश सुर्जन हाडा की राजा मानसिंह से सन्धि, हाड़ पराजित


  • १५७२ राणा उदयसिंह की मृत्यु, महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक


  • १५७२ अकबर द्वारा रामसिंह को जोधपुर का शासक नियुक्त


  • १५७३ राजा मानसिंह की महाराणा प्रताप से मुलाकात


  • १५७४ बीकानेर नरेश कल्याणमल का निधन, रायसिंह का सिंहासनरुढ़ होना।


  • १५७६ हल्दीघाटी का युद्ध, महाराणा प्रताप की सेना मुगल सेना से पराजित


  • १५७८ मुगल सेना द्वारा कुम्भलगढ़ पर अधिकार, प्रताप का छप्पन की पहाड़ियों में प्रवेश। चावड़ को राजधानी बनाना


  • १५८० अकबर के दरबार के नवरत्नों में एक अब्दुल रहीम खानखाना को अकबर द्वारा राजस्थान का सूबेदार नियुक्त करना।




  • १५८९ आमेर के राजा भारमल की मृत्यु, मानसिंह को सिंहासन मिला


  • १५९६ राजा किशन सिंह द्वारा किशनगढ़ (अजमेर) की नीवं


  • १५९७ महाराणा प्रताप की चांवड में मृत्यु


  • १६०५ सम्राट अकबर ने राजा मानसिंह को ७००० मनसव प्रदान किये।


  • १६१४ राजा मानसिंह की दक्षिण भारत में मृत्यु


  • १६१५ राणा अमरसिंह द्वारा मुगलों से सन्धि


  • १६२१ राजा मिर्जा जयसिंह आमेर का शासक नियुक्त


  • १६२५ माधोसिंह द्वारा कोटा राज्य की स्थापना


  • १६६० राजा राजसिंह द्वारा राजसमन्द का निर्माण प्रारम्भ


  • १६६७ जयसिंह की दक्षिण भारत में मृत्यु


  • १६९१ राजा राजसिंह द्वारा नाथद्वारा मंदिर का निर्माण


  • १७२७ सवाई जयसिंह द्वारा जयपुर नगर का स्थापना


  • १७३३ जयपुर नरेश सवाई जयसिंह का मराठों से पराजित होना


  • १७७१ कछवाहा वंश के राव प्रतापसिंह ने अलवा राज्य की नींव डाली


  • १८१८ झाला वंशजों द्वारा झालावाड़ राज्य की स्थापना


  • १८१८ मेवाड़ के राजपूतों द्वारा ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि


  • १८३८ माधव सिंह द्वारा झालावाड़ की स्थापना
    २८ मई को नसीरा बाद में सैनिक विद्रोह
    राजकीय महाविद्यालय, अजमेर के छात्रों द्वारा कांग्रेस कमिटी का गठन
    लार्ड कर्जन ने एडवर्ड - सप्तम के राज्यारोहण समारोह में उदयपुर के महाराणा फतेहसिंह को आमंत्रण और महाराणा द्वारा दिल्ली प्रस्थान
    बिजोलिया किसान आन्दोलन
    भील आन्दोलन प्रारम्भ
    मेवाड़, अलवर, भरतपुर, प्रजामंडल गठित, सुभाषचन्द्र बोस की जोधपुर यात्रा
    ३१ दिसम्बर को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के अन्तर्गत राजपूताना प्रान्तीय सभा का गठन
    २७ जून को रियासती विभाग की स्थापना
    शाहपुरा में गोकुल लाल असावा के नेतृत्व में लोकप्रिय सरकार बनी जो १९४८ में संयुक्त राजस्थान संघ में विलीन हो गई

  • 27.3.12

    भारत की स्वतंत्रता के बाद राजस्थान का एकीकरण (३० मार्च राजस्थान दिवस है )


