मेरी इस छोटी सी दुनिया में आप सब का स्वागत है.... अब अपने बारे में क्या बताऊँ... सिलसिला ज़ख्म ज़ख्म जारी है, ये ज़मी दूर तक हमारी है, मैं बहुत कम किसी से मिलता हूँ, जिससे यारी है उससे यारी है... वो आये हमारे घर में खुदा की कुदरत है, कभी हम उनको तो कभी अपने घर को देखते हैं...
7.1.12
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: एक छलावा-सा
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: एक छलावा-सा: एक छलावा-सा 4 जुलाई 1942 को जन्मे कन्हैयालाल भाटी की अनुवादक के रूप में विशेष ख्याति रही है, मगर उनकी कहानियां भी कथ्य व शिल्प की दृष्टि से...
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें