देखना, कोई औरत भगवान को छू न दे
मार्केट से लौटते वक्त उस मंदिर के आगे रोज मेरे पांव ठिठक जाते हैं। औरतें दीवानों की तरह भीड़ लगाकर वहां खड़ी होती हैं। सूट वालियां भी, साड़ी वालियां भी और जींस वालियां भी। सब के सब एकता कपूर के सीरियल से सीधे भागकर आए हुए से। इतने रिलीजस लोग या तो उन सीरियलों में देख लो, या फिर उस मंदिर के आगे। कल आखिर मैंने झांक कर देख ही लिया कि आखिर कौन से भगवान का निवास है वहां। देखा तो बिल्कुल उस ऐड की तरह शॉक लगा, शॉक लगा, शॉक लगा। और एकदम सीरियल वाले स्टाइल दिल में एको हुआ - नहींईईईई.... ये क्या? अभी तक तो सिर्फ हनुमान जी के बारे में सुना था। शनिदेव तुम भी? यू टू? भेजा घूमा था, वहां लगे बोर्ड की वजह से। आप खुद ही पढि़ए - लिखा है महिलाएं दूर से ही दर्शन करें, मूर्ति को हाथ न लगाएं। (ओ तेरा भला हो)
हनुमान जी ब्रह्मचारी देवता हैं। औरतों से दूर ही रहते हैं, ये तो पता था। अजी, पता क्या था एक दिन एक मंदिर में जाकर पुजारी जी ने फेस-टु-फेस बोल ही दिया। बच्चे को लेकर कनॉट प्लेस वाले हनुमान मंदिर जाने की जिद थी ममी जी की, तो चल दिए आशीर्वाद लेने। पुजारी जी ने बच्चा गोद में लिया, एक सेकंड को रुके और ठां करके पूछ डाला - लड़की तो नहीं? हमने फौरन कोरस में पूरे कॉन्फिडेंस से कहा - नहीं नहीं, लड़का है, लड़का है। पुजारी जी ने राहत वाली स्माइल दी और बच्चे को लेकर चल दिए दर्शन कराने।
हनुमान जी ब्रह्मचारी देवता हैं। औरतों से दूर ही रहते हैं, ये तो पता था। अजी, पता क्या था एक दिन एक मंदिर में जाकर पुजारी जी ने फेस-टु-फेस बोल ही दिया। बच्चे को लेकर कनॉट प्लेस वाले हनुमान मंदिर जाने की जिद थी ममी जी की, तो चल दिए आशीर्वाद लेने। पुजारी जी ने बच्चा गोद में लिया, एक सेकंड को रुके और ठां करके पूछ डाला - लड़की तो नहीं? हमने फौरन कोरस में पूरे कॉन्फिडेंस से कहा - नहीं नहीं, लड़का है, लड़का है। पुजारी जी ने राहत वाली स्माइल दी और बच्चे को लेकर चल दिए दर्शन कराने।
एनीवे, उस दिन हनुमान जी के बारे में सॉलिड ज्ञान मिला था कि वह कितना सीरियसली फीमेल्स से दूर रहते हैं। लेकिन शनि देव आप भी। आपसे तो मुझे सिम्पथी थी। आपके ओवर एस्टिमेटिड खौफ की वजह से। साढ़ेसाती और उसका बुरा असर एंड ऑल दैट स्टफ। मगर आपने भी औरतों को इनफीरियर ही समझा है। इसका रिलीजस कारण क्या है, मैं उसमें पडऩा नहीं चाहती पर मुझे इनफीरियॉरिटी का अहसास हुआ।
पर आप कुछ जानते भी हो शनिदेव? और आप भी सुनो हनुमान जी... जिन औरतों से आप देवता लोग दूर भागते हो, वही तो आपकी असली फॉलोअर हैं, वही तुम्हारी टीआरपी बढ़ाती हैं और वही असली व्यूअरशिप देती हैं। क्योंकि पुरुष तो खुद देवता होता है (नो ऑफेंस, लेकिन होता तो है ही, पतिदेव कहते तो हैं कुछ लोग, और वो करवा चौथ के दिन तो देवत्व अपने पीक पर होता है, हालांकि उनकी टीआरपी भी लेडीज ही बढ़ाती हैं)। इन पुरुषों का बस चले तो आपको जीरो व्यूअरशिप वाला कोई टीवी प्रोग्राम बनाकर रख छोड़ें। यकीन नहीं तो पूछ लो किसी भी ऐवरेज पुरुष से। धर्म और भगवान के नाम पर लड़ाई तो कर लेंगे, लेकिन पत्नी और परिवार व्रता तुलसी टाइप बीवी जब ऑफिस से शाम को जल्दी घर आने को कहती है कि हवन रखा है और तुम्हें पूजा में बैठना है तो इन्हीं से पूछो इनके दिल पर कितनी छुरियां चलती हैं।