    भारत की स्वतंत्रता के बाद राजस्थान का एकीकरण

    राजस्थान भारत का एक महत्वपूर्ण प्रांत है। यह 30 मार्च 1949 को भारत का एक ऐसा प्रांत बना, जिसमें तत्कालीन राजपूताना की ताकतवर रियासतें विलीन हुईं । भरतपुर के जाट शासक ने भी अपनी रियासत के विलय राजस्थान में किया था। राजस्थान शब्द का अर्थ है: 'राजाओं का स्थान' क्योंकि यहां गुर्जर, राजपूत, मौर्य, जाट आदि ने पहले राज किया था। भारत के संवैधानिक-इतिहास में राजस्थान का निर्माण एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी । ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आजाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता-हस्तांतरण की कार्यवाही शुरू की, तभी लग गया था कि आजाद भारत का राजस्थान प्रांत बनना और राजपूताना के तत्कालीन हिस्से का भारत में विलय एक दूभर कार्य साबित हो सकता है। आजादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़ सी मच गयी थी, उस समय वर्तमान राजस्थान की भौगालिक स्थिति के नजरिये से देखें तो राजपूताना के इस भूभाग में कुल बाईस देशी रियासतें थी। इनमें एक रियासत अजमेर मेरवाडा प्रांत को छोड़ कर शेष देशी रियासतों पर देशी राजा महाराजाओं का ही राज था। अजमेर-मेरवाडा प्रांत पर ब्रिटिश शासकों का कब्जा था; इस कारण यह तो सीघे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती, मगर शेष इक्कीस रियासतों का विलय होना यानि एकीकरण कर 'राजस्थान' नामक प्रांत बनाया जाना था। सत्ता की होड़ के चलते यह बडा ही दूभर लग रहा था क्योंकि इन देशी रियासतों के शासक अपनी रियासतों के स्वतंत्र भारत में विलय को दूसरी प्राथमिकता के रूप में देख रहे थे। उनकी मांग थी कि वे सालों से खुद अपने राज्यों का शासन चलाते आ रहे हैं, उन्हें इसका दीर्घकालीन अनुभव है, इस कारण उनकी रियासत को 'स्वतंत्र राज्य' का दर्जा दे दिया जाए । करीब एक दशक की ऊहापोह के बीच 18 मार्च 1948 को शुरू हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरणों में एक नवंबर 1956 को पूरी हुई । इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी. पी. मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी । इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान के वर्तमान स्वरुप का निर्माण हो सका।
    पहला चरण- 18 मार्च 1948
    सबसे पहले अलवर , भरतपुर, धौलपुर, व करौली नामक देशी रियासतों का विलय कर तत्कालीन भारत सरकार ने फरवरी 1948 मे अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर 'मत्स्य यूनियन' के नाम से पहला संघ बनाया। यह राजस्थान के निर्माण की दिशा में पहला कदम था। इनमें अलवर व भरतपुर पर आरोप था कि उनके शासक राष्टृविरोधी गतिविधियों में लिप्त थे। इस कारण सबसे पहले उनके राज करने के अधिकार छीन लिए गए व उनकी रियासत का कामकाज देखने के लिए प्रशासक नियुक्त कर दिया गया। इसी की वजह से राजस्थान के एकीकरण की दिशा में पहला संघ बन पाया । यदि प्रशासक न होते और राजकाज का काम पहले की तरह राजा ही देखते तो इनका विलय असंभव था क्योंकि इन राज्यों के राजा विलय का विरोध कर रहे थे। 18 मार्च 1948 को मत्स्य संघ का उद़घाटन हुआ और धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयसिंह को इसका राजप्रमुख मनाया गया। इसकी राजधानी अलवर रखी गयी थी। मत्स्य संघ नामक इस नए राज्य का क्षेत्रफल करीब तीस हजार किलोमीटर था, जनसंख्या लगभग 19 लाख और सालाना-आय एक करोड 83 लाख रूपए थी। जब मत्स्य संघ बनाया गया तभी विलय-पत्र में लिख दिया गया कि बाद में इस संघ का 'राजस्थान' में विलय कर दिया जाएगा।
    दूसरा चरण 25 मार्च 1948
    राजस्थान के एकीकरण का दूसरा चरण पच्चीस मार्च 1948 को स्वतंत्र देशी रियासतों कोटा, बूंदी, झालावाड, टौंक, डूंगरपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ , किशनगढ और शाहपुरा को मिलाकर बने राजस्थान संघ के बाद पूरा हुआ। राजस्थान संघ में विलय हुई रियासतों में कोटा बड़ी रियासत थी, इस कारण इसके तत्कालीन महाराजा महाराव भीमसिंह को राजप्रमुख बनाया गया। bundi के तत्कालीन महाराव बहादुर सिंह राजस्थान संघ के राजप्रमुख भीमसिंह के बडे भाई थे, इस कारण उन्हें यह बात अखरी कि छोटे भाई की 'राजप्रमुखता' में वे काम कर रहे है। इस ईर्ष्या की परिणति तीसरे चरण के रूप में सामने आयी।
    तीसरा चरण 18 अप्रैल 1948
    बूंदी के महाराव बहादुर सिंह नहीं चाहते थें कि उन्हें अपने छोटे भाई महाराव भीमसिंह की राजप्रमुखता में काम करना पडे, मगर बडे राज्य की वजह से भीमसिंह को राजप्रमुख बनाना तत्कालीन भारत सरकार की मजबूरी थी। जब बात नहीं बनी तो बूंदी के महाराव बहादुर सिंह ने उदयपुर रियासत को पटाया और राजस्थान संघ में विलय के लिए राजी कर लिया। इसके पीछे मंशा यह थी कि बडी रियासत होने के कारण उदयपुर के महाराणा को राजप्रमुख बनाया जाएगा और बूंदी के महाराव बहादुर सिंह अपने छोटे भाई महाराव भीम सिंह के अधीन रहने की मजबूरी से बच जाएगे और इतिहास के पन्नों में यह दर्ज होने से बच जाएगा कि छोटे भाई के राज में बडे भाई ने काम किया। अठारह अप्रेल 1948 को राजस्थान के एकीकरण के तीसरे चरण में उदयपुर रियासत का राजस्थान संघ में विलय हुआ और इसका नया नाम हुआ 'संयुक्त राजस्थान संघ'। माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में बने इसके मंत्रिमंडल में उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को राजप्रमुख बनाया गया, कोटा के महाराव भीमसिंह को वरिष्ठ उपराजप्रमुख बनाया गया। और कुछ इस तरह बूंदी के महाराजा की चाल भी सफल हो गयी।
    चौथा चरण तीस मार्च 1949
    इससे पहले बने संयुक्त राजस्थान संघ के निर्माण के बाद तत्कालीन भारत सरकार ने अपना ध्यान देशी रियासतों जोधपुर , जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर पर केन्द्रित किया और इसमें सफलता भी हाथ लगी और इन चारों रियासतो का विलय करवाकर तत्कालीन भारत सरकार ने तीस मार्च 1949 को वृहत्तर राजस्थान संघ का निर्माण किया, जिसका उदघाटन भारत सरकार के तत्कालीन रियासती और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। यही ३० मार्च आज राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है। इस कारण इस दिन को हर साल राजस्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है। हालांकि अभी तक चार देशी रियासतो का विलय होना बाकी था, मगर इस विलय को इतना महत्व नहीं दिया जाता, क्योंकि जो रियासते बची थी वे पहले चरण में ही 'मत्स्य संघ' के नाम से स्वतंत्र भारत में विलय हो चुकी थी। अलवर , भतरपुर, धौलपुर व करौली नामक इन रियासतो पर भारत सरकार का ही आधिपत्य था इस कारण इनके राजस्थान में विलय की तो मात्र औपचारिकता ही होनी थी।
    पांचवा चरण 15 अप्रेल 1949
    पन्द्रह अप्रेल 1949 को मत्स्य संध का विलय ग्रेटर राजस्थान में करने की औपचारिकता भी भारत सरकार ने निभा दी। भारत सरकार ने 18 मार्च 1948 को जब मत्स्य संघ बनाया था तभी विलय पत्र में लिख दिया गया था कि बाद में इस संघ का राजस्थान में विलय कर दिया जाएगा। इस कारण भी यह चरण औपचारिकता मात्र माना गया।
    छठा चरण 26 जनवरी 1950
    भारत का संविधान लागू होने के दिन 26 जनवरी 1950 को सिरोही रियासत का भी विलय ग्रेटर राजस्थान में कर दिया गया। इस विलय को भी औपचारिकता माना जाता है क्योंकि यहां भी भारत सरकार का नियंत्रण पहले से ही था। दरअसल जब राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया चल रही थी, तब सिरोही रियासत के शासक नाबालिग थे। इस कारण सिरोही रियासत का कामकाज दोवागढ की महारानी की अध्यक्षता में एजेंसी कौंसिल ही देख रही थी जिसका गठन भारत की सत्ता हस्तांतरण के लिए किया गया था। सिरोही रियासत के एक हिस्से आबू देलवाडा को लेकर विवाद के कारण इस चरण में आबू देलवाडा तहसील को बंबई और शेष रियासत विलय राजस्थान में किया गया।
    सांतवा चरण एक नवंबर 1956
    अब तक अलग चल रहे आबू देलवाडा तहसील को राजस्थान के लोग खोना नही चाहते थे, क्योंकि इसी तहसील में राजस्थान का कश्मीर कहा जाने वाला आबूपर्वत भी आता था , दूसरे राजस्थानी, बच चुके सिरोही वासियों के रिश्तेदार और कईयों की तो जमीन भी दूसरे राज्य में जा चुकी थी। आंदोलन हो रहे थे, आंदोलन कारियों के जायज कारण को भारत सरकार को मानना पडा और आबू देलवाडा तहसील का भी राजस्थान में विलय कर दिया गया। इस चरण में कुछ भाग इधर उधर कर भौगोलिक और सामाजिक त्रुटि भी सुधारी गया। इसके तहत मध्यप्रदेश में शामिल हो चुके सुनेल थापा क्षेत्र को राजस्थान में मिलाया गया और झालावाड जिले के उप जिला सिरनौज को मध्यप्रदेश को दे दिया गया।
    इसी के साथ आज से राजस्थान का निर्माण या एकीकरण पूरा हुआ। जो राजस्थान के इतिहास का एक अति महत्ती कार्य था


    पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार राजस्थान का इतिहास पूर्व पाषाणकाल से प्रारंभ होता है। आज से करीब एक लाख वर्ष पहले मनुष्य मुख्यतः बनास नदी के किनारे याअरावली के उस पार की नदियों के किनारे निवास करता था। आदिम मनुष्य अपने पत्थर के औजारों की मदद से भोजन की तलाश में हमेशा एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते रहते थे, इन औजारों के कुछ नमूने बैराठ, रैध और भानगढ़ के आसपास पाए गए हैं।
    अतिप्राचीनकाल में उत्तर-पश्चिमी राजस्थान वैसा बीहड़ मरुस्थल नहीं था जैसा वह आज है। इस क्षेत्र से होकर सरस्वती और दृशद्वती जैसी विशाल नदियां बहा करती थीं। इन नदी घाटियों में हड़प्पा, ‘ग्रे-वैयर’ और रंगमहल जैसी संस्कृतियां फली-फूलीं। यह वही ब्रह्मावर्त है जिसकी महती चर्चा मनु ने की है। यहां की गई खुदाइयों से खासकरकालीबंग के पास, पांच हजार साल पुरानी एक विकसित नगर सभ्यता का पता चला है। हड़प्पा, ‘ग्रे-वेयर’ और रंगमहल संस्कृतियां सैकडों किलोमीटर दक्षिण तक राजस्थान के एक बहुत बड़े इलाके में फैली हुई थीं।
    इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि ईसा पूर्व चौथी सदी और उसके पहले यह क्षेत्र कई छोटे-छोटे गणराज्यों में बंटा हुआ था। इनमें से दो गणराज्य मालवा और सिविइतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने सिकंदर महान को पंजाब से सिंध की ओर लौटने के लिए बाध्य कर दिया था। उस समय उत्तरी बीकानेर पर एक गणराज्यीय योद्धा कबीले यौधेयत का अधिकार था। महाभारत में उल्लिखित मत्स्य पूर्वी राजस्थान और जयपुर के एक बड़े हिस्से पर शासन करते थे। जयपुर से 80 कि.मी. उत्तर मेंबैराठ, जो तब 'विराटनगर' कहलाता था, उनकी राजधानी थी। इस क्षेत्र की प्राचीनता का पता अशोक के दो शिलालेखों और चौथी पांचवी सदी के बौद्ध मठ के भग्नावशेषों से भी चलता है।
    भरतपुरधौलपुर और करौली उस समय सूरसेन जनपद के अंश थे जिसकी राजधानी मथुरा थी। भरतपुर के नोह नामक स्थान में अनेक उत्तर-मौर्यकालीन मूर्तियां और बर्तन खुदाई में मिले हैं। शिलालेखों से ज्ञात होता है कि कुषाणकाल तथा कुषाणोत्तर तृतीय सदी में उत्तरी एवं मध्यवर्ती राजस्थान काफी समृद्ध इलाका था। राजस्थान के प्राचीन गणराज्यों ने अपने को पुनर्स्थापित किया और वे मालवा गणराज्य के हिस्से बन गए। मालवा गणराज्य हूणों के आक्रमण के पहले काफी स्वायत्त् और समृद्ध था। अंततः छठी सदी में तोरामण के नेतृत्तव में हूणों ने इस क्षेत्र में काफी लूट-पाट मचाई और मालवा पर अधिकार जमा लिया। लेकिन फिर यशोधर्मन नेहूणों को परास्त कर दिया और दक्षिण पूर्वी राजस्थान में गुप्तवंश का प्रभाव फिर कायम हो गया। सातवीं सदी में पुराने गणराज्य धीरे-धीरे अपने को स्वतंत्र राज्यों के रूप में स्थापित करने लगे। इनमें से मौर्यों के समय में चित्तौड़ गुबिलाओं के द्वारा मेवाड़ और गुर्जरों के अधीन पश्चिमी राजस्थान का गुर्जरात्र प्रमुख राज्य थे।
    लगातार होने वाले विदेशी आक्रमणों के कारण यहां एक मिली-जुली संस्कृति का विकास हो रहा था। रूढ़िवादी हिंदुओं की नजर में इस अपवित्रता को रोकने के लिए कुछ करने की आवश्यकता थी। सन् 647 में हर्ष की मृत्यु के बाद किसी मजबूत केंद्रीय शक्ति के अभाव में स्थानीय स्तर पर ही अनेक तरह की परिस्थितियों से निबटा जाता रहा। इन्हीं मजबूरियों के तहत पनपे नए स्थानीय नेतृत्व में जाति-व्यवस्था और भी कठोर हो गई।


