मेरी इस छोटी सी दुनिया में आप सब का स्वागत है.... अब अपने बारे में क्या बताऊँ... सिलसिला ज़ख्म ज़ख्म जारी है, ये ज़मी दूर तक हमारी है, मैं बहुत कम किसी से मिलता हूँ, जिससे यारी है उससे यारी है... वो आये हमारे घर में खुदा की कुदरत है, कभी हम उनको तो कभी अपने घर को देखते हैं...
27.1.12
22.1.12
अपना दर्द....
आप सभी मित्रों के लिए पेश है नए साल(2012) का मेरा पहला पोस्ट
जिसमें तो दो अलग-अलग लाइने हैं पर दोनों कविता का अर्थ और दर्द एक ही है,
(१)
मुझे उदास देख कर उसने कहा ;
मेरे होते हुए तुम्हें कोई
दुःख नहीं दे सकता,
"फिर ऐसा ही हुआ"
ज़िन्दगी में जितने भी दुःख मिले,
सब उसी ने दिए.....
(२)
वो अक्सर हमसे एक वादा करते हैं कि;
"आपको तो हम अपना बना कर
ही छोड़ेंगे"
और फिर एक दिन उन्होंने अपना
वादा पूरा कर दिया,
"हमें अपना बनाकर छोड़ दिया..."
नीलकमल वैष्णव"अनिश"
7.1.12
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: एक छलावा-सा
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: एक छलावा-सा: एक छलावा-सा 4 जुलाई 1942 को जन्मे कन्हैयालाल भाटी की अनुवादक के रूप में विशेष ख्याति रही है, मगर उनकी कहानियां भी कथ्य व शिल्प की दृष्टि से...
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