पर आप कुछ जानते भी हो शनिदेव? और आप भी सुनो हनुमान जी... जिन औरतों से आप देवता लोग दूर भागते हो, वही तो आपकी असली फॉलोअर हैं, वही तुम्हारी टीआरपी बढ़ाती हैं और वही असली व्यूअरशिप देती हैं। क्योंकि पुरुष तो खुद देवता होता है (नो ऑफेंस, लेकिन होता तो है ही, पतिदेव कहते तो हैं कुछ लोग, और वो करवा चौथ के दिन तो देवत्व अपने पीक पर होता है, हालांकि उनकी टीआरपी भी लेडीज ही बढ़ाती हैं)। इन पुरुषों का बस चले तो आपको जीरो व्यूअरशिप वाला कोई टीवी प्रोग्राम बनाकर रख छोड़ें। यकीन नहीं तो पूछ लो किसी भी ऐवरेज पुरुष से। धर्म और भगवान के नाम पर लड़ाई तो कर लेंगे, लेकिन पत्नी और परिवार व्रता तुलसी टाइप बीवी जब ऑफिस से शाम को जल्दी घर आने को कहती है कि हवन रखा है और तुम्हें पूजा में बैठना है तो इन्हीं से पूछो इनके दिल पर कितनी छुरियां चलती हैं।
या फिर आप इनसे पूछो कि इनमें से कितने पर्सेंट पुरुष आपके या दूसरे किसी भगवान का व्रत रखकर रोज सुबह घंटी और शंख बजाते हैं। सर्वे करवाओ, पता लगाओ, कंपेयर करो। अरे व्रत तो छोड़ो, घर में टाइम पर खाना न मिले तो राजेश खन्ना से अमरीश पुरी के कैरक्टर में घुसने में दो मिनट से ज्यादा नहीं लगते इन्हें। और अगर तुम्हें फैक्ट्स नहीं मालूम तो लेडीज़ को ऐसे पोस्टर चिपकाकर इनफीरियर होने का अहसास क्यों कराते हो भगवान जी।
सोचो, मेरी मौसी को कैसा लगा होगा उस दिन। मौसी मेरी एकदम भक्तन हैं। घर में बाथरूम से बड़ा तो मंदिर बनवाया है। हर हफ्ते भगवान की एक नई मूर्ति मुंहमांगे दाम चुकाकर लाती हैं। एक बार गांव जाकर बडे मंदिर में बड़ी-सी मूर्ति स्थापित करने की ठान ली। शायद बल्लभगढ़ से लाई थीं देवी माता की संगमरमर की मूर्ति 50 हजार में। पूरे तामझाम के साथ अपने ससुराल पहुंचीं, भंडारा लगाया, गांववालों के लिए भोज प्लान किया। मंदिर में मूर्ति पहुंचाई। पुजारी जी और घर के सभी पुरुष मंदिर पहुंचे, मगर अरे ये क्या मौसी जी, आप कहां घुस रही हैं मंदिर के अंदर? बाहर ही रुकिए, पढ़ी-लिखी लगती हैं, इसीलिए नहीं मालूम कि देवी माता की मूर्ति स्थापना के वक्त लेडीज़ नॉट अलाउड। (पता नहीं, अब ये कौन से कोर्स में पढ़ाया जाता है, जो पुजारी जी ने उन्हें पढ़ा-लिखा गंवार बताया)। एनीवे, आप तो बस ये सोचो कि कैसा वाला शॉक लगा होगा मौसी जी को, वही ऐड वाला जिसमें सबके बाल 90 डिग्री में खड़े हो जाते हैं।
इतना गुस्सा क्यों, वाय, काइकू गॉड? अरे, ये तो समझो कि ये औरतें आपसे कितना प्यार करती हैं। और वैसे भी गुस्सा तो राक्षसों का गहना होता है, तो टेक अ चिल पिल गॉड।