    23.3.12

    मेरी कविताओं का संग्रह: दो जन्म

    मेरी कविताओं का संग्रह: दो जन्म: हाँ , आज हुआ है मेरा जन्म , एक शानदार हस्पताल में .... कमरे में टीवी है ... बाथरूम है ...फ़ोन है .... तीन वक्त का खाना आता है ..... जब म...

    सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

    10.3.12

    जमानत-जमानत

    humlog


    टू जी के झमेले में बड़ी बड़ी तोपें फंसती लग रही है। कुछ नेता, अफसर, व्यवयायी, तो अंदर हो चुके हैं। कुछ के गिरेबां के अन्दर झांका जा रहा हैं। टू जी के खातों में रोज नये नये नामों का जमाखर्च हो रहा है। सूची, सुरसा के मुंह की तरह नहीं बल्कि महंगाई की तरह बढ़ रही है। शुक्र है इसमें अब तक मेरा नाम नहीं जुड़ा है। शायद इसका कारण यह है कि मेरे नाम में एक ही "जी" है। मेरे पास भी टू जी होता तो जिंदगी का नजारा ही दूसरा होता। वैसे अच्छा ही है, टू जी होता तो मैं भी आज जमानत के लिये भटक रहा होता। वैसे तो मुझे कम सुनाई देता है, पर जब कोई चुपके चुपके कानाफूसी करता है तो सुनाई दे जाता है, कुछ "अधर-अध्ययन" की कला काम कर जाती है। एक बोला- चल यार, उस मोटे मुर्गे की जेब काटते हैं। मैं सफल हो गया तो दस प्रतिशत तेरा, बाकी मेरा। तू सफल हो जाए तो दस प्रतिशत मुझे दे देना। हां, एक बात और! यार, जेब काटने की रिस्क तो हम लेते हैं, माल ये जमानतिये खाते हैं। अब यूं करना, मैं पकड़ा जाऊं तो तू मेरी जमानत ले लेना, तू पकडा गया ता मैं तेरी जमानत ले लूंगा।

