8.3.11

ताकि न टूटे विवाह

आज समाज में धड़ल्ले से विवाह टूट रहे हैं। विवाह के समय मां-बाप और समाज के मन में भय रहता है- "यह विवाह निभेगा भी कि नहीं।" पति-पत्नी ही नहीं, परिवार और समाज की भी आकांक्षा रहती है कि हर वैवाहिक जीवन निभना चाहिए, क्योंकि वैवाहिक सम्बन्ध का विच्छेद होना पति-पत्नी ही नहीं, परिवार और समाज के लिए भी दुखदायी होता है। बच्चे प्रभावित होते ही हैं, परंतु इन दिनों बच्चे होने से पूर्व ही विवाह विच्छेद की नौबत आ रही है। कुछ विवाह तो छह महीने या दो महीने के अंदर ही टूटने के कगार पर आ जाते हैं।

हाल ही में मलेशिया की एक खबर- "शादीशुदा जोड़ों में तलाक की बढ़ती दर की खबरों से चिंतित मलेशिया के तेरेंगनू प्रांत की सरकार ने सम्बन्ध तोड़ने के दृढ़ संकल्पी लोगों को मुफ्त में दूसरा हनीमून मनाने का प्रस्ताव दिया है। इस हनीमून पैकेज का खर्च प्रांत सरकार उठाएगी। जिन लोगों के सम्बन्ध खराब होने की अभी शुरूआत हुई है, उन्हें सामान्य परामर्श दिया जाएगा, लेकिन जो तलाक की कगार पर पहुंच गए हैं, उन्हें दूसरे हनीमून पर भेजा जाएगा।" खबर पर नजर टिक गई। खबर पढ़कर मन में विचार आया कि मलेशिया हो या भारत, अमरीका या इंग्लैंड, समाज विवाह टूटने देना नहीं चाहता। इसलिए उन्हें परिवार और कोर्ट द्वारा भी बार-बार सुधरने का मौका दिया जाता है। दरअसल दोनों को एक-दूसरे से बहुत अपेक्षाएं होती हैं। दोनों एक-दूसरे को अपने तक ही सीमित रखना चाहते हैं। व्यक्ति स्वतंत्र जीव है। उसे बंधन भी चाहिए और खुलापन भी। कभी-कभी दोनों खुलेपन को कबूल कर लेते हैं।

फिर उन्हें बंधन भी चाहिए, जो सुख देता है। मलेशिया की सरकार द्वारा "हनीमून पैकेज" का विचार सराहनीय कदम है। अपने परिवारों में भी बुजुर्गो द्वारा ऎसी व्यवस्था होती रही है। नौजवान दम्पती के बीच हो रही अनबन को भांपकर घर के बुजुर्ग उन्हें बाहर घूमने की सलाह और पैसे भी देते रहे हैं। उन्हें विश्वास रहता है कि घर-गृहस्थी की उबाऊ और एकरस दिनचर्या से बाहर जाकर इन लोगों का मन परिवर्तित होगा। आपसी सम्बन्ध मधुर बनेंगे। पारिवारिक न्यायालयों और परामर्श केन्द्रों की भी कोशिश रहती है कि तलाक चाहने वाली जोडियां अपना मनोमालिन्य समाप्त कर पुन: प्रेम बंधन में बंध जाए। इसलिए बार-बार उन्हें एकांत में मिलने की सलाह देते हैं।

विवाह के तुरंत बाद हनीमून (पश्चिमी चलन) अब भारत में भी प्रचलित हो रहा है। इस रस्म का भी विशेष महत्व है। विवाह के बाद एक-दूसरे को अच्छी तरह जानने-पहचानने के लिए एकांत चाहिए। विवाह पूर्व एक-दूसरे को जानने-पहचानने वाली जोडियां भी विवाह के बाद हनीमून पर जाती हैं। "हनीमून" किसी भी सम्बन्ध को प्रगाढ़ बनाने का प्रतीक बन गया है। घर के नए सेवक-सेविका के आने पर जब घर की मालकिन उसके प्रति विशेष प्रेम दिखाती है तो कहा जाता है अभी उनका हनीमून चल रहा है। राजनीतिक दलों के रिश्तों के बीच भी हनीमून का प्रारम्भिक समय होता है। मलेशिया सरकार की खबर का शीर्षक पढ़कर यही अनुमान था कि किसी का दूसरा विवाह हुआ होगा। तभी तो दूसरे हनीमून की बात लिखी थी, परंतु उन्होंने तो विवाह को स्थायी बनाने की तरकीब खोजी है। प्रशंसनीय कदम है। भारत में सात जन्मों तक साथ रहने की बात कही जाती है। किसी सुखी और सफल जोड़ी से भी पूछिए- "क्या आप अगले जनम भी साथ रहेंगी/ रहेंगे?"


जबाब होगा- "एक ही जनम बहुत हो गया।" तात्पर्य यह कि एक जनम भी निभाना आसान नहीं रहा है। हजार विघ्न- बाधाएं आती हैं वैवाहिक जीवन में। मन नहीं मिलता, संस्कार भिन्न होता है, एक-दूसरे के द्वारा वैवाहिक धर्म नहीं निभाया जाता, कम खर्च में परिवार चलाना मुश्किल। बाधाएं ही बाधाएं। पर अधिकांश जोडियां आजीवन लड़ते-झगड़ते भी साथ रहती हैं। दरअसल लड़ना-झगड़ना भी परिवार हित के लिए होता है। इसलिए क्षम्य होता है।

पति-पत्नी के बीच लड़ाइयां और तलाक विश्व स्तरीय समस्या है। हर समाज अपने-अपने तरीके से इसका हल सोचता है। उन्हें सफलता भी मिलती है, परंतु मलेशिया के तेरेंगनू प्रांत की सरकार द्वारा "दूसरा हनीमून पैकेज" अपने आप में अनोखा और आकर्षक है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उनका यह प्रयास रंग लाएगा। दूसरे हनीमून से लौटकर तलाक की कगार पर पहुंची अधिकांश जोडियां पुन: जुड़कर रहने लगेंगी। उन जोडियों और समाज के लिए भी उपयोगी होगा। दूसरे देशों के लिए अनुकरणीय भी। जहां पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं वहां भी लड़ाई-झगड़े होते हैं। दोनों अपने-अपने श्रम की कमाई खाते हैं। इसलिए तलाक लेने में अधिक सोच-विचार नहीं करते। सच तो यह है कि विवाह में परस्पर निर्भरता भी आवश्यक है। वह भावनात्मक ही क्यों न हो।

3 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

इस दिलचस्प लेख के लिए आपको हार्दिक बधाई।


वर्ड वेरीफिकेशन की बाधा से टिप्पणीकारों को मुक्ति दिलाएं।

Shalini kaushik ने कहा…

आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा.मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद्.

क्या इन टोटको से भर्ष्टाचार खत्म हो सकता है ? आप देखिए कि अन्ना कैसे-कैसे बयान दे रहे हैं? शरद पवार भ्रष्ट हैं। भ्रष्टाचार पर बनी जीओएम (मंत्रिसमूह) में फला-फलां और फलां मंत्री हैं। इसलिए इस समिति का कोई भविष्य नहीं है। पवार को तो मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देना चाहिए। पवार का बचाव करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर पवार के मंत्रिमंडल से बाहर हो जाने से भ्रष्टाचार