    "यह जमानत-अमानत-खयानत का भी बड़ा लफड़ा है। यह काम तो जेब काटने से भी तगड़ा हैं। जनता की अमानत में खयानत करने वाले नेताओं-अफसरों की खबरों से अखवार रहते हैं। पर हमारी कोई नहीं सुनता पिछली सफलता के कारण मैं जेल में था। मेरी प्रेमिका मिलने आती थी। इस चक्कर में एक और हवालाती से उसकी आंखें लड़ गई और अब वह उसकी है।"

    "यार जो बीत गया, उसका रोना धोना छोड़ । इन विवाहों के ऎसे ही गीत होते हैं। खैर यह बता, जमानत का समझौता मंजूर है?" उनमें समझोैता हो गया। नेताओं का ही लो जमानत बचाने के लिये कितनी धूल फांकनी पड़ती है। माना कि सड़के पक्की बन गई है, पर धूल, मिट्टी, कंकर गbों से मुक्ति कहां मिली है। अभी जो चुनाव हुआ है, उसे ही देख लो। जिस पार्टी के नेताओं ने गरीबी, महंगाई, आतंकवाद और भ्रष्टाचार हटाने की गांरटी (जमानत) बार बार देश की जनता को दी है, उसका उम्मीदवार भी अपनी जमानत नहीं बचा सका। बाकी तीस चालीस छुटभैयों की तो क्या बात करें। उस दिन एक पराजित बंधु मुंह लटकाए बैठे थे।

    पूछा- हार का गम सता रहा है क्या? जवाब मिला- हार तो पहले से ही तय थी। गम तो जमानत न बचने का है। अगर वह राशि मिल जाती तो सरकारी ठेके से गम की दवा तो खरीद लेता। सरकार के नियम ही उलटे हैं। अन्ना जी भी इस बिंदु की तरफ अनशन नहीं कर रहे हैं। जमानत तो जीतने वाले की जब्त की जानी चाहिए। क्योंकि भरपाई के लिये उसके रास्ते चारों दिशाओं में खुल जाते हैं। हारने वालों को मुआवजा मिलना चाहिए, जैसे दुर्घटना या आपदा आने पर मिलता है। "क्यों भैया? नेताओं पर इतनी मेहरबानी क्यों?" माना। पर यह जरूरी नहीं है कि जो ड्राइविंग सीट पर बैठता है, वह दुर्घटना का शिकार होता ही है। पर यह जरूरी है कि जो जनता से संघर्ष कर अपनी जमानत बचा लेता है और कुर्सी पर बैठ जाता है। वह कुर्सी से उतरते ही जमानत के लिये अदालत की ओर दौड़ता हैं। जमानत होने की उम्मीद होती है कि मुंडे सिर पर ओलावृष्टि हो जाती है। अदालत कह देती है, इत्ते से काम के लिये हमारे पास आने की जरूरत नहीं। पुन: मूषिकोभव! देखो, तिहाड़ में या पहाड़ में कितने "कुर्सी गिरे जमानतार्थी जमा है। ऎसे पीडित ही मुआवजों में प्राथमिकता के अधिकारी हैं। अजब गजब चुनाव या संवैधानिक सुधारों की बातें फिर करना, पहले जमीन से जुड़ें इन मसलों पर विचार करें, वे सब जो खाने में या भूखे रहने में, मौन रहने या बोलने में विश्वास करते हैं।

    5.3.12

    ये है मिशन लन्दन ओलंपिक !


    london prepares banner

             आज  भारत  में  चारों ओर हॉकी  टीम ने  अपने प्रदर्शन से धूम मचा रखी है .८ वर्ष बाद ओलम्पिक में भाग लेने का ये जो सुनहरा अवसर भारतीय हॉकी   टीम ने हासिल किया है उसे लेकर  सारे भारत को उनसे बहुत आशाएं हैं और आज सारा भारत उनके लिए यही दुआ मांग रहा है कि २०१२ का हॉकी गोल्ड भारत को ही प्राप्त हो.

    barbican weekender

                                   हॉकी में भारत का विश्व में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है.मेजर  ध्यानचंद  हॉकी के जादूगर  की  उपाधि से नवाजे गए हैं .


    Colors of IndiaColors of IndiaColors of India

    Colors of IndiaColors of IndiaColors of India

                     हॉकी भारतवर्ष के राष्ट्रीय खेल  का स्थान रखता है और पिछले कुछ समय के प्रदर्शन के कारण इस खेल पर जो  उँगलियाँ उठने लगी थी अब उन्हें झुकाने का समय भारतीय टीम ने हासिल किया है.और हमें पूरी आशा है कि भारतीय टीम ये स्वर्णिम अवसर कभी नहीं गवायेंगी.



    Hockey team

                           भारतीय टीम को जोश से भरने हेतु ''शिखा कौशिक'' जी द्वारा स्वरबद्ध,स्वरचित ये गाना भी मैं यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ जिससे  मेरी  इस पोस्ट  की गुणवत्ता  में  अभिवृद्धि  होगी  और मैं ये मानती  हूँ  कि ये गाना भारतीय टीम में जोश भरने में और उन्हें सफलता  के  शीर्ष  पर पहुँचने  में भी अवश्य  मदद   करेगा .
                               ये  है मिशन  लन्दन ओलंपिक 

    YE HAI MISSION LONDON OLYMPIC ! 
                                                         अंत में मैं अपनी भारतीय हॉकी टीम को यही कहना चाहूंगी -


     "कमाले  बुजदिली है पस्त होना अपनी आँखों में,
         अगर थोड़ी सी हिम्मत हो तो फिर क्या हो नहीं सकता.''
                                                                           चकबस्त.


                      ''ALL  THE  BEST  INDAIN  TEEM ''
                                    शालिनी कौशिक 
    [sabhi photos google se sabhar]

    3.3.12

    कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरी ब्रिज भूमि की होली

    कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरी ब्रिज भूमि की होली: जय श्री कृष्णा फिर से दो दिन बचे है होली के फिर वही जाना है श्री कृष्ण के दरबार मे मा को फिर फोन पे दीवाली पे आन...

    थिंक हट के...


    कोई रूठे यहाँ तो कौन मनाने आता है 
    रूठने वाला खुद ही मान जाता है, 
    ऐ अनिश दुनियां भूल जाये कोई गम नहीं 
    जब कोई अपना भूल जाये तो रोना आता है...
    जब महफ़िल में भी तन्हाई पास हो 
    रौशनी में भी अँधेरे का अहसास हो, 
    तब किसी कि याद में मुस्कुरा दो 
    शायद वो भी आपके इंतजार में उदास हो...
    फर्क होता है खुदा और पीर में 
    फर्क होता है किस्मत और तक़दीर में 
    अगर कुछ चाहो और ना मिले तो 
    समझ लेना कि कुछ और अच्छा है हाथो कि लकीर में.
    नीलकमल वैष्णव"अनिश"
    ०९६३०३०३०१०, ०७५६६५४८८०० 

    क्या इन टोटको से भर्ष्टाचार खत्म हो सकता है ? आप देखिए कि अन्ना कैसे-कैसे बयान दे रहे हैं? शरद पवार भ्रष्ट हैं। भ्रष्टाचार पर बनी जीओएम (मंत्रिसमूह) में फला-फलां और फलां मंत्री हैं। इसलिए इस समिति का कोई भविष्य नहीं है। पवार को तो मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देना चाहिए। पवार का बचाव करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर पवार के मंत्रिमंडल से बाहर हो जाने से भ्रष्टाचार